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ग्रहों से संबंधित वस्तुएँ भाग 2
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मंगल नेक-मंगल सूर्य का मित्र है। जब इसे सूर्य का साथ मिले तो मंगल नेक बन जाता है। स्वभाव से मंगल लड़ाकू है तथा यह खून करने और कराने का कारक है। मंगल में बदला लेने की भावना अधिक है। यदि उसे कोई नुकसान पहुँचाए तो वह उसी के बारे में सोचता रहता है। दूसरी तरफ हमेशा सच्चाई का साथ देता है और सोच-समझकर बात करता है।
यह लड़ाकू स्वभाव का है फिर भी किसी से नाइंसाफी नहीं करता।

मंगल नेक हमेशा बहुत हौसला रखता है। यह भाई का कारक भी है। जन्म कुंडली देखकर भाइयों के बारे में पता चलता है। मंगल का रंग लाल है परन्तु ऐसा लाल जिसमें चमक नहीं। इसलिए बिना चमक वाला मूँगा इसका पत्थर है। मंगल नेक हो तो बिना चमकं वाला पत्थर पहनना इसका उपाय है।

हमारे शरीर के अंगों में यह जिगर का कारक है। जिगर की सभी बीमारियाँ मंगल बद के कारण होती हैं।

पोशाक में इसका कारक बास्केट या जैकेट है जो हमें सर्दी में गर्मी तथा सुख देती है। साथ में हमारी सुन्दरता बढ़ाती है।

वृक्षों में नीम मंगल नेक का कारक है जो बहुत सारी बीमारियों से मनुष्य की रक्षा करता है तथा कीटाणुओं को नष्ट करता है। यह मंगलमय भी माना जाता है क्योंकि भारतीय संस्कृति में बच्चे के पैदा होने पर नीम के पत्तों की वंदनवार घर के मुख्य द्वार पर बाँधी जाती है।

मंगल बद उसे कहते हैं जब उसके साथ केतु-शनि बुध या राहु बैठा हो। केतु के साथ मंगल शेर तथा कुत्ता कहा जाता है यानी शेर और केतु के समान. फल देता है। कुंडली में यदि सूर्य शनि एक साथ हों तो मंगल बद या अशुभ हो जाता है। इसी तरह मंगल के साथ बुध होने से भी मंगल का फल अच्छा नहीं रहता। राहु तथा मंगल का फल भी बद है क्योंकि राहु मंगल से दबा रहता है। परन्तु यदि राहु की दृष्टि मंगल पर पड़े तो मंगल का फल खराब हो जाता है जिसके कारण पेट या खून की खराबियों से जिस्म के दाएँ हिस्से पर सख्त तकलीफ हो सकती है।

मंगल अगर पहले घर में बैठा हो तो यह किस्मत को जगा देता है और यदि इसके साथ सूर्य और चन्द्र के उपाय के साथ इसका फल और भी अच्छा हो जाता है। लेकिन पापी ग्रह जैसे राहु केतु या अशुभ शनि से मंगल का फल बहुत अशुभ हो जाता है। पहले घर के मंगल को मैदाने

जंग का शूरवीर कहा है और इंसाफ की तलवार भी कहकर पुकारा है। बुध-बुध व्यापारी है। अपने ग्राहकों को सामान बेचते समय -जी-कुजूरी तथा नर्मी से बात करता है इसकी जुबान में मिठास है। यह बर्तन बनाने वाले ठठियार के समान है तथा जरूरत के समय जैसा चाहे बर्तन बना देता है तथा बातों में लगाकर सभी को प्रसन्न कर सकता है।

यह जुबान का मालिक है और जुबान से काम लेता है और किसी को भी जुबान के चक्र में डालकर अपना काम निकलवा लेता है। यह नसीहत देने में बहुत माहिर है। हर चीज के बारे में अपनी राय रखता है। कभी-कभी इसकी नसीहत पुरुष को गलत रास्ते पर भी ले जाती है। यह बहुत जल्दी सबको मित्र बनाता है।

बुध जिसका अच्छे स्थान पर है वह जातक जुबान का मीठा, दिमाग से तेज होगा।

पोशाक में यह पेट के नीचे के वस्त्रों का कारक है। जैसे तडागी पेटी और नाड़ा।

पशुओं की जाति में यह बकरा-बकरी, भेड़ तथा चमगादड़ के समान है। फलों में यह केले का वृक्ष है, जिसके पत्ते चौड़े हों।

शनि-शनि एक अक्खड़ तरखान की तरह है। यह मेहनती मजदूर भी है तथा कठिन से कठिन कार्य भी कर सकता है। यह एक हथियार की तरह लोहे के सख्त से सख्त कार्य भी कर सकता है। परन्तु इसे अपने काम में हस्तक्षेप पसन्द नहीं है।

यह हर कार्य पूर्णतया होशियारी और चालाकी से करता है। कोई ग्रह इससे मेल नहीं खाता। इसको नमस्कार भी करना हो तो पीठ पीछे हाथ बाँधकर जाता है। इसकी दृष्टि बहुत ही पैनी है जो किसी को पता भी नहीं चलता है और यह सब देखता रहता है। यहाँ तक कि इसमें जादू-मंत्र देखने-दिखाने की शक्ति भी है।

पोशाक में यह हमारे जुराब और जूते हैं जिसके बगैर मनुष्य चलने की सोच भी नहीं सकता ।

पशुओं में यह भैंस या भैंसे का कारक है। अगर घर में कोई बाधा हो तो भैंसे को घर के अन्दर लाकर सारे घर में चक्कर लगवाना चाहिए। इस तरह जिन्न-भूत डरकर घर से भागते हैं।
शनि मौत का भी कारक है। पेड़ों में यह कीकर, आक, खजूर का पेड़ है जो यात्री को छाया नहीं देता। दूसरे शब्दों में यह फिजूल में किसी का मददगार नहीं होता।

राहु-राहु जाति से भंगी और शूद्र है। राहु का सम्बन्ध गन्दगी से है। परन्तु गन्दगी के साथ-साथ यह सफाई भी करता है। भंगी या शूद्र का मतलब यह नहीं कि यह इतना सीधा-सादा है कि इसकी बुद्धि भी शूद्र के समान होगी। अगर ध्यान से सोचें तो राहु बहुत चालाक ग्रह है पर यह काम शूद्रों जैसा करता है और यह मक्कारी के साथ मनुष्य को उल्टे चक्र में डाल देता है। इसके बारे में अन्दाजा लगाना बहुत कठिन है कि यह आगे कौन-सी चाल चलेगा। यह एक गुप्त खोजी की तरह काम करता है और यह बिजली की तरह तेजी से कार्य कर जाता है और मनुष्य में डर तथा शत्रुता जल्दी से पैदा कर देता है।

