सबसे पहला कांवडिया कौन था, किसने, कहां से शुरू की थी कांवड़ यात्रा

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सावन का महीना शुरू हो गया है और इसके साथ ही केसरिया कपड़े पहने शिवभक्तों के जत्थे गंगा का पवित्र जल शिवलिंग पर चढ़ाने निकल पड़े हैं। ये जत्थे जिन्हें हम कांवड़ियों के नाम से जानते हैं उत्तर भारत में सावन का महीना शुरू होते ही सड़कों पर निकल पड़ते हैं। पिछले दो दशकों से कांवड़ यात्रा की लोकप्रियता बढ़ी है और अब समाज का उच्च एवं शिक्षित वर्ग भी कांवड यात्रा में शामिल होने लगे हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इतिहास का सबसे पहला कांवडिया कौन था। इसे लेकर कई मान्यताएं हैं-

1. परशुराम थे पहले कांवड़िया-

कुछ विद्वानों का मानना है कि सबसे पहले भगवान परशुराम ने उत्तर प्रदेश के बागपत के पास स्थित ‘पुरा महादेव’ का कांवड़ से गंगाजल लाकर जलाभिषेक किया था। परशुराम, इस प्रचीन शिवलिंग का जलाभिषेक करने के लिए गढ़मुक्तेश्वर से गंगा जी का जल लाए थे। आज भी इस परंपरा का अनुपालन करते हुए सावन के महीने में गढ़मुक्तेश्वर से जल लाकर लाखों लोग ‘पुरा महादेव’ का जलाभिषेक करते हैं। गढ़मुक्तेश्वर का वर्तमान नाम ब्रजघाट भी है।

2.श्रवण कुमार थे पहले कांवड़ियां-

वहीं कुछ विद्वानों का कहना है कि सर्वप्रथम त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने पहली बार कांवड़ यात्रा की थी। माता-पिता को तीर्थ यात्रा कराने के क्रम में श्रवण कुमार हिमाचल के ऊना क्षेत्र में थे जहां उनके अंंधे माता-पिता ने उनसे मायापुरी यानि हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा प्रकट की। माता-पिता की इस इच्छा को पूरी करने के लिए श्रवण कुमार अपने माता-पिता को कांवड़ में बैठा कर हरिद्वार लाए और उन्हें गंगा स्नान कराया। वापसी में वे अपने साथ गंगाजल भी ले गए. इसे ही कांवड़ यात्रा की शुरुआत माना जाता है।

3.भगवान राम ने किया था कांवड यात्रा की शुरुआत-

कुछ मान्यताओं के अनुसार भगवान राम पहले कांवडियां थे। उन्होंने झारखंड के सुल्तानगंज से कांवड़ में गंगाजल भरकर, बाबाधाम में शिवलिंग का जलाभिषेक किया था।

4.रावण ने की थी इस परंपरा की शुरुआत-

पुराणों के अनुसार कावंड यात्रा की परंपरा, समुद्र मंथन से जुड़ी है। समुद्र मंथन से निकले विष को पी लेने के कारण भगवान शिव का कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ कहलाए। परंतु विष के नकारात्मक प्रभावों ने शिव को घेर लिया। शिव को विष के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त कराने के लिए उनके अनन्य भक्त रावण ने ध्यान किया। तत्पश्चात कांवड़ में जल भरकर रावण ने ‘पुरा महादेव’ स्थित शिवमंदिर में शिवजी का जल अभिषेक किया। इससे शिवजी विष के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त हुए और यहीं से कांवड़ यात्रा की परंपरा का प्रारंभ हुआ।

5.देवताओं ने सर्वप्रथम शिव का किया था जलाभिषेक

कुछ मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन से निकले हलाहल के नकारात्मक प्रभाव को कम करने के लिए शिवजी ने शीतल चंद्रमा को अपने माथे पर धारण कर लिया था। इसके बाद सभी देवता शिवजी पर गंगाजी से जल लाकर अर्पित करने लगे। सावन मास में कांवड़ यात्रा का प्रारंभ यहीं से हुआ

बैंक ऑफ बड़ौदा बैनर / साउंड बॉक्स

सभी बीसी साथी यह सुनिश्चित करले कि आपके बीसी केंद्र में साउंड बॉक्स ओर बैंक ऑफ बड़ौदा के सभी बैनर लगे हुए है। यदि नहीं लगे हुए हे तो आज ही सभी बीसी बैनर ओर साउंड बॉक्स लगवा ले क्योंकि इसी महीने में बैंक अधिकारी द्वारा आपके बीसी केंद्रों पर इंस्पेक्शन के लिए आना है।
सभी बीसी साथी निर्देशों का पालन करे ओर आवश्यक पोस्टर लगाए

