गौरव सैनी “अभिनय और सृजनशीलता के प्रतीक”

गौरव सैनी “अभिनय और सृजनशीलता के प्रतीक”, जिन्होंने अपनी कला और रचनात्मकता से समाज और मंच को समृद्ध किया है। 8 दिसंबर, 1990 को जबलपुर में जन्मे गौरव को अभिनय के प्रति प्रेरणा बचपन में रामलीला को देखकर और उसमें भाग लेकर मिली। 2014 से वह विवेचना रंग मंडल से जुड़े हैं और प्रतिष्ठित निर्देशक श्री अरुण पांडे, श्री राजकुमार कमले और सीताराम सोनी के निर्देशन में अभिनय, पेंटिंग, सेट डिज़ाइनिंग और नाटकों के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान है।

गौरव ने भारत के विभिन्न हिस्सों में 110 से अधिक नाटकों में प्रदर्शन किया है। उनकी प्रतिभा केवल मंच तक सीमित नहीं रही; उन्होंने द सिग्नल मैन, दरिंदे, हिट एंड रन जैसी शॉर्ट फिल्मों, मेरी निम्मो और डंकी जैसी फीचर फिल्मों और इश्कियां जैसी वेब सीरीज़ में अपनी अद्वितीय छाप छोड़ी है।

अभिनय और नाटकों के प्रति उनकी अपार निष्ठा ने उन्हें रंगमंच का एक महत्वपूर्ण स्तंभ बनाया है। इसके साथ ही, गौरव एक प्रसिद्ध इंटीरियर डिज़ाइनर भी हैं और निर्माण क्षेत्र में अपनी कंपनी का संचालन करते हैं, जिससे उनकी बहुआयामी प्रतिभा का परिचय मिलता है।

यह स्मृति चिन्ह गौरव सैनी के नाटकों और अभिनय के प्रति अद्वितीय समर्पण, उनकी रचनात्मकता और समाज के प्रति उनके योगदान को सम्मानित करता है। यह उनके साहस, मेहनत और प्रतिभा का प्रतीक है।

मोबाइल फिल्म निर्माण: सिनेमा की नई परिभाषा

परिचय
मोबाइल फिल्म निर्माण आज के डिजिटल युग में एक नई क्रांति बन गया है। स्मार्टफोन की बढ़ती तकनीकी क्षमताओं और उन्नत कैमरा फीचर्स ने हर व्यक्ति को एक फिल्ममेकर बना दिया है। यह न केवल पेशेवर फिल्म निर्माताओं के लिए, बल्कि शौकिया कलाकारों के लिए भी एक सशक्त माध्यम बन चुका है। मोबाइल फिल्म निर्माण, जिसे स्मार्टफोन फिल्म निर्माण भी कहा जाता है, आज के समय में फिल्म निर्माण का एक उभरता हुआ माध्यम है। स्मार्टफोन की तकनीकी उन्नति और उच्च गुणवत्ता वाले कैमरों ने इसे लोकप्रिय बना दिया है। यह केवल मनोरंजन के लिए ही नहीं, बल्कि शैक्षिक, प्रचार और सामाजिक परिवर्तन जैसे उद्देश्यों के लिए भी उपयोगी साबित हो रहा है।

 

मोबाइल फिल्म निर्माण की शुरुआत

मोबाइल फिल्म निर्माण की शुरुआत 2000 के दशक में हुई थी, लेकिन इसका असली प्रभाव तब महसूस हुआ जब स्मार्टफोन में उन्नत कैमरे आने लगे। 2015 में रिलीज़ हुई फिल्म “Tangerine”, जिसे पूरी तरह आईफोन से शूट किया गया था, ने यह दिखाया कि मोबाइल कैमरा भी पेशेवर फिल्म निर्माण में इस्तेमाल किया जा सकता है।

मोबाइल फिल्म निर्माण का महत्व

मोबाइल फिल्म निर्माण का महत्व

मोबाइल फिल्म निर्माण ने फिल्म निर्माण की परिभाषा को बदल दिया है। अब महंगे कैमरा, जटिल उपकरण और बड़े बजट की आवश्यकता नहीं है। स्मार्टफोन के कैमरे में 4K रिकॉर्डिंग, स्टेबलाइज़ेशन, स्लो-मोशन और लो-लाइट फोटोग्राफी जैसे फीचर्स ने इसे संभव बनाया है।

 

  1. सुलभता:
    स्मार्टफोन लगभग हर व्यक्ति की पहुंच में है। इससे हर कोई अपनी रचनात्मकता का प्रदर्शन कर सकता है।
  2. कम बजट:
    पारंपरिक फिल्म निर्माण में महंगे कैमरे, लाइटिंग उपकरण और स्टूडियो की आवश्यकता होती है। मोबाइल फिल्म निर्माण में इनकी आवश्यकता नहीं होती।
  3. तेज़ उत्पादन:
    मोबाइल पर फिल्म बनाना और उसे तुरंत संपादित करना पारंपरिक प्रक्रियाओं की तुलना में अधिक तेज़ है।
  4. विविधता:
    यह माध्यम छोटे वृत्तचित्र, शॉर्ट फिल्म, संगीत वीडियो और यहां तक कि फीचर फिल्मों के निर्माण के लिए भी उपयुक्त है।

मोबाइल फिल्म निर्माण के उपकरण

मोबाइल से फिल्म बनाने के लिए केवल एक स्मार्टफोन ही पर्याप्त नहीं है। कुछ अतिरिक्त उपकरण इसकी गुणवत्ता को और बेहतर बनाते हैं:

  1. गिंबल और ट्राइपॉड:
    स्थिर और स्मूद शॉट्स के लिए।
  2. माइक्रोफोन:
    बेहतर ऑडियो क्वालिटी के लिए।
  3. लेंस अडॉप्टर:
    वाइड एंगल, मैक्रो और टेलीफोटो लेंस का उपयोग करने के लिए।
  4. लाइटिंग उपकरण:
    लो-लाइट शूटिंग के लिए पोर्टेबल लाइट्स।
  5. एडिटिंग सॉफ़्टवेयर:
    Adobe Premiere Rush, iMovie, Kinemaster, और LumaFusion जैसे ऐप्स मोबाइल पर संपादन के लिए उपयोगी हैं।