शक्ति को यह अचानक ही परेशान कर देता है जिससे मनुष्य की बुद्धि अचानक काम कर देना बन्द कर देती है। परन्तु इसके साथ ही यह रास्ता भी दिखाने वाला है।

धातुओं में नीलम सिक्का तथा गोमेद का कारक है। जब कभी राहु गलत स्थान पर बैठ जाए तो नीलम धारण करना शुभ रहेगा। परन्तु उसके साथ ही राहु के बद होने पर इसका उपाय सिक्का बहाना है और गोमेद भी इसी की कारक धातु है।

शरीर के अंगों में यह सारे शरीर के बिना सिर्फ सिर का यानि दिमाग का कारक है। कई बार राहु के साथ यदि चन्द्रमा की युति हो जाए तो मनुष्य का दिमाग पागल भी हो जाता है। यह शरीर के अंगों में ठोड़ी का हिस्सा भी है जो मुख की सुन्दरता बनाती है।

पोशाक में यह हमारा पाजामा या पतलून है जो मनुष्य की शर्म को ढकता है। नंगा व्यक्ति तो किसी के सामने आने पर पागल ही कहलाएगा। पशुओं में यह हाथी के समान ताकतवर है जो भारी से भारी कठिन कार्य करता है तथा कठिन राहों पर चलकर बोझा उठाता है। साथ में यह काँटेदार जंगली चूहा है।
पेड़ों में यह नारियल का पेड़ तथा घास काटने वाला कुत्ता। केतु-केतु अपनी मनमर्जी के कार्य करता है इसके लिए संसार के

बन्धनों की कोई शर्त नहीं। यह राहु की तरह चालाक नहीं। यह पेशे से कुली के सामान भारी कार्य करता है तथा भार उठाने वाला मजदूर है। इसकी सुनने की शक्ति बहुत तेज है जो पाँव की आहट से ही किसी के आने-जाने की आवाज भाँप लेता है।

केतु में किसी प्रकार की शर्म नहीं कि कोई अनजान व्यक्ति है या जानकार। यह सभी से बातचीत करने में नियम है। यह दो रंगा पत्थर है जिसे हम वैदूरय कहते हैं।

शरीर के अंगों में यह सिर के बगैर शरीर है जिसमें दिमाग की कमी • है। परन्तु यह कान, रीढ़ की हड्डी, घुटने पेशाब करने की जगह तथा शरीर के जोड़ हैं। जब यह अशुभ है तो शरीर के इन्हीं अंगों में तकलीफ – पैदा करता है, जैसे रीढ़ की हड्डी में दर्द होना, जोड़ों का दर्द, पेशाब की बीमारी आदि ।

पोशाक में यह पटका-कंबल और ओढ़नी है।

पशुओं में यह कुत्ता, गधा, सुअर, नर या मादा दोनों, छिपकली, पौधों में इमली का पेड़, तिल के पौधे तथा केला फल।

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ग्रहों से संबंधित वस्तुएँ
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बृहस्पति-…पेशे में वह सुनार का कार्य करे तो सफलता, पूजा-पाठ उसके लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा। अन्दर से वह पंडित स्वरूप पेशवा होगा पढ़ा-लिखा ज्ञानी दूसरों को ज्ञान बाँटने का परि सोना बृहस्पति की वस्तुएँ हैं इसलिए सोने के काम करने वाला सुनार भी बृहस्पति है।

यह हवा और सांस का कारक है। इसी से हमारा जीवन चलता है और गुरु और सुख का कारक भी बृहस्पति है। शक्ति के लिहाज से बृहस्पति में सांस लेने और दिलाने की शक्ति है। दूसरे शब्दों में यह हमारे जीवन की सांस आने और जाने की कला का हाकिम है।

हमारे शरीर के अंगों में से गर्दन बृहस्पति का सबसे बड़ा कारक है। जब तक गर्दन कायम है तो मनुष्य जीवित है। गर्दन झुक जाती है तो आदमी की मौत की निशानी है तथा जीते जी शर्मिन्दा होने का कारण है।

इसी प्रकार माथे और नाक के अगले हिस्से से भी बृहस्पति का सम्बन्ध है। बृहस्पति मन्दा होने की निशानी यह होगी कि इन हिस्सों में तकलीफ हो सकती है या बीमारी हो सकती है।

हमारी पोशाक में से बृहस्पति पगड़ी या टोपी का कारक है। दूसरे शब्दों में पगड़ी ही सिर को ढकती है और इज्जत बनाए रखती है। सिर से पगड़ी उतर जाए तो यह शर्मिन्दगी की निशानी है। पशुओं में से बबर शेर या शेरनी का कारक बृहस्पति है। दूसरे शब्दों में यह सबसे बहादुर ग्रह है। वृक्षों में यह पीपल का पेड़ है इसलिए इसे खुश करने के लिए पीपल के पेड़ की पूजा जरूरी समझा गया है।

सूरज-…..सूर्य अपनी जाति के अनुसार क्षत्रिय है जो लड़ने-मरने को हमेशा
तैयार रहता है और अपनी बहादुरी के लिए हमारे ग्रन्थों में जाना जाता है।

सूर्य में आग बहुत है इसलिए यह हमारे सभी अंगों को कंट्रोल करता है। मनुष्य के अन्दर की गर्मी ही मनुष्य को जीवित रखती है। कहने में आता है कि मनुष्य में अब कुछ नहीं रहा, यह तो ठंडा पड़ गया है। यह हमारी बुद्धि का भी कारक है तथा विद्या देने वाला है।

सूर्य से ही सारे संसार को रोशनी मिलती है। दूसरे शब्दों में सूर्य से ही हमारे सारे कार्य चलते हैं। यह संसार वाहक है। इसी से सारे संसार का भोजन पैदा होता है तथा खाना पकता है।

सूर्य की धातुएँ माणिक ताँबा तथा शिलाजीत हैं जो मनुष्य को हर प्रकार की ताकत प्रदान करती है। हमारे शरीर का दायाँ भाग भी सूर्य है। सूर्य सेहरा या कलगी का कारक है, बड़े आदमी या हाकम की निशानी है। जीत के तौर पर ही कलगी लगाई जाती है।

सूर्य कपिला गाय का कारक है जो संसार को वार देती है। इसलिए उपाय के तौर पर कपिला गाय को उसकी कारक वस्तु देते हैं तथा उसकी पूजा करते हैं। वृक्ष में यह तेज फल का वृक्ष है जो हमारे शरीर में गर्मी पैदा करता है तथा कई प्रकार की बीमारियों से छुटकारा देता है।