जेडी चक्रवर्ती अभिनीत तेलगु फिल्म की शूटिंग देव जी नेत्रालय जबलपुर में हुई

फिल्म निर्माता श्री राजशेखर जी की एक तेलगु फिल्म जिसमे तेलगु फिल्म के प्रसिद्ध, सत्या फिल्म फेम जी डी चक्रवर्ती मुख्य भूमिका है की शूटिंग इस समय जबलपुर शहर में चल रही है , इसी श्रृंखला में फिल्म के कुछ महत्वूर्ण दृश्य जबलपुर नगर के सुप्रसिद्ध नेत्र रोग विशेषज्ञ एवं समाजसेवी श्री पवन स्थापक जी द्वारा संचालित देव जी नेत्रालय तिलवाराघाट जबलपुर में शूट हुए, वर्तमान समय में जबलपुर और आसपास के सम्पूर्ण महाकोशल क्षेत्र में प्राकृतिक सुंदरता, विविधता और शासन प्रसाशन का सहयोग और क्षेत्रीय कलाकारों की निपुणता के कारण साउथ की फिल्मो की शूटिंग के लिए उपयुक्त वातावरण बना है, इस अवसर पर डॉ अर्पिता स्थापक दुबे एवं अपूर्वा स्थापक जी ने जी डी चक्रवर्ती को देव जी नेत्रालय द्वारा प्रकाशित पत्रिका प्रदान की और देव जी नेत्रालय द्वारा किये जा रहे समझसेवा से सम्बंधित जानकारी प्रदान की , देव जी नेत्रालय ने भी एक विडिओ सन्देश के माध्यम से नेत्र दान की अपील की

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कपूर
कपूर: एक सुगंध नहीं, ऊर्जा का स्रोत है
कपूर

“कपूर का रहस्य”

“जो स्वयं जलकर शुद्धि करे”
कपूर को तंत्रशास्त्र में एक “जीवित ऊर्जा वाहक” माना गया है।
यह कोई आम सामग्री नहीं, बल्कि एक ऐसा “ऊर्जा-संकेतक यंत्र” है जो:

किसी भी अनुष्ठान में वातावरण को शुद्ध करता है।
नकारात्मक शक्तियों को बाहर निकालकर दैविक आवाहन को सरल बनाता है।
किसी भी मंत्रोच्चारण या धूप-दीप से पहले कपूर जलाना, शक्तियों को जागृत करने का पहला कदम है।
इसे जलाकर देवी-देवताओं को अर्पित करना, “स्वाहा” का जीवंत रूप होता है।

“जब कपूर जलता है, तब क्या होता है?”

जब कपूर जलता है, तब…

वह धुएं के रूप में “नकारात्मक ऊर्जा को सोख” लेता है।
उसकी तीव्र सुगंध वातावरण के “सूक्ष्म स्तर” को बदल देती है।
यही कारण है कि कई साधक अपने “तांत्रिक प्रयोग” में कपूर और इत्र का संयोजन करते हैं।

“आम जीवन में कपूर के लाभदायक उपाय”

“दरिद्रता और दुर्भाग्य दूर करें”

हर शुक्रवार या मंगलवार को कपूर में 2 लौंग डालकर जलाएं।
इससे घर की रुकी हुई ऊर्जा प्रवाह में आ जाती है। लक्ष्मी का आगमन सहज होता है।

“नींद ना आना, भय और तनाव”

रात में सोते समय तकिए के नीचे एक कटोरी में कपूर रखें।
इससे डरावने स्वप्न, बेचैनी और मानसिक चिंता खत्म होती है।

“शत्रु बाधा और नज़र दोष”

कपूर, अजवाइन और राई को मिलाकर सफेद ओसार(कपड़ा) में एक पोटली बनाएं।
हर शनिवार शाम को उसे जलाकर घर के चारों कोनों में धुआं करें।
इससे शत्रु सोच भी नहीं सकता कि वह आपकी ऊर्जा को छू पाए।

“पूजा से पहले दीप में कपूर जलाना क्यों जरूरी है?”

