शारदीय नवरात्रि 2025
शारदीय नवरात्रि 2025 शुभ मुहूर्त

नवरात्रि, जिसका शाब्दिक अर्थ ‘नौ रातें’ है, हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह शक्ति की देवी, दुर्गा, को समर्पित है, जो ब्रह्मांड की सृजन, पालन और संहारक शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं। यह पर्व मुख्य रूप से वर्ष में दो बार मनाया जाता है: चैत्र नवरात्रि, जो वसंत ऋतु में आती है, और शारदीय नवरात्रि, जो शरद ऋतु के आगमन का प्रतीक है। शारदीय नवरात्रि का विशेष महत्व है क्योंकि यह माँ दुर्गा की महिषासुर पर विजय की कथा से जुड़ा है, और इसका समापन दसवें दिन विजयादशमी के रूप में होता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। यह नौ दिन साधकों के लिए गहन आध्यात्मिक अभ्यास, व्रत और देवी के नौ रूपों की पूजा का समय होता है।

शारदीय नवरात्रि शुभ मुहूर्त

●वर्ष 2025 में शारदीय नवरात्रि का पावन पर्व सोमवार, 22 सितंबर से शुरू हो रहा है । इस वर्ष यह पर्व नौ की बजाय दस दिनों का होगा । यह एक अत्यंत शुभ लक्षण है, क्योंकि एक तिथि का बढ़ना अत्यधिक फलदायी माना जाता है। इस बार चतुर्थी तिथि 25 और 26 सितंबर दोनों दिन रहेगी, जिससे पर्व की अवधि में वृद्धि होगी ।

●पंचांग के अनुसार, घटस्थापना (कलश स्थापना) का मुहूर्त प्रतिपदा तिथि 22 सितंबर को देर रात 1:26 बजे से शुरू होकर 23 सितंबर को रात 2:57 बजे तक रहेगी । कलश स्थापना के लिए दो अत्यंत शुभ मुहूर्त हैं:

●प्रातः काल का मुहूर्त: सुबह 6:15 बजे से सुबह 7:46 बजे तक ।

●अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 11:55 बजे से 12:43 बजे तक ।

पर्व का समापन 2 अक्टूबर को विजयादशमी के साथ होगा, जिस दिन रावण दहन की परंपरा होती है ।

🔴देवी के वाहन का महत्व

●देवी का आगमन और प्रस्थान सप्ताह के उस दिन के अनुसार होता है, जिस दिन नवरात्रि का प्रारंभ होता है । चूँकि इस साल शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ सोमवार, 22 सितंबर को हो रहा है, माँ दुर्गा का आगमन गज (हाथी) पर होगा । हाथी पर सवार होकर आना एक अत्यंत शुभ लक्षण माना जाता है । यह पूरे वर्ष सुख-समृद्धि और सौभाग्य का संचार करने का प्रतीक है । इसके विपरीत, प्रस्थान का वाहन मनुष्य है, जो एक अलग प्रतीकात्मक अर्थ रखता है ।

🔴 नवरात्रि की उत्पत्ति

●नवरात्रि का पौराणिक आधार महाशक्ति दुर्गा की महासुर महिषासुर पर विजय की कहानी से जुड़ा है । पौराणिक कथा के अनुसार, महिषासुर नामक एक अत्यंत शक्तिशाली दानव था, जिसका जन्म एक ऋषिवर और एक भैंस के मिलन से हुआ था । अपनी कठोर तपस्या से उसने ब्रह्मा से यह वरदान प्राप्त कर लिया था कि उसे कोई भी देवता या पुरुष नहीं मार पाएगा; उसकी मृत्यु केवल एक स्त्री के हाथों से ही संभव थी । इस वरदान के अहंकार में चूर होकर, महिषासुर ने तीनों लोकों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। उसने स्वर्ग पर आक्रमण कर देवताओं को पराजित कर दिया, जिसमें भगवान विष्णु और शिव भी शामिल थे ।