चन्द्र-….चन्द्रमा मन का कारक है जिससे मन में शान्ति या उथल-पुथल बनी रहती है। चन्द्रमा के कारण जातक में सुख-शान्ति बनी रहती है। यह शान्त स्वभाव का भी कारक है। यह माँ की ममता, दुलार, सुख, माता-पिता तथा अपने बुजुर्गों की सेवा की शक्ति प्रदान करने वाला है।

चन्द्रमा के कारण दयालुता-दूसरों का भला करने वाला तथा दूसरों पर दया करने वाला भोला व्यक्ति जिसमें ज्यादा फेरबदल या चालाकी न हो और जल्द ही मान जाने वाला हठी या जिद्दी न हो अर्थात यह मन का या दिल का कारक है जो दिल से ज्यादा काम लेता है।

चन्द्रमा की धातुएँ चाँदी, मोती तथा दूध का रंग यानि दूध रंग है। वह हमारे शरीर का बायाँ भाग है। हमारी पोशाक में चन्द्रमा धोती परना का कारक है।

चन्द्र घोड़ा घोड़ी का कारक है जिसमें बहुत सहनशक्ति होती है
तथा साथ में ताकत भी होती है। यह मनुष्य को कठिन रास्तों से पार ले जाता है तथा कठिनाइयों में भी संतुलन बनाए रखता है। वृक्षों में यह पोस्त का हरा पौधा है जिससे दूध निकलता है। इसमें नशा होता है। यह ऐसा नशा है जिसे भूलकर आदमी मस्ती में आ जाता है। चन्द्र का देवता शिवजी है जो पोस्त पीए रखते हैं तथा हमेशा मस्ती में खुश रहते हैं।

शुक्र-….शुक्र प्यार, लगन, दिल की शान्ति, ऐशपसन्दगी का कारक है। यह जीवन के हुनर को जानता है। दूसरे शब्दों में यह ऐसा कुम्हार है जो अपनी इच्छा के अनुसार हर प्रकार के घड़े बनाता है जो हमेशा भरे रहते हैं और जरूरत के मुताबिक काम आते हैं। इस प्रकार यह हुनर के तौर पर चीजों की सर्जना करता है। इसीलिए यह खेतीबाड़ी दर्शाता है और सुन्दरता से भरी वैश्या की तरह है जो तरह-तरह के नाच दिखाती है और दूसरों के मन को खुश करती है। इससे काम-वासना भी उत्पन्न होती है।

शुक्र मिट्टी का भी कारक है और मिट्टी से कई प्रकार की उत्पत्ति होती है। मिट्टी के खेलों से खेलते हुए यह गृहस्थ आश्रम के उसूलों का पालन करता है। शरीर में यह गाल का कारक है जो चेहरे की सुन्दरता को बढ़ाता है।

शुक्र पशुओं में बैल या गाय का कारक है। बैल खेती में हमारी मदद करता है तथा गाय दूध देकर हमारे शरीर को शक्ति प्रदान करती है, अन्त समय में गाय की पूँछ पकड़कर व्यक्ति बैतरणी नदी को पार कर जाता है। ऐसा हमारे ग्रन्थों का कहना है। यह पौधों में कपास का पौधा जो सफेद खिला होता है तथा हर तरफ अपनी मुस्कुराहट फैलाता है तथा इसी पौधे के कपड़े बनते हैं जो हमारे शरीर को ढकते हैं और हमें गर्मी-सर्दी से बचाते हैं

घर की दक्षिण दिशा में ये 4 चीजें रखते ही बरसने लगता है पैसा

वास्तु शास्त्र में इंसान की सुख-समृद्धि और खुशहाली के लिए दिशाओं के महत्व को बारीकी से समझाया है.

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1. घर की दक्षिण दिशा में झाड़ू रखना शुभ होता है. कहते हैं कि झाड़ू में धन की देवी माता लक्ष्मी का वास होता है. इस दिशा में झाड़ू रखने से कभी धन की कमी नहीं होती है. इसे हमेशा दक्षिण दिशा में छिपाकर रखना चाहिए. झाड़ू को कभी भी उत्तर-पूर्व दिशा में रखने से बचें.


2. हमें अपने पलंग का सिरहाना भी दक्षिण दिशा में रखना चाहिए. ऐसे में सोते वक्त आपका सिर दक्षिण की ओर और पैर उत्तर दिशा में होंगे.
कहते हैं कि दक्षिण दिशा में सिर करके सोने से मन-मस्तिष्क में अच्छे विचार आते हैं. ऐसे लोग हर मोर्चे पर कामयाबी हासिल करते हैं.


3. घर में जो भी कीमती सामान हैं, वो हमेशा दक्षिण दिशा में रखना उत्तम होता है. ऐसा करने से घर की बरकत बनी रहती है.


4. वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर की दक्षिण दिशा में चिड़िया की तस्वीर लगाना शुभ होता है. इससे घर में नकारात्मक ऊर्जा का वास नहीं होता है.

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काली हल्दी के सौभाग्यवर्धक प्रयोग

धन और ऐश्वर्य की देवी विष्णुपत्नी महालक्ष्मी है। लक्ष्मी की प्रसन्नता से धनवान होने के लिए तंत्र विज्ञान में बहुत से सरल प्रयोग बताये गये है। इन में से एक प्रयोग है रसोई में प्राय: मसालों के रुप में उपयोग आने वाली हल्दी से धन प्राप्ति का रास्ता।

हर व्यक्ति अपने दैनिक जीवन में हल्दी का उपयोग किसी न किसी रुप में करता ही है। भोजन,चोट लगने, मांगलिक कार्य, पूजा-अर्चना में हल्दी का उपयोग किया जाता है।

अक्सर हम हल्दी की पीली और नारंगी रंग की गांठ देखते हैं। किंतु इन्हीं हल्दी की गांठों में संयोग से कभी-कभी काले रंग की गांठ भी पैदा हो जाती है। लेकिन जानकारी के अभाव में हम उसे खराब मानकर अलग कर देते हैं, फेक देते है। जबकि तंत्र विज्ञान के अनुसार यह काली हल्दी की गांठ ही धन का खजाना माना जाता है। जिसकी विधिवत साधना से अपार धन-संपदा पाई जा सकती है।

हल्दी को संस्कृत में हरिद्रा भी कहा जाता है। तंत्र विद्या में लक्ष्मी प्राप्ति के इस प्रयोग को साधना कहा जाता है। तंत्र विज्ञान में काली हल्दी बहुत अनमोल, अद्भुत और देवीय गुणों वाली मानी जाती है। हालांकि इसका रंग-रुप भद्दा और अनाकर्षक होता है, किंतु धन प्राप्ति की दृष्टि से बहुत प्रभावकारी मानी गई है।