दीपक के तेल में थोड़ा कपूर मिलाकर जलाने से –
“देवी-देवता प्रसन्न होते है।”
जिससे सकारात्मक ऊर्जाएं आपकी ओर आकर्षित होती है।

“कपूर एक संदेश है:”
तुम जलो, स्वयं को अर्पित करो –
और उस प्रकाश में अपने कर्म,
बाधाएं और नकारात्मकता को समाप्त
करो।”

कपूर केवल एक सुगंध या परंपरा नहीं –
यह एक “ऊर्जा का प्रज्वलित रूप” है
जो हमारे “ऊर्जा चक्रों” को चेतन करता है

क्या आपने आज कपूर से अपने घर का शुद्धिकरण किया?
अगर नहीं, तो आज ही इस रहस्य को अपने जीवन का हिस्सा बनाइए।
क्योंकि…
“जहाँ कपूर जलता है, वहाँ तामसिक ऊर्जा जलती है।”

कुंडली में शनि के कमजोर होने पर कई तरह के लक्षण

कुंडली में शनि के कमजोर होने पर कई तरह के लक्षण दिखाई देते हैं, जैसे बार-बार धन हानि, मेहनत का फल न मिलना, नौकरी या व्यवसाय में दिक्कतें, और घर-परिवार में अशांति.
स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं:
समय से पहले बाल झड़ना, आंखों की समस्या, कान में दर्द, शारीरिक कमजोरी, पेट दर्द, टीबी, कैंसर, चर्म रोग, फ्रैक्चर, लकवा, सर्दी, अस्थमा आदि.
1.मनोवैज्ञानिक समस्याएं:
नकारात्मकता, आलस्य, बुरी आदतों का विकास

2.भगवान से दूर होने का विचार आना.
व्यवसाय और धन संबंधी समस्याएं:
बार-बार धन हानि, नौकरी या व्यवसाय में रुकावटें, कर्ज का बोझ बढ़ना, और धन-संपत्ति का नाश होना.

3.पारिवारिक समस्याएं:
घर में कलह, वाद-विवाद, और झूठे आरोप लगना.
बनते काम में रुकावट, घर में आग लगना, या घर का बिक जाना.
4.धार्मिक कार्यों में हिस्सा न लेना, और धर्म-कर्म पर विश्वास न रहना.
,5.बात-बात पर गुस्सा आना, और दूसरों से झगड़ना.

6गलत संगत में फंसना और बुरी आदतों का शिकार होना.
7.लगातार बीमार रहने लगना.

8.नर्वस सिस्टम की समस्याएं ज्यादा होना.

9.अचानक दुर्घटना किसी दुर्घटना में अपंगता या गंभीर रोग जैसे कैंसर आदि का सामना करना पड़ सकता है.
मकान का क्षतिग्रस्त होना:

10.कुंडली में शनि के अशुभ प्रभाव से मकान का क्षतिग्रस्त होना, मकान का गिरना या मकान बिकने जैसी समस्या उत्पन्न हो जाती है.

11.समय से पहले आंखों का कमजोर होना:
समय से पहले आंखों का कमजोर होना.

12.कम उम्र में जरूरत से ज्यादा बालों का झाड़ना:
ज्यादातर सिर में दर्द रहना:चोरी, छल-कपट करना:
आलस्य की सीमा पार कर देना:

नींबू उतारते समय दिशा का रहस्य: क्या आप नींबू सही दिशा में उतार रहे हैं?

“नींबू उतारते समय दिशा का रहस्य: क्या आप नींबू सही दिशा में उतार रहे हैं?”
“(जानिए तंत्र के अनुसार सीधी और उल्टी दिशा का सही महत्व)”

आजकल हर कोई कह देता है –
“नींबू से 7, 11, 21 बार उतारो, सब ठीक हो जाएगा।”
मगर “दिशा की बात कोई नहीं करता।”
क्या आप जानते हैं – “सीधी या उल्टी दिशा” में उतारने से “प्रभाव बिल्कुल अलग” होता है?

“घड़ी की दिशा (Clockwise) – ऊर्जा को शांत और स्थिर करने वाली दिशा”

अगर आप नींबू को घड़ी की दिशा में उतारते हैं, यानी व्यक्ति के सिर के सामने से दाएं घुमाते हुए पीछे की ओर ले जाते हैं,
तो आप उसकी “अंदरूनी हलचल, मानसिक बेचैनी या नजरदोष जैसी सूक्ष्म बाधाओं” को शांत करते हैं।
यह विधि “बच्चों, सामान्य थकावट, या नज़र लगने जैसी स्थिति” में प्रभावी होती है।

“घड़ी की उल्टी दिशा (Anti-clockwise) – नकारात्मक ऊर्जा को बाहर खींचने वाली दिशा”

नींबू को घड़ी की उल्टी दिशा में उतारने का अर्थ है, आप व्यक्ति के चारों ओर घुमाते हुए “बाईं दिशा में घुमा रहे हैं।”
यह दिशा तंत्र में “ऊपरी बाधा, तांत्रिक प्रहार, अथवा गहन नकारात्मक ऊर्जा” को बाहर निकालने के लिए उपयोग की जाती है।
ये विधि “गंभीर और पुराने प्रभावों को तोड़ने के लिए शक्तिशाली” मानी जाती है।

“तो कितनी बार उतारें? संख्या का भी है रहस्य।”