मोबाइल फिल्म निर्माण की प्रक्रिया

  1. प्रीप्रोडक्शन:
    • कहानी का चयन करें: कहानी जितनी दिलचस्प होगी, दर्शकों पर उतना ही प्रभाव पड़ेगा।
    • स्क्रिप्ट लिखें: यह सुनिश्चित करें कि आपकी कहानी का हर दृश्य स्पष्ट हो।
    • लोकेशन तय करें: ऐसा स्थान चुनें जो कहानी के अनुकूल हो।
  2. प्रोडक्शन:
    • कैमरा एंगल्स: विभिन्न कोणों से शूटिंग करें ताकि वीडियो में विविधता आए।
    • प्रकाश: प्राकृतिक और कृत्रिम प्रकाश का संतुलन बनाए रखें।
    • ऑडियो पर ध्यान दें: परिवेशीय शोर से बचने की कोशिश करें।
  3. पोस्टप्रोडक्शन:
    • एडिटिंग: वीडियो को काट-छांट कर सही आकार दें।
    • साउंड मिक्सिंग: बैकग्राउंड म्यूजिक और डायलॉग्स को मिलाएं।
    • कलर करेक्शन: रंग संतुलन को सही करें ताकि फिल्म अधिक पेशेवर दिखे।

मोबाइल फिल्म निर्माण के फायदे

  1. रचनात्मकता का प्रदर्शन:
    सीमित संसाधनों में अपनी कला दिखाने का मौका मिलता है।
  2. सोशल मीडिया का सहयोग:
    फेसबुक, यूट्यूब, और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म पर अपनी फिल्म को तुरंत साझा किया जा सकता है।
  3. लचीलापन:
    किसी भी स्थान और समय पर फिल्म बनाई जा सकती है।
  4. शुरुआत के लिए आदर्श:
    नवोदित फिल्म निर्माताओं के लिए यह एक आदर्श मंच है।

मोबाइल फिल्म निर्माण की चुनौतियां

  1. तकनीकी सीमाएं:
    स्मार्टफोन कैमरा का सीमित ज़ूम और बैटरी लाइफ एक बड़ी चुनौती है।
  2. ऑडियो क्वालिटी:
    माइक्रोफोन के बिना ऑडियो की गुणवत्ता अक्सर खराब होती है।
  3. प्रोफेशनल उपकरणों की कमी:
    पारंपरिक कैमरों के मुकाबले मोबाइल में फीचर्स की कुछ सीमाएं होती हैं।

 

मोबाइल फिल्म निर्माण की सफलता की कहानियां

मोबाइल फिल्म निर्माण ने कई स्वतंत्र फिल्म निर्माताओं को पहचान दिलाई है। स्टीवन सोडरबर्ग जैसे फिल्म निर्माता ने भी मोबाइल से फिल्में बनाई हैं, जो दर्शाती हैं कि यह माध्यम कितना प्रभावी हो सकता है।

  1. “Tangerine”:
    यह पूरी तरह आईफोन 5S से शूट की गई फिल्म है, जिसे आलोचकों ने सराहा।
  2. “Unsane”:
    स्टीवन सोडरबर्ग द्वारा आईफोन से बनाई गई यह फिल्म एक बड़ी सफलता थी।
  3. शॉर्ट फिल्म्स और डॉक्यूमेंट्रीज:
    भारत में कई स्वतंत्र फिल्म निर्माता मोबाइल फिल्म निर्माण के माध्यम से अपनी कहानियां सुना रहे हैं।

सुशील मोदी

इंडिया बुक ऑफ़ रिकॉर्ड धारक

यूट्यूब क्रेयटर

फिल्म मेकर / एडिटर / डायरेक्टर

राष्ट्रीय बालश्री पुरस्कार (राष्ट्रपति पुरस्कार) विजेता: श्रेया खंडेलवाल
Shreya Khandelwal

श्रेया खंडेलवाल, (13-08-2003) जिन्होंने अपनी अद्वितीय अभिनय क्षमता से राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई, को राष्ट्रीय बालश्री पुरस्कार (जिसे राष्ट्रपति पुरस्कार के नाम से भी जाना जाता है) से सम्मानित किया गया है। यह पुरस्कार भारत सरकार द्वारा उन प्रतिभाशाली बच्चों को दिया जाता है जिन्होंने कला, साहित्य, संगीत और विज्ञान जैसे क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया हो। श्रेया ने अभिनय के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है।

राष्ट्रीय बालश्री पुरस्कार क्या है?
राष्ट्रीय बालश्री पुरस्कार, जिसे “राष्ट्रपति पुरस्कार” के नाम से भी जाना जाता है, बाल कला प्रतिभा को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। यह पुरस्कार 9 से 16 वर्ष की आयु वर्ग के बच्चों को दिया जाता है जिन्होंने अपने क्षेत्र में असाधारण प्रतिभा दिखाई हो। इसमें चार मुख्य श्रेणियाँ शामिल हैं:

  1. सृजनात्मक प्रदर्शन
  2. सृजनात्मक लेखन
  3. सृजनात्मक कला
  4. सृजनात्मक विज्ञान

श्रेया खंडेलवाल को “सृजनात्मक प्रदर्शन” की श्रेणी में अभिनय के लिए यह पुरस्कार प्रदान किया गया।

श्रेया खंडेलवाल का अभिनय क्षेत्र में योगदान
श्रेया ने बचपन से ही अभिनय के प्रति गहरी रुचि दिखाई। उनकी अभिनय कला में भावनाओं की गहराई, संवाद की स्पष्टता और चरित्र को जीवंत करने की अद्भुत क्षमता है। उन्होंने विभिन्न मंचों और प्रतियोगिताओं में भाग लेकर अपनी प्रतिभा को निखारा।
उनके अभिनय की खास बात यह है कि वह किसी भी चरित्र में बड़ी सहजता और विश्वास के साथ ढल जाती हैं। उनके प्रदर्शन में मानवीय संवेदनाएँ और गहरी समझ झलकती हैं, जो दर्शकों को भाव-विभोर कर देती हैं।