अगर संयोग से आपको काली हल्दी मिल जाए तो आप स्वयं को सौभाग्यशाली मानें उसे अपने देवालय में विष्णु-लक्ष्मी प्रतिमा के समीप रखें और विधिवत पूजा करें। माना जाता है कि इसके रखने मात्र से ही घर में सुख-शांति आने लगती है। काली हल्दी की गांठ को चांदी के साथ या किसी भी सिक्के के साथ एक स्वच्छ और नए वस्त्र में बांधकर अन्य देव प्रतिमाओं के साथ पूजा करें। इस पोटली को गृहस्थ अपने घर की तिजोरी और व्यापारी अपने गल्ले में रख दें। ऐसा करने पर धनोपार्जन में आने वाली बाधा दूर होती है और अद्भूत धनलाभ होता है। तंत्र विज्ञान में काली हल्दी की गांठ या हरिद्रा तंत्र की सिद्धी के लिए पूजा विधान, नियम बताए गए हैं।

धन प्राप्ति के लिए हल्दी की काली गांठ यानि हरिद्रा तंत्र की साधना शुक्ल या कृष्ण पक्ष की किसी भी अष्टमी से शुरु की जा सकती है। इसके लिए पूजा सूर्योदय के समय ही की जाती है।

हरिद्रा तंत्र की नियम-संयम से साधना व्रती को मनोवांछित और अनपेक्षित धनलाभ होता है। रुका धन प्राप्त हो जाता है। परिवार में सुख-समृद्धि आती है। इस तरह एक हरिद्रा यानि हल्दी घर की दरिद्रता को दूर कर देती है।

पूर्वी मनोगत और गहन अध्ययनों से पता चला है की काली हल्दी बंगाल में चमत्कारी औषधियों के उपयोगों के कारण बहुत उपयोग में लायी जाती है। साधक इसे माता काली जी की पूजा करने में भी प्रयोग करते है। यह घर में बुरी शक्तियों को प्रवेश नहीं करने देती है। इसको ज्यादा बाधायों का नाश करने में उपयोग किया जाता है।

* यदि परिवार में कोई व्यक्ति निरन्तर अस्वस्थ्य रहता है, तो पहले गुरूवार को आटे के दो पेड़े बनाकर उस में गीली चने की दाल के साथ गुड़ और थोड़ी सी पिसी काली हल्दी को दबाकर रोगी व्यक्ति के उपर से 7 बार उसार कर गाय को खिला दें । यह उपाय लगातार 3 गुरूवार करने से आश्चर्यजनक लाभ मिलता है।

* यदि किसी व्यक्ति या बच्चे को नजर लग गयी है, तो काले कपड़े में काली हल्दी को बांधकर 7 बार ऊपर से उतार कर बहते हुये जल में प्रवाहित कर दें । इस से नजर से मुक्ति मिलेगी।

* शुक्लपक्ष के प्रथम गुरूवार से नियमित रूप से काली हल्दी पीसकर तिलक लगाने से गुरू और शनी दोनों ग्रह शुभ फल देने लगेंगे। यदि किसी के पास धन आता तो बहुत है किन्तु टिकता नहीं है, उन्हे यह उपाय अवश्य करना चाहिए।

* शुक्लपक्ष के प्रथम शुक्रवार को चांदी की डिब्बी में काली हल्दी, नागकेशर व सिन्दूर को साथ में काली हल्दी रखकर मां लक्ष्मी के चरणों से स्पर्श करवा कर धन रखने के स्थान पर रख दें। यह उपाय करने से धन रूकने लगेगा।

* यदि आपके व्यवसाय में निरन्तर गिरावट आ रही है, तो शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरूवार को पीले कपड़े में काली हल्दी, 11 अभिमंत्रित गोमती चक्र, चांदी का सिक्का व 11 अभिमंत्रित धनदायक कौड़ियां बांधकर 108 बार •“ऊँ नमो भगवते वासुदेव नमः” का जाप कर धन रखने के स्थान पर रखने से व्यवसाय में प्रगति आ जाती है।

* यदि आपका व्यवसाय मशीनों से सम्बन्धित है, और आये दिन कोई मंहगी मशीन आपकी खराब हो जाती है। तो आप काली हल्दी को पीसकर केशर व गंगा जल मिलाकर प्रथम बुधवार को उस मशीन पर स्वास्तिक बना दें। यह उपाय करने से मशीन जल्दी खराब नहीं होगी।

* दीपावली के दिन पीले वस्त्रों में काली हल्दी के साथ एक चांदी का सिक्का रखकर धन रखने के स्थान पर रख देने से वर्ष भर मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।

* यदि कोई व्यक्ति मिर्गी या पागलपन से पीडि़त हो तो किसी अच्छे मूहूर्त में काली हल्दी को कटोरी में रखकर लोबान की धूप दिखाकर शुद्ध करें। तत्पश्चात एक टुकड़ें में छेद कर धागे की मदद से उसके गले में पहना दें और नियमित रूप से कटोरी की थोड़ी सी हल्दी का चूर्ण ताजे पानी से सेंवन कराते रहें। इस से आप को अवश्य लाभ मिलेगा।

* शुभ दिन में गुरु पुष्य या रवि पुष्य नक्षत्र हो। राहुकाल न हो, शुभ घड़ी में काली हल्दी को लाएँ। इसे शुद्ध जल से भीगे कपड़े से पोंछकर लोबान की धूप की धुनी में शुद्ध कर लें व कपड़े में लपेटकर रख दें। आवश्यकता होने पर इसका एक माशा चूर्ण ताजे पानी के साथ सेवन कराये व एक छोटा टुकड़ा काटकर धागे में पिरोकर रोगी के गले या भुजा में बाँध दें। इस प्रकार उन्माद, मिर्गी, भ्रांति और अनिन्द्रा जैसे मानसिक रोगों मे बहुत लाभ होता है।

* गुरु पुष्य नक्षत्र में काली हल्दी को सिंदूर में रखकर लाल वस्त्र में लपेटकर धूप आदि देकर कुछ सिक्कों के साथ बाँधकर बक्से या तिजोरी में रख दें तो धनवृद्धि होने लगती है।

* काली हल्दी, श्वेतार्क मूल, रक्त चन्दन और हनुमान मंदिर या काली मंदिर में हुए हवन की विभूति गोमूत्र में मिलाकर लेप बनायें और उससे घर के मुख्य द्वार और सभी प्रवेश के दरवाजों के ऊपर स्वास्तिक का चिन्ह बनायें। इससे किसी भी प्रकार की बुरी नजर, टोना टोटका या बाधा आपके घर में प्रवेश नहीं कर सकेंगे।

* जिस व्यक्ति को बुरी नजर लगी हो या बार बार लगती हो या अक्सर बीमार रहता हो तो काली हल्दी, श्वेतार्क मूल, रक्त चन्दन और हनुमान मंदिर या काली मंदिर में हुए हवन की विभूति गोमूत्र में मिलाकर मिश्रण का तिलक माथे, कंठ व् ह्रदय पर करे तो वो सुरक्षित रहता है।