अपनी हार से हताश होकर, सभी देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास सहायता के लिए पहुँचे। अपनी सामूहिक ऊर्जाओं को एक साथ मिलाकर, इन देवताओं ने एक नई, सर्वोच्च नारी शक्ति का निर्माण किया, जिसे दुर्गा कहा गया । इस प्रक्रिया में, प्रत्येक देवता ने अपने विशिष्ट हथियार देवी को प्रदान किए। शिव ने अपना त्रिशूल दिया, विष्णु ने अपना चक्र दिया, वरुण ने शंख दिया, और अन्य देवताओं ने भी अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र दिए । हिमवान ने उन्हें सिंह का वाहन भेंट किया । यह प्रतीकात्मक रूप से दर्शाता है कि देवी दुर्गा कोई अलग शक्ति नहीं हैं, बल्कि वे सभी दिव्य शक्तियों का एक एकीकृत और अंतिम रूप हैं ।

इसके बाद, देवी दुर्गा ने अपनी भयंकर गर्जना से महिषासुर के असुरों को युद्ध के लिए चुनौती दी । नौ दिनों तक चले इस भयंकर युद्ध में, महिषासुर ने विभिन्न मायावी रूप धारण कर देवी को छलने का प्रयास किया। कभी वह एक क्रूर शेर बनता, तो कभी एक विशाल हाथी । अंत में, नौवें दिन, देवी ने अपने चक्र से महिषासुर का सिर काट दिया, जिससे धर्म की विजय हुई और ब्रह्मांडीय व्यवस्था पुनः स्थापित हुई ।

🔴नवरात्रि में जिन नौ देवियों की पूजा होती है, वे कोई अलग-अलग देवता नहीं हैं, बल्कि वे एक ही महाशक्ति के नौ अलग-अलग स्वरूप हैं । ये नौ स्वरूप मानव चेतना के विभिन्न आध्यात्मिक चरणों और गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो हमें अज्ञानता से मुक्ति की ओर ले जाते हैं।

●शैलपुत्री (पहला दिन): हिमालय की पुत्री, ये देवी किसी भी अनुभव के शिखर पर स्थित दिव्यता का प्रतीक हैं। वे जीवन में स्थिरता और समृद्धि लाती हैं ।

●ब्रह्मचारिणी (दूसरा दिन): यह स्वरूप गहन तपस्या और शुद्ध, अछूती ऊर्जा का प्रतीक है। उनकी पूजा से साधक को स्वतः ही सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं ।

●चंद्रघंटा (तीसरा दिन): यह रूप मन को मोहित करने वाली सुंदरता का प्रतीक है। ये सभी प्राणियों में मौजूद सौंदर्य का स्रोत हैं ।

●कूष्माण्डा (चौथा दिन): इन्हें प्राण ऊर्जा का पुंज माना जाता है, जो सूक्ष्मतम जगत से लेकर विशालतम ब्रह्मांड तक फैली हुई है। ये निराकार होकर भी सभी रूपों को जन्म देती हैं ।

●स्कंदमाता (पांचवां दिन): ये संपूर्ण ब्रह्मांड की संरक्षिका और सभी ज्ञान प्रणालियों की जननी हैं ।

●कात्यायनी (छठा दिन): चेतना के द्रष्टा पहलू से निकलने वाली ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो सहज ज्ञान की शक्ति लाती हैं। इन्हें मन की शक्ति भी कहा गया है, और रुक्मिणी ने भगवान कृष्ण को पति के रूप में पाने के लिए इनकी आराधना की थी ।

●कालरात्रि (सातवां दिन): ये गहन, अंधकारमय ऊर्जा का प्रतीक हैं, जो अनंत ब्रह्मांडों को धारण करती हैं। ये हर आत्मा को सांत्वना और शांति प्रदान करती हैं

●महागौरी (आठवां दिन): यह सुंदरता, कृपा और शक्ति का प्रतीक है, जो परम स्वतंत्रता और मुक्ति की ओर ले जाती है। उनकी पूजा से सभी पापों से मुक्ति मिलती है ।

●सिद्धिदात्री (नौवां दिन): ये अंतिम स्वरूप हैं, जो असंभव को संभव बनाती हैं और भक्तों को उनके प्रयासों का फल प्रदान करती हैं। उनकी आराधना से जीवन में चमत्कार प्रकट होते हैं ।

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शारदीय नवरात्रि 2025
शारदीय नवरात्रि 2025 बहुत ही भाग्यशाली रहेगा।

श्रीमददेवी भागवत महापुराण के अनुसार, देवी का आगमन और प्रस्थान नवरात्रि आरंभ और समापन होने के दिन के हिसाब से होता है। इस बार नवरात्रि का आरंभ 22 सितंबर सोमवार से हो रहा है और नवरात्रि का समापन विजयदशमी 2 अक्टूबर को होगा।