सम्मान समारोह और उपलब्धि


1.राष्ट्रीय बालश्री अभिनय पुरस्कार( “राष्ट्रपति पुरस्कार”)

2.ब्रांड एम्बेसडर,स्वच्छता अभियान,जबलपुर

3.सर्वश्रेष्ठ बालिका पुरस्कार-महिला,बाल विकास मंत्रालय

  1. डाक तार विभाग, भारत सरकार द्वारा मुझ पर “डाक टिकट” जारी
  2. गुरुधाम अवॉर्ड — उत्तरप्रदेश सरकार
  3. म. प्र. गौरव सम्मान
  4. ABZY COOL नेशनल चैनल के सीरियल “क्राइम स्टॉप” में महत्वपूर्ण भूमिका
  5. “राष्ट्रीय नृत्य समारोह” : वाराणसी एवं भुवनेश्वर में मंच संचालन
  6. राष्ट्रीय वी अवॉर्ड – दिल्ली
  7. विवेचना रंगमंडल, बालभवन, नाट्यलोक ,बंधुत्व और सोशल मीडिया के 60 से अधिक नाटकों तथा मोनोलॉग्स में विभिन्न भूमिकाएं। 50 से अधिक शहरों- गाँवों में प्रस्तुतियां
  8. 100 से अधिक सरकारी व गैरसरकारी कार्यक्रमों में मंच संचालन

13.स्वच्छता, रक्तदान, अधिक मतदान, वोकल फॉर लोकल,थैलेसीमिया उन्मूलन, देहदान- अंगदान-नेत्रदान, पर्यावरण संरक्षण, निशुल्क कन्या विवाह,कोरोना जागरुकता आदि अभियानों में सरकारी व गैरसरकारी स्तरों पर सक्रियता

  1. पत्रिका समूह द्वारा म. प्र. के 40 “प्रभावशाली अंडर 40” में चयन
  2. दैनिक भास्कर गरबा में “बेस्ट गरबा प्राइज़”
  3. नई दुनिया प्रतिभा सम्मान
  4. पं. ओंकार प्रसाद तिवारी अलंकरण
  5. निर्माणाधीन फ़िल्म “हर पल है यहां धोखा” में भूमिका
  6. राष्ट्रीय “खण्डेलवाल प्रतिभा सम्मान”
  7. अ. भा. सुमधुरा सखी सहेली का राष्ट्रीय “खण्डेलवाल मणि” अवॉर्ड
  8. राष्ट्रीय खण्डेलवाल युवा उत्सव, उज्जैन में मंच संचालन
  9. इंटरनेशनल डांसर “रत्ना दत्ता मेम ग्रुप” की नियमित मंच संचालिका
  10. “अंतर्राष्ट्रीय मातृ दिवस” पर मेरी मम्मी और मुझ पर फेसबुक पेज पर लिखे आलेख को दस लाख से अधिक बार देखा गया
  11. ऑनलाइन नेशनल न्यूज़ पोर्टल “खण्डेलवाल विचार” की सहसंपादक
  12. प्रिंट तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर लेखन, कविता , कार्यक्रम संचालन तथा उद्बोधन
  13. मेरी शाला स्मॉल वंडर्स द्वारा “ऑल टाइम अचीवर” अवॉर्ड
  14. मृत्योपरांत “अंगदान- देहदान-नेत्रदान” की घोषणा तथा नियमित “रक्तदान”

30.राष्ट्रीय खंडेलवाल “नारी शक्ति सम्मान” (अ.भा. खंडेलवाल महासभा ,जयपुर द्वारा)

  1. नई दुनिया नायिका सम्मान — 2023
  2. लोकमत जन्म शताब्दी अलंकरण
  3. ब्रांड एम्बेसडर — स्वयंयुग साहित्यिक प्रकाशन
  4. फ्रीलांस जर्नलिस्ट
  5. इंस्टाग्राम और फेसबुक में 150 से अधिक एक्टिंग रील्स

श्रेया खंडेलवाल के लिए यह पुरस्कार सिर्फ एक उपलब्धि नहीं, बल्कि उनके उज्ज्वल भविष्य की ओर पहला कदम है। उनके अभिनय के प्रति समर्पण को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि आने वाले समय में वह बड़े मंचों और फिल्मों में भी अपना योगदान देंगी।

श्रेया खंडेलवाल की सफलता यह प्रमाणित करती है कि भारत की युवा पीढ़ी में अपार प्रतिभा है। राष्ट्रीय बालश्री पुरस्कार जैसे सम्मान न केवल बच्चों के आत्मविश्वास को बढ़ाते हैं, बल्कि देश के सांस्कृतिक और कलात्मक विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। श्रेया की इस उपलब्धि पर हमें गर्व है और उनकी सफलता की कामना करते हैं कि वह अपने अभिनय से आगे भी देश का नाम रोशन करें।

 

संकलन

सुशील मोदी

इंडिया बुक ऑफ़ रिकॉर्ड धारक

यूट्यूब क्रेयटर

फिल्म मेकर / एडिटर / डायरेक्टर

Garha Dynasty (गढ़ा राजवंश) के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक योगदान
Garha Dynasty

Garha Dynasty (गढ़ा वंश) मध्य भारत का एक महत्वपूर्ण राजवंश था, जिसने विशेषकर गोंड जनजाति के लिए महत्वपूर्ण ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक योगदान दिया। ये राजवंश मुख्यतः वर्तमान मध्य प्रदेश में रहा और 14वीं से 18वीं शताब्दी तक शक्तिशाली शासन किया। इस वंश ने गढ़ा-मंडला (वर्तमान जबलपुर क्षेत्र) को अपनी राजधानी बनाकर कई महत्वपूर्ण नीतियों और संरचनाओं का निर्माण किया, जो उनके प्रभावशाली शासन का प्रतीक है। आइए, इस गढ़ा वंश के इतिहास, इसके शासकों, और इसकी विशेषताओं पर कुछ बिंदुओं पर चर्चा करते हैं, जिन पर एक पॉडकास्ट तैयार किया जा सकता है:

1. गढ़ा वंश का उदय

  • गढ़ा वंश का उदय लगभग 14वीं शताब्दी में माना जाता है। इसे स्थापित करने का श्रेय मुख्य रूप से गोंड शासकों को जाता है।
  • वंश के प्रारंभिक शासक कबीलों के प्रमुख थे, जो धीरे-धीरे शक्तिशाली बन गए और एक संगठित शासन प्रणाली स्थापित की।
  • इस दौरान गढ़ा वंश ने मध्य भारत में एक महत्वपूर्ण शक्ति बनकर उभरना शुरू किया।

2. संग्राम सिंह का शासनकाल

  • गढ़ा वंश के सबसे प्रसिद्ध शासकों में से एक संग्राम सिंह थे, जिन्होंने 16वीं शताब्दी में शासन किया।
  • संग्राम सिंह के शासन में वंश की शक्ति और संपत्ति का विस्तार हुआ और गढ़ा-मंडला एक समृद्ध राज्य बन गया।
  • उन्होंने मुस्लिम शासकों से कई युद्ध किए और अपनी स्वतंत्रता बनाए रखी, जो उनके शौर्य और दृढ़ता का परिचायक है।

3. रानी दुर्गावती और उनका संघर्ष

  • गढ़ा वंश की सबसे प्रसिद्ध शासक रानी दुर्गावती थीं, जो अपनी वीरता और बलिदान के लिए जानी जाती हैं।
  • 1564 में, अकबर के सेनापति आसफ खान ने गढ़ा वंश पर आक्रमण किया। रानी दुर्गावती ने वीरता के साथ युद्ध किया और आखिरी क्षण तक संघर्ष किया।
  • रानी दुर्गावती की मृत्यु के बाद गढ़ा वंश का प्रभाव कम हो गया, लेकिन उनका साहस आज भी प्रेरणा का स्रोत है।

4. गढ़ा वंश की संस्कृति और कला

  • गढ़ा वंश के शासनकाल में क्षेत्रीय कला और वास्तुकला का विकास हुआ। उन्होंने किलों, मंदिरों और जलाशयों का निर्माण करवाया।
  • गोंड कला और शिल्प के संरक्षण में गढ़ा वंश का महत्वपूर्ण योगदान रहा। उनकी संस्कृति में प्रकृति का सम्मान और जनजातीय परंपराओं का अद्वितीय स्थान था।

5. गढ़ा वंश का पतन और उत्तराधिकार

  • 16वीं शताब्दी के बाद, मुगलों के आक्रमण और अन्य बाहरी शक्तियों के दबाव से गढ़ा वंश कमजोर हो गया।
  • 18वीं शताब्दी में, मराठों ने इस क्षेत्र पर अधिकार कर लिया और गढ़ा वंश का अंत हो गया।

6. गढ़ा वंश का योगदान और विरासत

  • गढ़ा वंश ने गोंड जनजाति और मध्य भारत की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित किया। उनके शासनकाल के दौरान गोंड समाज की उन्नति हुई।
  • उनकी कहानियां आज भी लोककथाओं और साहित्य में जीवित हैं। रानी दुर्गावती का बलिदान और उनकी वीरता भारतीय इतिहास में अनूठी मिसाल हैं।

रानी दुर्गावती (1524-1564) गढ़ा-मंडला राज्य की एक साहसी और वीर शासिका थीं, जिनका शासन मध्य प्रदेश के गोंडवाना क्षेत्र पर था। उनका नाम इतिहास में उनकी अदम्य साहस, कुशल नेतृत्व और मातृभूमि के प्रति प्रेम के लिए अमर है। रानी दुर्गावती का जन्म कालिंजर के चंदेल राजवंश में राजा कीरत राय के घर हुआ था। चंदेल वंश अपने युद्ध-कौशल और वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध था, और रानी दुर्गावती ने अपने इस राजवंश की गौरवशाली परंपरा को गर्व से आगे बढ़ाया। उनका विवाह गोंड राजा दलपत शाह से हुआ था, जो गढ़ा-मंडला के शक्तिशाली शासक संग्राम शाह के पुत्र थे।

रानी दुर्गावती का शासन और उपलब्धियाँ

  1. कुशल शासिका: अपने पति दलपत शाह की मृत्यु के बाद, रानी ने अपने तीन साल के पुत्र वीर नारायण के साथ गढ़ा-मंडला की सत्ता संभाली। उन्होंने न केवल एक मातृत्वपूर्ण शासिका की तरह राज्य की देखरेख की बल्कि उसे मजबूत और सुरक्षित बनाया।

  2. प्रशासनिक सुधार: रानी दुर्गावती ने प्रशासनिक ढांचे को मजबूत किया और अपने राज्य की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया। उनके शासनकाल में कृषि और व्यापार का विकास हुआ। उन्होंने कई जलाशयों का निर्माण करवाया जिससे राज्य में पानी की आपूर्ति सुनिश्चित हो सके।

  3. युद्ध कौशल: रानी दुर्गावती घुड़सवारी, धनुर्विद्या और तलवारबाजी में निपुण थीं। उनके पास अच्छी तरह प्रशिक्षित सेना थी, जिसमें हाथी सेना और घुड़सवार भी शामिल थे।

  4. रायगढ़ किला: रानी ने रायगढ़ किले को अपनी राजधानी बनाया और इसे एक प्रमुख दुर्ग में परिवर्तित किया। इस किले की सुरक्षा और व्यवस्था में उनकी गहरी रुचि थी।

अकबर के साथ संघर्ष

1564 में, मुगल सम्राट अकबर के सेनापति आसफ खान ने गढ़ा-मंडला पर आक्रमण किया। मुगलों ने गढ़ा-मंडला को एक समृद्ध राज्य के रूप में देखा और उसकी संपत्ति को लूटने का उद्देश्य रखा। रानी दुर्गावती ने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए इस आक्रमण का डटकर मुकाबला किया।