* काली हल्दी का चूर्ण दूध में भिगोकर चेहरे और शरीर पर लेप करने से सौन्दर्य की वृद्धि होती है।

* मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए तंत्र शास्त्र में हरिद्रा तंत्र में चर्चा की गयी है। कहते हैं, इससे मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और धन-धान्य की वर्षा करती हैं। हरिद्रा यानी काली हल्दी खाने के काम में नहीं आती, पर चोट लगने और दूसरे औषधीय गुणों में इसे महत्व दिया जाता है। यदि किसी को इस काली हल्दी की गांठ प्राप्त हो, तो उसे पूजा घर में रख दें। मान्यता है कि यह जहां भी होती है, सहज ही वहां श्री-समृद्धि का आगमन होने लगता है। हरिद्रा तंत्र को नए कपड़े में अक्षत और चांदी के टुकड़े अथवा किसी सिक्के के साथ रखकर गांठ बांध दें। और धूप-दीप से पूजा करके गल्ले या बक्से में रख दें, तो आश्चर्यजनक आर्थिक लाभ होने लगता है। लेकिन इसको घर में रखने से पहले अभिमंत्रित भी कर लें, तभी इसका विशेष प्रभाव दिखता है।

* हरिद्रा तंत्र के लिए साधना विधि महीने की किसी भी अष्टमी से इस पूजा को शुरू कर सकते हैं इस दिन प्रात: उठकर नित्यकर्म से निवृत्त होकर पूर्व की ओर मुख करके आसन पर बैठ जाएं। तत्पश्चात् काली हल्दी की गांठ को धूप-दीप देकर नमस्कार करें। फिर उगते हुए सूर्यको नमस्कार करें और 108 बार •‘‘ॐ ह्रीं सूर्याय नम: मंत्र का जाप करे।’

इसके बाद स्थापित काली हल्दी की पूजा करें। पूरे दिन व्रत रखें और फलाहार करें । यथाशक्ति दान-पुण्य भी करें। हरिद्रा तंत्र की साधना में यह तथ्य स्मरण रखना चाहिए कि इसके साधक के लिए मूली, गाजर और जिमींकंद का प्रयोग वर्जित है। इस प्रयोग को विधिपूर्वक करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। घर में बरकत होती है।

* चंदन की भाँति काली हल्दी का तिलक लगाएँ। यदि अपनी कनिष्ठा उँगली का रक्त भी मिला दिया जाए तो प्रभाव में वृद्धि होगी। यह तिलक लगाने वाला सबका प्यारा होता है। सामने वाले को आकर्षित करता है।

* काली हल्दी, रोली, तुलसी की मंजरी को समरूप आंवले के रस में पीस कर जिसके भी सम्मुख जायेंगे वो स्वतः आपके अनुरूप कार्य करेगा।

* काली हल्दी, श्वेतार्क मूल, श्वेत चन्दन, गोरोचन, पान और हरसिंगार की जड़ पीस कर एक चाँदी की डिब्बी में लेप बनाकर रख लें। जिसे वश में करना हो उसके सम्मुख आने से पूर्व इसका तिलक धारण कर लें। इस प्रकार कि तिलक लगाने के बाद आपको सर्व प्रथम देखे।

वर्ष 2024 में कैसा रहेगा भारत का भविष्य

भारत पर भविष्यवाणी 2024: भारत के लिए वर्ष 2024 बहुत महत्वपूर्ण और उथल-पुथल भरा रहने वाला है। हिंदू माह 2080 चल रहा है और 9 अप्रैल 2024 से विक्रम संवत 2081 प्रारंभ हो जाएगा। वर्तमान संवत्सर 2080 के राजा बुध, गृह मंत्री शुक्र, वित्त मंत्री सूर्य, रक्षा मंत्री बृहस्पति हैं। यह पिंगला शोभकृत नाम का संवत्सर चल रहा है। इसके बाद 2081 संवत्सर का नाम क्रोधी रहेगा। पंचांग भेद से इसका नाम कालयुक्त है, इसका राजा मंगल है और मंत्री होगा शनि।

मौसम :- वर्ष 2024 में भारत में अल्पवृष्टि के योग हैं। कहीं वर्षा अच्छी होगी तो कहीं सूखा निर्मित हो सकता है। गर्मी सामान्य रहेगी लेकिन बारिश और ठंड बढ़ सकती है। असामान्य जलवायु के चलते सेहत पर इसका भारी असर होगा।

प्राकृतिक प्रकोप :- भारत में वर्ष 2024 में राहु, मंगल, शनि और सूर्य के कारण प्राकृतिक प्रकोप बढ़ सकते हैं। तूफान, चक्रवात, भूकंप और बाढ़ से लोगों को बचना होगा। इस बार भूकंप और चक्रवात के कारण जान माल के नुकसान की ज्यादा आशंका व्यक्त की जा रही है।

रोग :- भारत में नया रोग या कोई नई महामारी के आने के योग भी बन रहे हैं। केतु के कारण वायरल संक्रमण होने की संभावना है जिसके चलते लोगों में बेचैनी रहेगी। मानसिक तनाव बढ़ सकता है। लोगों को अभी से ही अपनी सेहत का ध्यान रखने के लिए इम्यून सिस्टम को मजबूत करना होगा।

राजनीतिक उथल पुथल :- वर्ष 2024 में मंगल, शनि और राहु के प्रभाव के चलते भारत में राजनीतिक उथल-पुथल पिछले वर्ष की अपेक्षा ज्यादा रहेगी। राजनीतिक पार्टियों में शत्रुता की भावना बढ़ जाएगी। झूठे आरोप और प्रत्यारोप के चलते नफरत बढ़ेगी। किसी बड़े राजनेता को पद त्यागना पड़ सकता है या किसी बड़े राजनेता का निधन भी हो सकता है। भारत के किसी 2 नेताओं पर हमला होने की संभावना है, कई नेताओं को कानूनी सजा भी मिल सकती है, क्योंकि अगले वर्ष का मंत्री शनि है। भाजना की अपेक्षा कांग्रेस का प्रभाव तेजी से बढ़ेगा, जिसके चलते देश में राजनीतिक अस्थिरता पैदा होगी।

भारत की सीमा :- वर्ष के मध्य में भारत की पश्चिमी और पूर्वी सीमा पर तनाव चरम पर होगा। भारत पर कोई बड़ा हमला होने की संभावना है। अप्रैल, मई, जून, जुलाई और अगस्त का माह भारत के लिए कठिन रहेगा। पश्चिम बंगाल और उत्तर पूर्वी भारत में ज्यादा अशांति रहने वाली है। यानी भारत में आंतरिक संघर्ष बढ़ने की संभावना है।

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वस्तु दाम :- आने वाले वर्ष 2024 में महंगाई बढ़ेगी क्योंकि अतिवर्षा, तूफान आदि प्राकृतिक आपदा के चलते देश के अधिकतर क्षेत्रों की फसल नष्ट होने के आसार है। 2024 में उत्पादन में कमी के चलते कीमतों में बढ़ोतरी होने की संभावना है। पेट्रोल के दाम में भी बढ़ोतरी होगी।.