“7 बार”
कब उपयोग करें:
बच्चों या नजर दोष के लिए। दिशा:
घड़ी की दिशा।

“11 बार”
कब उपयोग करें:
बार-बार मानसिक अशांति हो। दिशा:
घड़ी की दिशा।

“21 बार”
कब उपयोग करें:
जब ऊपरी बाधा का असर साफ हो।
दिशा:
उल्टी दिशा।

“27 बार”
कब उपयोग करें:
जब व्यक्ति पर “बार-बार तांत्रिक प्रयोग”, या “रात में डरावने सपने”, या “स्मशान/कब्रिस्तान प्रभाव” नजर आए।
दिशा:
केवल उल्टी दिशा में ही करें।

“27 बार नींबू उतारना एक विशेष तांत्रिक प्रयोग होता है”, जो साधारण स्थिति में नहीं किया जाता।
यह तब किया जाता है “जब नकारात्मक ऊर्जा कई परतों में जम चुकी हो”, और बार-बार पूजा, जप या उपचार के बाद भी असर न दिखे।

“सावधानी:”

सही दिशा और सही संख्या ही असर लाते हैं।
“बिना समझे बस नींबू उतार देना, केवल एक क्रिया है – उसमें तांत्रिक शक्ति नहीं होती।”

“तंत्र कहता है” – जिस क्रिया के पीछे पूर्ण ज्ञान नहीं, वह अंधविश्वास बन जाती है। पूर्ण ज्ञान के साथ एक नींबू उतारना भी, शक्ति को वापस बुला सकता है।

श्रीफल उतारा सीधा नारियल और उल्टा नारियल : रहस्य और प्रभाव”
श्रीफल

तंत्रशास्त्र में “श्रीफल” यानी “नारियल” को विशेष स्थान प्राप्त है। यह मात्र एक फल नहीं, बल्कि साक्षात् ब्रह्म का प्रतीक माना जाता है। जब किसी व्यक्ति, स्थान या वस्तु से नकारात्मक ऊर्जा हटानी होती है, तो श्रीफल से उतारा करना एक सिद्ध और प्रभावी विधि है।

“सीधा नारियल का उतारा”
(नारियल का मुख यानी ‘आँखें’ ऊपर की ओर हो)

“उद्देश्य:”

नज़र दोष, बुरी ऊर्जा, आम मानसिक तनाव के लिए।
बच्चों और दुर्बल व्यक्तियों पर विशेष प्रभावी।
घर के वातावरण में हल्की-फुल्की अशांति या अनजानी थकावट के समाधान हेतु।

“प्रभाव:”

यह श्रीफल निगेटिव ऊर्जा को अपने अंदर खींच लेता है।
बाद में इसे किसी सुनसान स्थान या बहते जल में विसर्जित कर देना चाहिए।
इससे व्यक्ति का मानसिक भार तुरंत हल्का महसूस होता है।

“उल्टा नारियल का उतारा”
(नारियल की आँखें नीचे की ओर)

“उद्देश्य:”

जड़ से तांत्रिक बाधा, ऊपरी साया, प्रेतबाधा, गंभीर नकारात्मकता या टोने-टोटके के असर के लिए।
विशेष अवसरों या किसी गहन जांच के लिए प्रयोग होता है।

“प्रभाव:”

यह प्रक्रिया तंत्र की दृष्टि से बहुत तेज़ और गहन मानी जाती है।
उल्टे नारियल से उतारा करते समय कई बार श्रीफल फट भी सकता है – यह संकेत देता है कि उस व्यक्ति पर कोई शक्तिशाली बाधा थी।
इसे भी तुरंत किसी पवित्र अग्नि या गहरे पानी में विसर्जित करना चाहिए।

“विशेष चेतावनी:”

श्रीफल का उतारा सिर्फ अनुभवी तांत्रिक या ज्ञानी व्यक्ति से ही करवाएं।
बिना उद्देश्य के यह प्रयोग न करें।
हर उतारे के बाद श्रीफल का उचित विसर्जन अनिवार्य है।

“तंत्र रहस्य यही सिखाते हैं – हर वस्तु में शक्ति है, बस प्रयोग की विधि जाननी चाहिए।”

“अगर आप चाहते हैं कि आपकी ऊर्जा संतुलित रहे और जीवन में बाधाएं दूर हों, तो श्रीफल से जुड़ी सही जानकारी को अपनाएं, अंधविश्वास से नहीं, अनुभव से जानें।”

यहाँ पूरी विधि साझा नहीं की जाती, क्योंकि कुछ लोग इसे गलत कार्यों में इस्तेमाल करते हैं। तंत्र की शक्ति का उपयोग सेवा के लिए हो, शोषण के लिए नहीं – यही हमारा उद्देश्य है।

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