रानी ने अपने सैनिकों के साथ शौर्य का प्रदर्शन करते हुए युद्ध का नेतृत्व किया। जब युद्ध में उनकी सेना कमजोर पड़ने लगी और स्थिति विकट हो गई, तब उन्होंने अपनी वीरता और स्वाभिमान का परिचय देते हुए आत्मबलिदान करना उचित समझा। उन्होंने खुद को एक तलवार से मार डाला, ताकि उन्हें दुश्मन के हाथों अपमानित न होना पड़े।

रानी दुर्गावती की विरासत

  1. स्वतंत्रता और स्वाभिमान: रानी दुर्गावती का जीवन और बलिदान आज भी साहस, स्वाभिमान और देशभक्ति की मिसाल के रूप में देखा जाता है। उन्होंने न केवल गढ़ा-मंडला को एक मजबूत राज्य बनाया बल्कि अपने साहसिक निर्णयों से हर भारतीय को प्रेरणा दी।

  2. लोककथाओं और साहित्य में स्थान: रानी दुर्गावती की वीरता की कहानियां आज भी भारत के विभिन्न क्षेत्रों की लोककथाओं और साहित्य में जीवित हैं। उनकी कहानियां एक वीर नारी के प्रतीक के रूप में गाई और सुनाई जाती हैं।

  3. दुर्गावती संग्रहालय: जबलपुर में स्थित दुर्गावती संग्रहालय उनकी स्मृति को जीवित रखता है और उनके जीवन तथा शासनकाल से जुड़ी वस्तुओं का संग्रह दर्शाता है।

UIDAI Sespension of Mantra 110
Sespension of Mantra 110
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ग्रहों से संबंधित वस्तुएँ भाग 2
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मंगल नेक-मंगल सूर्य का मित्र है। जब इसे सूर्य का साथ मिले तो मंगल नेक बन जाता है। स्वभाव से मंगल लड़ाकू है तथा यह खून करने और कराने का कारक है। मंगल में बदला लेने की भावना अधिक है। यदि उसे कोई नुकसान पहुँचाए तो वह उसी के बारे में सोचता रहता है। दूसरी तरफ हमेशा सच्चाई का साथ देता है और सोच-समझकर बात करता है।
यह लड़ाकू स्वभाव का है फिर भी किसी से नाइंसाफी नहीं करता।

मंगल नेक हमेशा बहुत हौसला रखता है। यह भाई का कारक भी है। जन्म कुंडली देखकर भाइयों के बारे में पता चलता है। मंगल का रंग लाल है परन्तु ऐसा लाल जिसमें चमक नहीं। इसलिए बिना चमक वाला मूँगा इसका पत्थर है। मंगल नेक हो तो बिना चमकं वाला पत्थर पहनना इसका उपाय है।

हमारे शरीर के अंगों में यह जिगर का कारक है। जिगर की सभी बीमारियाँ मंगल बद के कारण होती हैं।

पोशाक में इसका कारक बास्केट या जैकेट है जो हमें सर्दी में गर्मी तथा सुख देती है। साथ में हमारी सुन्दरता बढ़ाती है।

वृक्षों में नीम मंगल नेक का कारक है जो बहुत सारी बीमारियों से मनुष्य की रक्षा करता है तथा कीटाणुओं को नष्ट करता है। यह मंगलमय भी माना जाता है क्योंकि भारतीय संस्कृति में बच्चे के पैदा होने पर नीम के पत्तों की वंदनवार घर के मुख्य द्वार पर बाँधी जाती है।

मंगल बद उसे कहते हैं जब उसके साथ केतु-शनि बुध या राहु बैठा हो। केतु के साथ मंगल शेर तथा कुत्ता कहा जाता है यानी शेर और केतु के समान. फल देता है। कुंडली में यदि सूर्य शनि एक साथ हों तो मंगल बद या अशुभ हो जाता है। इसी तरह मंगल के साथ बुध होने से भी मंगल का फल अच्छा नहीं रहता। राहु तथा मंगल का फल भी बद है क्योंकि राहु मंगल से दबा रहता है। परन्तु यदि राहु की दृष्टि मंगल पर पड़े तो मंगल का फल खराब हो जाता है जिसके कारण पेट या खून की खराबियों से जिस्म के दाएँ हिस्से पर सख्त तकलीफ हो सकती है।

मंगल अगर पहले घर में बैठा हो तो यह किस्मत को जगा देता है और यदि इसके साथ सूर्य और चन्द्र के उपाय के साथ इसका फल और भी अच्छा हो जाता है। लेकिन पापी ग्रह जैसे राहु केतु या अशुभ शनि से मंगल का फल बहुत अशुभ हो जाता है। पहले घर के मंगल को मैदाने

जंग का शूरवीर कहा है और इंसाफ की तलवार भी कहकर पुकारा है। बुध-बुध व्यापारी है। अपने ग्राहकों को सामान बेचते समय -जी-कुजूरी तथा नर्मी से बात करता है इसकी जुबान में मिठास है। यह बर्तन बनाने वाले ठठियार के समान है तथा जरूरत के समय जैसा चाहे बर्तन बना देता है तथा बातों में लगाकर सभी को प्रसन्न कर सकता है।

यह जुबान का मालिक है और जुबान से काम लेता है और किसी को भी जुबान के चक्र में डालकर अपना काम निकलवा लेता है। यह नसीहत देने में बहुत माहिर है। हर चीज के बारे में अपनी राय रखता है। कभी-कभी इसकी नसीहत पुरुष को गलत रास्ते पर भी ले जाती है। यह बहुत जल्दी सबको मित्र बनाता है।

बुध जिसका अच्छे स्थान पर है वह जातक जुबान का मीठा, दिमाग से तेज होगा।

पोशाक में यह पेट के नीचे के वस्त्रों का कारक है। जैसे तडागी पेटी और नाड़ा।

पशुओं की जाति में यह बकरा-बकरी, भेड़ तथा चमगादड़ के समान है। फलों में यह केले का वृक्ष है, जिसके पत्ते चौड़े हों।