अर्थ व्यवस्था :- देश की अर्थ व्यवस्था में सुधार होगा, रियल स्टेट में तेजी रहेगी। सोने के भाव बढ़ते जाएंगे।

सुशील मोदी ज्योतिष एवं वास्तु विशेषज्ञ इंडिया बुक ऑफ़ रिकॉर्ड विजेता
गुरु- राहु चांडाल योग समाप्त 30 अक्टूबर 2023

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, एक अवधि के बाद नवग्रह राशि परिवर्तन करते हैं। ऐसे में कई तरह के शुभ और अशुभ योगों का निर्माण होता है। ऐसे ही मेष राशि में राहु और गुरु की युति से गुरु चांडाल योग का निर्माण हुआ था। 22 अप्रैल से मेष राशि में गुरु चांडाल योग चल रहा है जो 30 अक्टूबर 2023 को समाप्त हो जाएगा।

22 अप्रैल 2023 में बनने वाले गुरु चांडाल योग की वजह से काफी लोगों के जीवन में बड़ी समस्या पैदा हो रही थी। विशेषकर जिन लोगों के लिए गुरु योग कारक ग्रह था, उनके जीवन में कुछ ज्यादा ही समस्या उत्पन्न हो रही थी जैसे- शादी विवाह परेशानी, शिक्षा में बाधा, संतान प्राप्ति में समस्या, स्वास्थ्य व मान- सम्मान की कमी इत्यादि।

गुरु व शुक्र ग्रह विशेषकर शादी- विवाह के मुख्य जिम्मेदार कारक ग्रह है। इन दोनों ग्रहों की कृपा के बिना शादी विवाह संपन्न नहीं हो सकते। और गुरु-राहु चांडाल योग की वजह से काफी लोगों के विवाह में विलंब हो रहा था या फिर दांपत्य जीवन में बड़ी समस्या उत्पन्न हो रही थी। लेकिन अब 30 अक्टूबर 2023 को गुरु चांडाल योग समाप्त हो रहा है जिसे काफी राशियों को बड़ा लाभ प्राप्त होने वाला है, उनके रिश्ते विवाह में आ रही बाधा अब समाप्त होने की पूरी संभावना है। गुरु चांडाल योग समाप्त होने पर छोटे-छोटे उपाय से ही बड़े लाभ प्राप्त किये जा सकते हैं।

1 – मेष लग्न वाले जातक के लिए राहु 12 th भाव और केतु 6 th भाव से गोचर करेंगे आपके खर्च यात्रा और भोग बड़ सकते है जो लोग जॉब ट्रांसफर या घर बदलने का सोच रहे है या एब्रॉड सेटलमेंट के लिए प्रयास कर रहे है उनके लिए अनुकूल समय जिन लोगो का धनेश और दशमेश व्यवस्थित है उनके लिए लाभ का समय लेकिन सतर्क रहे स्वास्थ और हॉस्पिटल पर खर्च हो सकता ननिहाल पक्ष को थोड़ी तकलीफ संभव ।

2 – वृषभ लग्न वाले जातकों की इच्छाएं और मनोरंजन के अवसर बड़ जायेंगे जोड़ तोड़ और मेहनत से धन अर्जित करेंगे व्यापार & जॉब के लिए अनुकूल समय है किंतु लव अफेयर और विवाहित जीवन में कुछ संघर्ष दिखेगा ।

3 – मिथुन लग्न के जातकों के दशम से राहु और चतुर्थ से केतु का गोचर रहेगा आप घर परिवार से उखड़े उखड़े रह सकते लेकिन कार्यछेत्र में नई ऊर्जा नई तरंगों के साथ बोलेंगे राहु जिसके दस में दुनिया उसके बस में अर्थात प्रोफेशनल फ्रंट पर नए नए आइडियाज और ऊर्जा के साथ सफलता की ओर अग्रसर होने का प्रयास करेंगे ।

4 – कर्क लग्न के जातकों के लिए राहु का गोचर नवम और केतु तृतीय भाव से निकलेंगे आपके छोटे भाई बहन या पड़ोसी को कुछ तकलीफ संभव ।
आप की यात्रा बड़ जाएंगी आप भ्रमित रह सकते आपको चिंताएं सता सकती आपकी शिक्षा और प्रोफेशन पर नकरात्मक प्रभाव भी रह सकता ।
अपका भाग्य कम साथ देगा आप दबाव में रहेंगे।

5 – सिंह लग्न के जातकों के लिए राहु केतु का गोचर कठनाइयों से भरा हो सकता है आपको धन की कमी धन का अटकना धन संबंधित झगड़े घर पर अशांति और अचानक घटनाए घटित होने के योग बन रहे है
अगर आप रिसर्च वर्क एस्ट्रोलॉजी पॉजिटिव तंत्र आदि क्रियायो में लिप्त है तो ये गोचर आपके लिए रहस्य की परते खोलने में सक्षम होगा किन्तु आप जुआ सट्टा और दुष्कर्म में लिप्त है तो आप संभाल जाए , कोई भी असामाजिक गतिविधि या गलत कार्य आपको फसा सकता है

6 – कन्या लग्न वालो के लिए राहु केतु संघर्ष की पटकथा लिख रहे है आपके वैवाहिक जीवन और व्यवसाय पर संघर्ष रहेगा आपकी भागम भाग लगी रहेगी आपको कागजी कार्रवाई में समय बर्बाद करना होगा , आपके जीवन में जो प्रेम आयेगा ज्यादा टिकेगा नही आप खुद से या खुद के प्रदर्शन से संतुष्ट नहीं रहेंगे ।

7 – तुला लग्न वालो के लिए राहु का गोचर छटे भाव से शानदार होने वाला है जिन लोगो की कुंडली में शनि और राहु व्यवस्थित बैठे है उनकी लाइफ में खुशहाली समृद्धि के योग बन रहे है विधार्थियो के लिए कंपीटीशन के लिए अच्छा समय जॉब वालो को शानदार सफलता कोर्ट केस में भी आप सफल हो सकते है जो स्त्रियां संतान चाहती है उनके लिए अनुकूल समय दूसरी तरफ केतु भी मोक्ष भाव से आपको स्प्रिचुअल लाइफ में आगे बढ़ाएगा ।