शशिसूर्ये गजारूढ़ा , शनिभौमे तुरंगमे ।
गुरुशुक्रे च दोलायां बुधे नौका प्रकीर्तिता ।।
फलम् – गजे च जलदा देवी , छत्रभङ्ग तुरंगमे ।
नौकायां सर्व सिद्धिस्यात् दोलायां मरणं धुव्रम् ।।

श्रीमददेवी भागवत महापुराण के इस श्लोक के अनुसार, जब रविवार और सोमवार के दिन माता का आगमन होता है तो माता का वाहन हाथी होता है। यानी इस बार 22 सितंबर को मां दुर्गा का आगमन हाथी से हो रहा है। जब माता हाथी से आती है तो इसे बेहद ही शुभ माना जाता है। माता के हाथी पर आगमन पर उस वर्ष वर्षा अच्छी होती है। कृषी में वृद्धि होती है दूध का उत्पादन बढ़ता है साथ ही देश में धन धान्य की बढ़ोतरी होती है। शनिवार और मंगलवार को माता का आगमन होता है तो वह घोड़ी से आती है ऐसे में सरकार को अपने पद से हटने पड़ सकता है। गुरुवार और शुक्रवार को जब माता का आगमन होता है तो वह खटोला पर होता है। ऐसे में प्रज्ञा में लड़ाई झगड़ा और किसी बड़ी दुर्घटना होने का संकेत मिलता है। बुधवार को जब माता का आगमन होता है तो देवी नौका पर आती है। ऐसा होने पर मां अपने भक्तों को हर प्रकार की सुख सुविधाएं देती हैं।

देवी का प्रस्थान और वाहन
शारदीय नवरात्रि का समापन विजयदशमी के दिन 2 अक्तूबर को होगा।
शशिसूर्यदिने यदि सा विजया, महिषा गमनेरूज शोककरा,
शनिभौमे यदि सा विजया चरणायुधयानकरी विकला ,
बुधशुक्रे यदि सा विजया गजवाहनगा शुभवृष्टिकरा ,
सुरराजगुरौ यदि सा विजया नरवाहनगा शुभसौख्यकरा ।।

श्रीमददेवी भागवत महापुराण के अनुसार, विजयदशमी जब रविवार और सोमवार की होती है तो मां दुर्गा का प्रस्थान भैंसे पर होता है। जो व्यक्ति को शोक देता है। जब विजयदशमी मंगलवार और शनिवार को होती है तो माता का वाहन मूर्गा होता है। ऐसे में लोगों को तबाही का सामना करना पड़ता है। वहीं,बुधवार और शुक्रवार को विजदशमी हो तो माता हाथी पर जाती है। हाथी पर माता का जाना शुभ माना जाता है। वहीं, गुरुवार को विजयदशमी हो तो मााता का वाहन मनुष्य की सवारी होती है। इस बार 2 अक्तूबर 2025 गुरुवार के दिन विजयदशमी है ऐसे में माता के प्रस्थान का वाहन मनुष्य की सवारी होगा। ऐसे में लोगों को सुख शांति का आनुभव होगा। समय बहुत ही भाग्यशाली रहेगा।

श्री शासनोदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र,हनुमानताल
जबलपुर नगर के जिनालयो की वंदना