शनि-शनि एक अक्खड़ तरखान की तरह है। यह मेहनती मजदूर भी है तथा कठिन से कठिन कार्य भी कर सकता है। यह एक हथियार की तरह लोहे के सख्त से सख्त कार्य भी कर सकता है। परन्तु इसे अपने काम में हस्तक्षेप पसन्द नहीं है।

यह हर कार्य पूर्णतया होशियारी और चालाकी से करता है। कोई ग्रह इससे मेल नहीं खाता। इसको नमस्कार भी करना हो तो पीठ पीछे हाथ बाँधकर जाता है। इसकी दृष्टि बहुत ही पैनी है जो किसी को पता भी नहीं चलता है और यह सब देखता रहता है। यहाँ तक कि इसमें जादू-मंत्र देखने-दिखाने की शक्ति भी है।

पोशाक में यह हमारे जुराब और जूते हैं जिसके बगैर मनुष्य चलने की सोच भी नहीं सकता ।

पशुओं में यह भैंस या भैंसे का कारक है। अगर घर में कोई बाधा हो तो भैंसे को घर के अन्दर लाकर सारे घर में चक्कर लगवाना चाहिए। इस तरह जिन्न-भूत डरकर घर से भागते हैं।
शनि मौत का भी कारक है। पेड़ों में यह कीकर, आक, खजूर का पेड़ है जो यात्री को छाया नहीं देता। दूसरे शब्दों में यह फिजूल में किसी का मददगार नहीं होता।

राहु-राहु जाति से भंगी और शूद्र है। राहु का सम्बन्ध गन्दगी से है। परन्तु गन्दगी के साथ-साथ यह सफाई भी करता है। भंगी या शूद्र का मतलब यह नहीं कि यह इतना सीधा-सादा है कि इसकी बुद्धि भी शूद्र के समान होगी। अगर ध्यान से सोचें तो राहु बहुत चालाक ग्रह है पर यह काम शूद्रों जैसा करता है और यह मक्कारी के साथ मनुष्य को उल्टे चक्र में डाल देता है। इसके बारे में अन्दाजा लगाना बहुत कठिन है कि यह आगे कौन-सी चाल चलेगा। यह एक गुप्त खोजी की तरह काम करता है और यह बिजली की तरह तेजी से कार्य कर जाता है और मनुष्य में डर तथा शत्रुता जल्दी से पैदा कर देता है।

शक्ति को यह अचानक ही परेशान कर देता है जिससे मनुष्य की बुद्धि अचानक काम कर देना बन्द कर देती है। परन्तु इसके साथ ही यह रास्ता भी दिखाने वाला है।

धातुओं में नीलम सिक्का तथा गोमेद का कारक है। जब कभी राहु गलत स्थान पर बैठ जाए तो नीलम धारण करना शुभ रहेगा। परन्तु उसके साथ ही राहु के बद होने पर इसका उपाय सिक्का बहाना है और गोमेद भी इसी की कारक धातु है।

शरीर के अंगों में यह सारे शरीर के बिना सिर्फ सिर का यानि दिमाग का कारक है। कई बार राहु के साथ यदि चन्द्रमा की युति हो जाए तो मनुष्य का दिमाग पागल भी हो जाता है। यह शरीर के अंगों में ठोड़ी का हिस्सा भी है जो मुख की सुन्दरता बनाती है।

पोशाक में यह हमारा पाजामा या पतलून है जो मनुष्य की शर्म को ढकता है। नंगा व्यक्ति तो किसी के सामने आने पर पागल ही कहलाएगा। पशुओं में यह हाथी के समान ताकतवर है जो भारी से भारी कठिन कार्य करता है तथा कठिन राहों पर चलकर बोझा उठाता है। साथ में यह काँटेदार जंगली चूहा है।
पेड़ों में यह नारियल का पेड़ तथा घास काटने वाला कुत्ता। केतु-केतु अपनी मनमर्जी के कार्य करता है इसके लिए संसार के

बन्धनों की कोई शर्त नहीं। यह राहु की तरह चालाक नहीं। यह पेशे से कुली के सामान भारी कार्य करता है तथा भार उठाने वाला मजदूर है। इसकी सुनने की शक्ति बहुत तेज है जो पाँव की आहट से ही किसी के आने-जाने की आवाज भाँप लेता है।

केतु में किसी प्रकार की शर्म नहीं कि कोई अनजान व्यक्ति है या जानकार। यह सभी से बातचीत करने में नियम है। यह दो रंगा पत्थर है जिसे हम वैदूरय कहते हैं।

शरीर के अंगों में यह सिर के बगैर शरीर है जिसमें दिमाग की कमी • है। परन्तु यह कान, रीढ़ की हड्डी, घुटने पेशाब करने की जगह तथा शरीर के जोड़ हैं। जब यह अशुभ है तो शरीर के इन्हीं अंगों में तकलीफ – पैदा करता है, जैसे रीढ़ की हड्डी में दर्द होना, जोड़ों का दर्द, पेशाब की बीमारी आदि ।

पोशाक में यह पटका-कंबल और ओढ़नी है।

पशुओं में यह कुत्ता, गधा, सुअर, नर या मादा दोनों, छिपकली, पौधों में इमली का पेड़, तिल के पौधे तथा केला फल।

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ग्रहों से संबंधित वस्तुएँ
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बृहस्पति-…पेशे में वह सुनार का कार्य करे तो सफलता, पूजा-पाठ उसके लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा। अन्दर से वह पंडित स्वरूप पेशवा होगा पढ़ा-लिखा ज्ञानी दूसरों को ज्ञान बाँटने का परि सोना बृहस्पति की वस्तुएँ हैं इसलिए सोने के काम करने वाला सुनार भी बृहस्पति है।

यह हवा और सांस का कारक है। इसी से हमारा जीवन चलता है और गुरु और सुख का कारक भी बृहस्पति है। शक्ति के लिहाज से बृहस्पति में सांस लेने और दिलाने की शक्ति है। दूसरे शब्दों में यह हमारे जीवन की सांस आने और जाने की कला का हाकिम है।