8 – वृश्चिक लग्न वालो के लिए राहु पंचम भाव से गोचर करेंगे और केतु एकादश भाव से निकलेंगे ।
अपको बुद्धि हवा में उड़ सकती है आपकी बुद्धि पर सट्टा जुआ या शेयर मार्केट से धन कमाने का नशा चढ़ सकता है आपकी बुद्धि पर लव अफेयर हावी रह सकते है आपको धन प्राप्ति या लाभ में विलम्ब हो सकता आपको घर परिवार की जिम्मेदारियां निभानी पड़ेंगी आपको विशेष रूप से स्वास्थ का ध्यान रखने की सलाह दी जाती है ।

9 – धनु लग्न वालो के लिए राहु केतु का गोचर उतार चढ़ाव वाला रह सकता है अपका मन कार्य छेत्र में कम लगेगा , आपकी ऊर्जा माता और घर प्रॉपर्टी पर लगेगी आपको चिंताएं सताएंगी ।

10 – मकर लग्न वालो के लिए राहु केतु का गोचर आपके पराकर्म और बुद्धि को बड़ा देगा आप साम दाम दण्ड भेद का प्रयोग करने लगेंगे , आप धार्मिक यात्रा करेंगे , आपके पिता को कुछ चिंताएं लगी रह सकती है टेक्निकल और मार्केटिंग वर्क के लिए ये गोचर शानदार रहेगा ।

11 – कुंभ लग्न वाले जैसा कर्म करेंगे वैसा फल मिलेगा जो लोग वाणी या टेलीमार्केटिंग या रिसर्च वर्क से जुड़े है उनको लाभ मिलेगा ओवरऑल ये गोचर आपको मेहनत और खुद पर नियंत्रण से लाभ देगा ।

12 – मीन लग्न वालो के लिए राहु लग्न और केतु सप्तम भाव से गोचर करेंगे ये समय आपके लिए नई नई चुनौतियां पेश करेगा जितना ईश्वर और कुल देवी की शरण में रहेंगे उतना बचे रहेंगे , आपकी इच्छाएं असक्तिया और खर्च बड़ जायेंगे अगर आप विवाहित है तो लाइफ पार्टनर से उदासीनता रह सकती और मतिभ्रम हो सकता है

बारिश के पानी के कई सारे फायदे

बारिश का पानी चमका देगा किस्मत, जानिए बारिश के पानी के चमत्कारी उपाय

बारिश के पानी के कई सारे फायदे होते हैं। वास्तु के अनुसार भी बारिश के पानी लाभ है। जी हां, बारिश के पानी की मदद से आप जीवन में बढ़ रहे कर्ज को कम कर सकते हैं। तो आइए जानते हैं कैसे करें-


1. कहते हैं कि यदि कर्ज नहीं उतर पा रहा है तो बारिश का पानी एक बाल्टी में एकत्रित कर लें और उसमें दूध डालकर भगवान स्मरण करके पूरे माह में इसी तरह स्नान कर लें। धीरे-धीरे आपका कर्ज उतरने लगेगा।

2. यह भी कहा जाता है कि यदि कारोबार में घाटा हो रहा हो तो पीतल के बर्तन में वर्षा जल एकत्रित करके माता लक्ष्मी और विष्णुजी का एकादशी के दिन इस जल से अभिषेक करें। इससे व्यापारिक घाटा नहीं होगा और अच्छी इनकम होने लगेगी

3. मान्यता अनुसार यदि आप आर्थिक तंगी से परेशान हैं तो मिट्टी के घड़े को बारिश के पानी से भरकर उसे घर की ईशान या उत्तर दिशा में रख दें। ऐसा करने से आर्थिक तंगी दूर हो जाती है।

4. यह भी कहा जाता है कि एक कटोरी में बारिश का पानी भरकर छत पर रखकर जब उस पानी को अच्छे से धूप लग जाए तो उस पानी को अपने ईष्टदेव का नाम लेकर आम के पत्तों पर छिड़क दें। इस उपाय से माता लक्ष्मी प्रसन्न होकर धन की कमी दूर कर देती हैं।

5. यदि किसी को विवाह में परेशानी आ रही है तो वह बारिश का पानी एकत्रित करके भगवान गणेशजी का जलाभिषेक करें।

6. यदि किसी भी प्रकार का रोग है या कोई संकट है तो तो बारिश का पानी एकत्रित करके महामृत्युंजय मंत्र के साथ भगवान शिव का जलाभिषेक करें।

7. यदि आपको लगता है कि घर में कोई नकारात्मक शक्ति है जिसके कारण कर्ज आदि जैसी परेशानी हो रही है तो किसी बर्तन में बारिश का पानी एकत्रित करके उसे हनुमानजी के सामने रख दें और पूरे महीने प्रतिदिन 51 हनुमान चालीसा का पाठ करें। फिर उस पानी से घर के सभी हिस्सों में छिड़काव कर दें। इससे नकारात्मक शक्तियां हट जाएंगी।

हरिद्वार
हरिद्वार (हरद्वार) की महिमा

हरद्वार जिसे हरिद्वार के नाम से भी जाना जाता है। इसकी महिमा अनन्त है, जिसे शास्त्रो अथवा पुराणों में बहुत गाया और बताया गया है लेकिन ये महिमा क्यों है? इसके कारण क्या हैं?

हरिद्वार

1. हरद्वार को सर्वप्रथम हर का द्वार कहा जाता है क्योंकि हरद्वार अर्थात हर (देवो के देव महादेवजी) के कैलाश से जुड़ी पर्वत श्रृंखलाओं के पर्वत हरद्वार से शुरू होते है जो हर (देवाधिदेव महादेव) के द्वार कैलाश तक जाते है और हरद्वार महादेवजी का अत्यंत प्रिय स्थान भी है इसी कारण से भी इसे हर का द्वार कहा जाता है द्वार हर तक जाने का!