1) श्री शासनोदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र,हनुमानताल
2) श्री पार्श्वनाथ दिग.जैन नन्हें मंदिर,हनुमानताल
3) श्री पार्श्वनाथ दिग.जैन बरियाबाला मंदिर,हनुमानताल
4) श्री महावीर स्वामी दिग.जैन ड्योढिया मंदिर,हनुमानताल
5) श्री आदिनाथ दिग.जैन चौधरी मंदिर,हनुमानताल
6) श्री नेमिनाथ दिग.जैन मंदिर,पुरानी बाजाजी सराफा
7) श्री पार्श्वनाथ दिग.जैन जुगल मंदिर,बाजाजी सराफा
8) श्री त्रिमूर्ति पार्श्वनाथ दिग.जैन मंदिर,जुड़ी तलेया
9) श्री पार्श्वनाथ दिग.जैन स्वर्ण मंदिर,लार्डगंज
10) श्री आदिनाथ दिग.जैन बोर्डिंग मंदिर,गोल बाजार
11) श्री महावीर स्वामी दिग.जैन मंदिर वीतराग विज्ञान मंडल,गोल बाजार
12) श्री पार्श्वनाथ दिग.जैन मंदिर,नेपियर टाउन
13) श्री पार्श्वनाथ दिग.जैन मंदिर, नर्मदा तट ग्वारीघाट
14) श्री चन्द्रप्रभु जिनालय,मदन महल
15) श्री आदिनाथ दिग.जैन मंदिर,आमनपुर मदन महल
16) श्री पार्श्वनाथ दिग.जैन मंदिर,शक्ति नगर मदन महल
17) श्री पिसनहारी मढ़िया तीर्थ क्षेत्र, मेडिकल
18) श्री शांतिनाथ दिग.जैन मंदिर,बाजना मठ
19) श्री चंद्रप्रभु दिग.जैन मंदिर,शास्त्री नगर
20) श्री आदिनाथ जिनालय दयोदय तीर्थ,तिलवाराघाट
21) श्री शांतिनाथ दिग.जैन पयोदय तीर्थ क्षेत्र,भेड़ाघाट
22) श्री दिग.जैन गणेशप्रसाद ज़ी वर्णी गुरुकुल,मढ़िया ज़ी मेडिकल
23) श्री आदिनाथ दिग.जैन मंदिर,पुरवा गढ़ा
24) श्री पार्श्वनाथ दिग.जैन छोटा मंदिर,गढ़ा बाजार
25) श्री पार्श्वनाथ दिग.जैन बड़ा मंदिर,गढ़ा बाजार
26) श्री मुनिसुब्रतनाथ जिनालय,गंगानगर
27) श्री पार्श्वनाथ दिग.जैन मंदिर,संजीवनी नगर
28) श्री महावीर स्वामी दिग.जैन मंदिर,संजीवनी नगर
29) श्री पार्श्वनाथ दिग.जैन मंदिर,अग्रवाल कॉलोनी
30) श्री चंद्रप्रभु दिग.जैन मंदिर,संगम कॉलोनी
31) श्री आदिनाथ दिग.जैन मंदिर,कचनार सिटी विजय नगर
32) श्री पार्श्वनाथ दिग.जैन मंदिर,कंचन विहार विजय नगर
33) श्री दिग.जैन मंदिर,वीतराग विज्ञान मंडल,ग्रीनबेली स्कूल पाटन बाईपास
34) श्री शांतिनाथ दिग.जैन मंदिर,नक्षत्र नगर
35) अमृत तीर्थ,कटंगी बाईपास रोड
36) श्री महावीर स्वामी दिग.जैन मंदिर,मदर टेरेसा
37) श्री पार्श्वनाथ दिग.जैन मंदिर,ग्रीन सिटी
38) श्री पार्श्वनाथ दिग.जैन मंदिर,शिवनगर
39) श्री पार्श्वनाथ दिग.जैन मंदिर,त्रिमूर्ति नगर
40) श्री शांतिनाथ दिग.जैन मंदिर,शांतिनगर दमोह नाका
41) श्री आदिनाथ दिग.जैन ड्योडिया मंदिर,मिलोनीगंज
42) श्री पार्श्वनाथ दिग.जैन मंदिर,आधारताल
43) श्री पार्श्वनाथ दिग.जैन मंदिर,सुभाष नगर
44) श्री पार्श्वनाथ दिग.जैन मंदिर,रांझी बस्ती
45) श्री आदिनाथ दिग.जैन मंदिर,मेन रोड रांझी
46) श्री शांतिनाथ दिग.जैन मंदिर,मेन रोड रांझी

सबसे पहला कांवडिया कौन था, किसने, कहां से शुरू की थी कांवड़ यात्रा

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सावन का महीना शुरू हो गया है और इसके साथ ही केसरिया कपड़े पहने शिवभक्तों के जत्थे गंगा का पवित्र जल शिवलिंग पर चढ़ाने निकल पड़े हैं। ये जत्थे जिन्हें हम कांवड़ियों के नाम से जानते हैं उत्तर भारत में सावन का महीना शुरू होते ही सड़कों पर निकल पड़ते हैं। पिछले दो दशकों से कांवड़ यात्रा की लोकप्रियता बढ़ी है और अब समाज का उच्च एवं शिक्षित वर्ग भी कांवड यात्रा में शामिल होने लगे हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इतिहास का सबसे पहला कांवडिया कौन था। इसे लेकर कई मान्यताएं हैं-