हमारे शरीर के अंगों में से गर्दन बृहस्पति का सबसे बड़ा कारक है। जब तक गर्दन कायम है तो मनुष्य जीवित है। गर्दन झुक जाती है तो आदमी की मौत की निशानी है तथा जीते जी शर्मिन्दा होने का कारण है।

इसी प्रकार माथे और नाक के अगले हिस्से से भी बृहस्पति का सम्बन्ध है। बृहस्पति मन्दा होने की निशानी यह होगी कि इन हिस्सों में तकलीफ हो सकती है या बीमारी हो सकती है।

हमारी पोशाक में से बृहस्पति पगड़ी या टोपी का कारक है। दूसरे शब्दों में पगड़ी ही सिर को ढकती है और इज्जत बनाए रखती है। सिर से पगड़ी उतर जाए तो यह शर्मिन्दगी की निशानी है। पशुओं में से बबर शेर या शेरनी का कारक बृहस्पति है। दूसरे शब्दों में यह सबसे बहादुर ग्रह है। वृक्षों में यह पीपल का पेड़ है इसलिए इसे खुश करने के लिए पीपल के पेड़ की पूजा जरूरी समझा गया है।

सूरज-…..सूर्य अपनी जाति के अनुसार क्षत्रिय है जो लड़ने-मरने को हमेशा
तैयार रहता है और अपनी बहादुरी के लिए हमारे ग्रन्थों में जाना जाता है।

सूर्य में आग बहुत है इसलिए यह हमारे सभी अंगों को कंट्रोल करता है। मनुष्य के अन्दर की गर्मी ही मनुष्य को जीवित रखती है। कहने में आता है कि मनुष्य में अब कुछ नहीं रहा, यह तो ठंडा पड़ गया है। यह हमारी बुद्धि का भी कारक है तथा विद्या देने वाला है।

सूर्य से ही सारे संसार को रोशनी मिलती है। दूसरे शब्दों में सूर्य से ही हमारे सारे कार्य चलते हैं। यह संसार वाहक है। इसी से सारे संसार का भोजन पैदा होता है तथा खाना पकता है।

सूर्य की धातुएँ माणिक ताँबा तथा शिलाजीत हैं जो मनुष्य को हर प्रकार की ताकत प्रदान करती है। हमारे शरीर का दायाँ भाग भी सूर्य है। सूर्य सेहरा या कलगी का कारक है, बड़े आदमी या हाकम की निशानी है। जीत के तौर पर ही कलगी लगाई जाती है।

सूर्य कपिला गाय का कारक है जो संसार को वार देती है। इसलिए उपाय के तौर पर कपिला गाय को उसकी कारक वस्तु देते हैं तथा उसकी पूजा करते हैं। वृक्ष में यह तेज फल का वृक्ष है जो हमारे शरीर में गर्मी पैदा करता है तथा कई प्रकार की बीमारियों से छुटकारा देता है।

चन्द्र-….चन्द्रमा मन का कारक है जिससे मन में शान्ति या उथल-पुथल बनी रहती है। चन्द्रमा के कारण जातक में सुख-शान्ति बनी रहती है। यह शान्त स्वभाव का भी कारक है। यह माँ की ममता, दुलार, सुख, माता-पिता तथा अपने बुजुर्गों की सेवा की शक्ति प्रदान करने वाला है।

चन्द्रमा के कारण दयालुता-दूसरों का भला करने वाला तथा दूसरों पर दया करने वाला भोला व्यक्ति जिसमें ज्यादा फेरबदल या चालाकी न हो और जल्द ही मान जाने वाला हठी या जिद्दी न हो अर्थात यह मन का या दिल का कारक है जो दिल से ज्यादा काम लेता है।

चन्द्रमा की धातुएँ चाँदी, मोती तथा दूध का रंग यानि दूध रंग है। वह हमारे शरीर का बायाँ भाग है। हमारी पोशाक में चन्द्रमा धोती परना का कारक है।

चन्द्र घोड़ा घोड़ी का कारक है जिसमें बहुत सहनशक्ति होती है
तथा साथ में ताकत भी होती है। यह मनुष्य को कठिन रास्तों से पार ले जाता है तथा कठिनाइयों में भी संतुलन बनाए रखता है। वृक्षों में यह पोस्त का हरा पौधा है जिससे दूध निकलता है। इसमें नशा होता है। यह ऐसा नशा है जिसे भूलकर आदमी मस्ती में आ जाता है। चन्द्र का देवता शिवजी है जो पोस्त पीए रखते हैं तथा हमेशा मस्ती में खुश रहते हैं।

शुक्र-….शुक्र प्यार, लगन, दिल की शान्ति, ऐशपसन्दगी का कारक है। यह जीवन के हुनर को जानता है। दूसरे शब्दों में यह ऐसा कुम्हार है जो अपनी इच्छा के अनुसार हर प्रकार के घड़े बनाता है जो हमेशा भरे रहते हैं और जरूरत के मुताबिक काम आते हैं। इस प्रकार यह हुनर के तौर पर चीजों की सर्जना करता है। इसीलिए यह खेतीबाड़ी दर्शाता है और सुन्दरता से भरी वैश्या की तरह है जो तरह-तरह के नाच दिखाती है और दूसरों के मन को खुश करती है। इससे काम-वासना भी उत्पन्न होती है।

शुक्र मिट्टी का भी कारक है और मिट्टी से कई प्रकार की उत्पत्ति होती है। मिट्टी के खेलों से खेलते हुए यह गृहस्थ आश्रम के उसूलों का पालन करता है। शरीर में यह गाल का कारक है जो चेहरे की सुन्दरता को बढ़ाता है।

शुक्र पशुओं में बैल या गाय का कारक है। बैल खेती में हमारी मदद करता है तथा गाय दूध देकर हमारे शरीर को शक्ति प्रदान करती है, अन्त समय में गाय की पूँछ पकड़कर व्यक्ति बैतरणी नदी को पार कर जाता है। ऐसा हमारे ग्रन्थों का कहना है। यह पौधों में कपास का पौधा जो सफेद खिला होता है तथा हर तरफ अपनी मुस्कुराहट फैलाता है तथा इसी पौधे के कपड़े बनते हैं जो हमारे शरीर को ढकते हैं और हमें गर्मी-सर्दी से बचाते हैं

पितृ दोष
पितृ दोष : पितरों के दिन आने वाले हैं

सामान्यत: व्यक्ति का जीवन सुख-दुखों से मिलकर बना है.