2. हरिद्वार वह स्थान है जो संसार मे दूसरे स्थान पर बसा था अर्थात पृथ्वी पर सर्वप्रथम काशी मुक्तिक्षेत्र अर्थात आनंदवन की रचना हुई थी जिसे भगवान सदाशिव ने अपने शिवलोक में त्रिशूल से रचकर धरती पर स्थापित किया जो मुक्ति देने वाली काशी के नाम से त्रिलोक विख्यात है। उसके बाद ब्रह्मा जी ने अपने पुत्र दक्ष प्रजापति को राज्य करने के लिए धरती पर जो स्थान प्रदान किया वो हरिद्वार ही था यहीं पर राजा दक्ष ने अपनी नगरी बसाई थी और यहीं पर वो राज्य करते थे। यहीं दक्षपुरी के नाम से पुराणों में वर्णित स्थान है। ये संसार में बसा दूसरा नगर था। पहला काशी दूसरा हरिद्वार इसलिए भी इसकी महिमा है ।

3. हरिद्वार में कुम्भ से छलका अमृत गिरा था जिसे स्वर्भानु नामक दैत्य लेकर भाग रहा था जो बाद में विष्णु भगवान के द्वारा सर विच्छेद के कारण राहु केतु के रूप में जाना गया और नवग्रहों में स्थापित हुआ। अमृत छलककर गिरने के कारण भी हरिद्वार की महिमा बढ़ी और ये कुंभनगरी बना जहां 12 वर्ष बाद कुम्भ होने लगा।

4. पुराणों और शोध में मिले तथ्यों से स्पष्ट हुआ है कि धरती पर सर्वप्रथम भगवान विष्णु के चरण जिस स्थान पर पड़े वो हरिद्वार ही था। बाद में हरिद्वार के मायापुरी क्षेत्र में ही भगवान विष्णु और माता महालक्ष्मी का विवाह संपन्न हुआ था। इन्हीं दोनों कारणों से ये स्थान भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को अत्यंत प्रिय हुआ और इसे भगवान हरि ने अपने नाम से सम्बोधित करके हरिद्वार बनाया तबसे इसके दो नाम पड़े हर का द्वार हरद्वार और हरि का भी द्वार हरिद्वार। संसार का पहला क्षेत्र जो हर और हरि दोनों को अतिप्रिय है और दोनों के नाम से जाना जाता है।

5. राजा दक्ष ने परमेश्वरी माता आदिशक्ति की तपस्या करके उनसे पुत्री रूप में अपने घर जन्म लेने का वर मांगा था तो माँ उसके घर पैदा हुई। राजा दक्ष की पुत्री सती के रूप मे आदिशक्ति स्वरूपा भगवती माता सती का जन्म इसी हरिद्वार में हुआ था। यहीं उनका बालपन और युवाअवस्था गुजरी। यहीं पर उन्होंने तप करके महादेवजी को पति रूप में प्राप्त किया तब भगवान महादेवजी ब्रह्मा, विष्णुजी, इंद्र, सूर्य, चन्द्र आदि देवों व लक्ष्मी, सरस्वती, इंद्राणी, गायत्री आदि देवियों और ऋषि मुनियों तथा अपने गणों सहित बारात लेकर यहां पर आए थे और माता सती से विवाह किया था। इस कारण से भी हरिद्वार की महानता बढ़ती है।

6. राजा दक्ष ने विश्व विख्यात जो यज्ञ किया था वो भी हरिद्वार के कनखल क्षेत्र में ही किया था जहां राजा दक्ष का महल था।

7. गंगोत्री जहां से गंगाजी का उद्गम है उसका रास्ता भी हरिद्वार से होकर ही जाता है। गंगाजी हरिद्वार से होकर ही अन्य स्थानों पर जाती है इसीलिये इसकी महिमा माँ गंगा की कृपा से और भी बढ़ गयी है।

8. चारधाम गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, बद्रीनाथ तक जाने से पूर्व हरिद्वार में पूजन करना अनिवार्य है जो देव आज्ञा है शास्त्रों अथवा पुराणों में क्योंकि चारधाम तक जाने का मार्ग भी हरिद्वार से होकर ही जाता है।

9. महादेवजी की पुत्री माता मनसा जो वासुकि नागों के राजा की बहन थी उनका निवास स्थान भी हरिद्वार में ही है जो माँ मनसा देवी के नाम से विख्यात है जहां हजारोन भक्तगण प्रतिदिन माँ के दर्शन करने दूर-दूर से आते है। मन की कामना पूरी करने के कारण माँ को मनसा देवी कहा जाता है।

10. रामायणकाल में अहिरावण और महिरावण श्रीराम को जब पाताल में देवी के सामने बलि देने के लिए ले गए थे तो महादेवजी के अवतार हनुमानजी ने देवी से श्रीराम की बलि टालने का आग्रह किया था तब देवी ने हनुमानजी से कहा था – मैं इस पातालपुरी को त्यागकर शिवपुरी अर्थात हरिद्वार की पर्वत श्रृंखला पर जा रही हूं। तुम इन दोनों असुरों की बलि मुझे दो जिससे मुझे प्रसन्नता होगी और पाताल में धर्म स्थापना होगी तब जो देवी पाताल से उठकर हरिद्वार के पर्वतों पर विराजी वो माँ चंडीदेवी के नाम से विश्व विख्यात है। रामायणकाल में रावण को जीतने के बाद और अयोध्या आने के बाद श्रीराम ने सीताजी, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न और हनुमानजी महाराज सहित यहां आकर माता के दर्शन किये थे और माँ चंडीदेवी का आशीर्वाद लिया था।

11. माता सती ने जब दक्ष यज्ञ में अपने देह को यज्ञकुंड में जला दिया था तब महादेवजी जब उनका देह लेकर बहुत समय तक जब पृथ्वी भ्रमण करते रहे और उन्होंने संसार को भुला दिया तब विष्णुजी ने अपने कांता नामक चक्र से सती माता के शरीर को 52 भागो में विच्छेद किया था जिन में से माता सती का हृदय हरिद्वार में गिरा था और मायादेवी के नाम से विख्यात हुआ। ये मायादेवी हरिद्वार के निवासियों की कुल देवी बनी और हरिद्वार की महिमा और बढ़ गई।

12. ऋषि मुनियों अवतारों तथा देवी देवताओं की अतिप्रिय स्थली होने के कारण ही इसे देवभूमि हरिद्वार भी कहते हैं।

13. जिस पहाड़ की चोटी पर बैठकर महादेवजी ने दक्ष यज्ञ विध्वंस हेतु वीरभद्र, देवी महाकाली, भैरव, क्षेत्रपाल, नंदी, नवदुर्गा आदि सेना की कमांड की थी उन्हें नेत्तृत्व किया था वो पहाड़ की चोटी भी हरिद्वार में ही है जो नीलपर्वत के नाम से जानी जाती है।

14. हरिद्वार संसार का एक मात्र स्थान है जो भगवान महादेव, आदिशक्ति माता, भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी इन चारों को अतिप्रिय है इसीलिए यहां पर पूरे वर्ष हर हरि और माँ के भक्तों का आवागमन लगा रहता है। श्रद्धालु दूर-दूर से इस दिव्य स्थान पर दर्शन हेतु आते हैं।

15. भीम ने अपने गौडे तक जल भरकर जिस स्थान पर तप किया था वो भीमगोडा कहलाया जो हरिद्वार में ही है।

और भी बहुत कुछ महिमा है हरिद्वार की जो यहां कह पाना असंभव है लेकिन हरिद्वार की महिमा अनन्त है जो सतयुग से महाभारत काल तक की अनेक कथाएं और चमत्कार से भरी हुई है।