1. परशुराम थे पहले कांवड़िया-

कुछ विद्वानों का मानना है कि सबसे पहले भगवान परशुराम ने उत्तर प्रदेश के बागपत के पास स्थित ‘पुरा महादेव’ का कांवड़ से गंगाजल लाकर जलाभिषेक किया था। परशुराम, इस प्रचीन शिवलिंग का जलाभिषेक करने के लिए गढ़मुक्तेश्वर से गंगा जी का जल लाए थे। आज भी इस परंपरा का अनुपालन करते हुए सावन के महीने में गढ़मुक्तेश्वर से जल लाकर लाखों लोग ‘पुरा महादेव’ का जलाभिषेक करते हैं। गढ़मुक्तेश्वर का वर्तमान नाम ब्रजघाट भी है।

2.श्रवण कुमार थे पहले कांवड़ियां-

वहीं कुछ विद्वानों का कहना है कि सर्वप्रथम त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने पहली बार कांवड़ यात्रा की थी। माता-पिता को तीर्थ यात्रा कराने के क्रम में श्रवण कुमार हिमाचल के ऊना क्षेत्र में थे जहां उनके अंंधे माता-पिता ने उनसे मायापुरी यानि हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा प्रकट की। माता-पिता की इस इच्छा को पूरी करने के लिए श्रवण कुमार अपने माता-पिता को कांवड़ में बैठा कर हरिद्वार लाए और उन्हें गंगा स्नान कराया। वापसी में वे अपने साथ गंगाजल भी ले गए. इसे ही कांवड़ यात्रा की शुरुआत माना जाता है।

3.भगवान राम ने किया था कांवड यात्रा की शुरुआत-

कुछ मान्यताओं के अनुसार भगवान राम पहले कांवडियां थे। उन्होंने झारखंड के सुल्तानगंज से कांवड़ में गंगाजल भरकर, बाबाधाम में शिवलिंग का जलाभिषेक किया था।

4.रावण ने की थी इस परंपरा की शुरुआत-

पुराणों के अनुसार कावंड यात्रा की परंपरा, समुद्र मंथन से जुड़ी है। समुद्र मंथन से निकले विष को पी लेने के कारण भगवान शिव का कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ कहलाए। परंतु विष के नकारात्मक प्रभावों ने शिव को घेर लिया। शिव को विष के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त कराने के लिए उनके अनन्य भक्त रावण ने ध्यान किया। तत्पश्चात कांवड़ में जल भरकर रावण ने ‘पुरा महादेव’ स्थित शिवमंदिर में शिवजी का जल अभिषेक किया। इससे शिवजी विष के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त हुए और यहीं से कांवड़ यात्रा की परंपरा का प्रारंभ हुआ।

5.देवताओं ने सर्वप्रथम शिव का किया था जलाभिषेक

कुछ मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन से निकले हलाहल के नकारात्मक प्रभाव को कम करने के लिए शिवजी ने शीतल चंद्रमा को अपने माथे पर धारण कर लिया था। इसके बाद सभी देवता शिवजी पर गंगाजी से जल लाकर अर्पित करने लगे। सावन मास में कांवड़ यात्रा का प्रारंभ यहीं से हुआ

बैंक ऑफ बड़ौदा बैनर / साउंड बॉक्स

सभी बीसी साथी यह सुनिश्चित करले कि आपके बीसी केंद्र में साउंड बॉक्स ओर बैंक ऑफ बड़ौदा के सभी बैनर लगे हुए है। यदि नहीं लगे हुए हे तो आज ही सभी बीसी बैनर ओर साउंड बॉक्स लगवा ले क्योंकि इसी महीने में बैंक अधिकारी द्वारा आपके बीसी केंद्रों पर इंस्पेक्शन के लिए आना है।
सभी बीसी साथी निर्देशों का पालन करे ओर आवश्यक पोस्टर लगाए