पूरे जीवन में एक बार को सुख व्यक्ति का साथ छोड़ भी दे लेकिन दु:ख किसी न किसी रुप में उसके साथ बना ही रहता है।

अब फिर वे चाहे संतानहीनता, नौकरी में असफलता, धन हानि, उन्नति न होना, पारिवारिक कलेश आदि के रुप में भी हो सकते हैं।

सूर्य -राहु से बनता है पित्र दोष और ग्रहण दोष ।

जब कुंडली में राहु और सूर्य की युति होती है तो पितृ दोष का निर्माण होता है.

पितृ दोष सभी तरह के दुखों को एक साथ देने की क्षमता रखता है.

इसलिए हिंदू धर्म में सबसे पहले देव पूजा या घर में कोई भी शुभ कार्य होता है तो सबसे पहले पितरों का नाम लिया जाता है पितरों की पूजा होती है उसके बाद में कोई भी शुभ कार्य होते हैं।

देव पूजन से पूर्व पितरों की पूजा करनी चाहिए क्योकि देव कार्यों से अधिक पितृ कार्यों को महत्व दिया गया है।

इसलिए देवों को प्रसन्न करने से पहले पितरों को तृप्त करना चाहिए.

पितर कार्यों के लिए सबसे उतम पितृ पक्ष अर्थात अश्विन मास का कृष्ण पक्ष समझा जाता है।

कैसे होता है कुंडली में पित्र दोष या पित्र ऋण।

कुंडली के नवम भाव को भाग्य भाव कहा गया है. इसके साथ ही यह भाव पित्र या पितृ या पिता का भाव तथा पूर्वजों का भाव होने के कारण भी विशेष रुप से महत्वपूर्ण हो जाता है.

कुंडली के अनुसार पूर्व जन्म के पापों के कारण पितृ दोष बनता है.

इसके अलावा इस योग के बनने के अनेक अन्य कारण भी हो सकते हैं.इसके साथ साथ ग्रहण योग भी बनता है।

ज्योतिष के अनुसार सूर्य और राहु एक साथ जिस भाव में भी बैठ​ते हैं, उस भाव के सभी फल नष्ट हो जाते हैं.

नवम भाव में और पंचम भाव में सूर्य और राहु की युति से पितृ दोष का निर्माण होता है.

नवम भाव पिता का भाव है और सूर्य को पिता का कारक माना जाता है. साथ ही उन्नति, आयु, धर्म का भी कारक माना जाता है.

इस कारण जब पिता के भाव पर राहु जैसे पापी ग्रह की छाया पड़ती है तो पितृ दोष लगता है

. पितृ दोष कुंडली में मौजूद ऐसा दोष है जो व्यक्ति को एक साथ तमाम दुख देने की क्षमता रखता है.

पितृ दोष लगने पर व्यक्ति के जीवन में समस्याओं का अंबार लगा रहता है.

ऐसे लोगों को कदम कदम पर दुर्भाग्य का सामना करना पड़ता है.

परिवार आर्थिक संकट से जूझता रहता है, व्यक्ति को उसकी मेहनत का पूरा फल प्राप्त नहीं होता है,

इस कारण तरक्की बाधित होती है. संतान सुख आसानी से प्राप्त नहीं होता. इस कारण जीवन लगातार उतार चढ़ावों से जूझता रहता है।

पितृ दोष की वजह समझने से पहले ये जानना जरूरी है

कि पितर होते कौन हैं।

दरअसल पितर हमारे पूर्वज होते हैं जो अब हमारे मध्य में नहीं हैं.

लेकिन मोहवश या असमय मृत्यु को प्राप्त होने के कारण आज भी मृत्युलोक में भटक रहे हैं.

इस भटकाव के कारण उन्हें काफी परेशानी झेलनी पड़ती है और वो पितृ योनि से मुक्त होना चाहते हैं।

लेकिन जब वंशज पितरों की तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक विधि विधान से श्राद्ध कर्म नहीं करते हैं,

धर्म कार्यो में पितरों को याद न करते हैं, धर्मयुक्त आचरण नहीं करते हैं और किसी निरअपराध की हत्या करते हैं,

ऐसी स्थिति में पूर्वजों को महसूस होता है कि उनके वंशज उन्हें पूरी तरह से भुला चुके हैं.

इन हालातों में ही पितृ दोष उत्पन्न होता है और ये कुंडली के नवम भाव में राहु और सूर्य की युति के साथ प्र​दर्शित होता है।

पितृदोष हमेशा तीसरी पीढ़ी पर लगता है जब हमारे पूर्वज पितरों की शांति नहीं करते तो यह हमारी संतान पर तीसरी पीढ़ी पर आकर लग जाता है और आगे फिर संतान वृद्धि में परेशानियां होने लगती है।

जिन लोगों की कुंडली में पित्र दोष है वह लोग पित्र दोष के उपाय कर सकते हैं

पितरों को खुश करना सबसे आसान काम है क्योंकि यह आपको प्रत्यक्ष देखने को मिलता है।

पित्र खुश तो सब देव खुश

क्योंकि हम पितरों की ही संतान है उन्हीं के डीएनए से हम हैं और वह हमें ज्यादा दिन परेशान नहीं करते बस थोड़ा सा उनकी तिथि पर उनको याद किया जाए

जैसे हम खुद के लिए सारी चीजें करते हैं वैसे ही पितरों के लिए किया जाए जीवन बहुत सुख मई हो जाता है और पित्र हमें हमेशा आशीर्वाद देते हैं ।

अगर आपके घर में किसी की कुंडली में भी पितृ दोष बना हुआ है तो उसका निवारण जरूर करवाएं