जेडी चक्रवर्ती अभिनीत तेलगु फिल्म की शूटिंग देव जी नेत्रालय जबलपुर में हुई

फिल्म निर्माता श्री राजशेखर जी की एक तेलगु फिल्म जिसमे तेलगु फिल्म के प्रसिद्ध, सत्या फिल्म फेम जी डी चक्रवर्ती मुख्य भूमिका है की शूटिंग इस समय जबलपुर शहर में चल रही है , इसी श्रृंखला में फिल्म के कुछ महत्वूर्ण दृश्य जबलपुर नगर के सुप्रसिद्ध नेत्र रोग विशेषज्ञ एवं समाजसेवी श्री पवन स्थापक जी द्वारा संचालित देव जी नेत्रालय तिलवाराघाट जबलपुर में शूट हुए, वर्तमान समय में जबलपुर और आसपास के सम्पूर्ण महाकोशल क्षेत्र में प्राकृतिक सुंदरता, विविधता और शासन प्रसाशन का सहयोग और क्षेत्रीय कलाकारों की निपुणता के कारण साउथ की फिल्मो की शूटिंग के लिए उपयुक्त वातावरण बना है, इस अवसर पर डॉ अर्पिता स्थापक दुबे एवं अपूर्वा स्थापक जी ने जी डी चक्रवर्ती को देव जी नेत्रालय द्वारा प्रकाशित पत्रिका प्रदान की और देव जी नेत्रालय द्वारा किये जा रहे समझसेवा से सम्बंधित जानकारी प्रदान की , देव जी नेत्रालय ने भी एक विडिओ सन्देश के माध्यम से नेत्र दान की अपील की

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कपूर
कपूर: एक सुगंध नहीं, ऊर्जा का स्रोत है
कपूर

“कपूर का रहस्य”

“जो स्वयं जलकर शुद्धि करे”
कपूर को तंत्रशास्त्र में एक “जीवित ऊर्जा वाहक” माना गया है।
यह कोई आम सामग्री नहीं, बल्कि एक ऐसा “ऊर्जा-संकेतक यंत्र” है जो:

किसी भी अनुष्ठान में वातावरण को शुद्ध करता है।
नकारात्मक शक्तियों को बाहर निकालकर दैविक आवाहन को सरल बनाता है।
किसी भी मंत्रोच्चारण या धूप-दीप से पहले कपूर जलाना, शक्तियों को जागृत करने का पहला कदम है।
इसे जलाकर देवी-देवताओं को अर्पित करना, “स्वाहा” का जीवंत रूप होता है।

“जब कपूर जलता है, तब क्या होता है?”

जब कपूर जलता है, तब…

वह धुएं के रूप में “नकारात्मक ऊर्जा को सोख” लेता है।
उसकी तीव्र सुगंध वातावरण के “सूक्ष्म स्तर” को बदल देती है।
यही कारण है कि कई साधक अपने “तांत्रिक प्रयोग” में कपूर और इत्र का संयोजन करते हैं।

“आम जीवन में कपूर के लाभदायक उपाय”

“दरिद्रता और दुर्भाग्य दूर करें”

हर शुक्रवार या मंगलवार को कपूर में 2 लौंग डालकर जलाएं।
इससे घर की रुकी हुई ऊर्जा प्रवाह में आ जाती है। लक्ष्मी का आगमन सहज होता है।

“नींद ना आना, भय और तनाव”

रात में सोते समय तकिए के नीचे एक कटोरी में कपूर रखें।
इससे डरावने स्वप्न, बेचैनी और मानसिक चिंता खत्म होती है।

“शत्रु बाधा और नज़र दोष”

कपूर, अजवाइन और राई को मिलाकर सफेद ओसार(कपड़ा) में एक पोटली बनाएं।
हर शनिवार शाम को उसे जलाकर घर के चारों कोनों में धुआं करें।
इससे शत्रु सोच भी नहीं सकता कि वह आपकी ऊर्जा को छू पाए।

“पूजा से पहले दीप में कपूर जलाना क्यों जरूरी है?”

दीपक के तेल में थोड़ा कपूर मिलाकर जलाने से –
“देवी-देवता प्रसन्न होते है।”
जिससे सकारात्मक ऊर्जाएं आपकी ओर आकर्षित होती है।

“कपूर एक संदेश है:”
तुम जलो, स्वयं को अर्पित करो –
और उस प्रकाश में अपने कर्म,
बाधाएं और नकारात्मकता को समाप्त
करो।”

कपूर केवल एक सुगंध या परंपरा नहीं –
यह एक “ऊर्जा का प्रज्वलित रूप” है
जो हमारे “ऊर्जा चक्रों” को चेतन करता है

क्या आपने आज कपूर से अपने घर का शुद्धिकरण किया?
अगर नहीं, तो आज ही इस रहस्य को अपने जीवन का हिस्सा बनाइए।
क्योंकि…
“जहाँ कपूर जलता है, वहाँ तामसिक ऊर्जा जलती है।”