अक्षय तृतीया एक अत्यंत शुभ और पुण्यदायी तिथि है
अक्षय तृतीया एक अत्यंत शुभ और पुण्यदायी तिथि है, जिसे हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। इसे ‘अक्ती’ और ‘अक्खा तीज’ के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन इतना पवित्र माना जाता है कि किसी भी शुभ कार्य के लिए मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं होती — इसे अबूझ मुहूर्त कहा जाता है।
वर्ष 2025 में अक्षय तृतीया तिथि प्रारम्भ 29 अप्रैल को शाम 5.32 बजे से होगी और 30 अप्रैल को दोपहर 2.13 बजे तक तृतीया तिथि रहेगी। उदया तिथि में अक्षय तृतीया 30 अप्रैल 2025 को मनाई जाएगी। ( स्थान के अनुसार समय में थोड़ा परिवर्तन सम्भव है, सही समय के लिए अपने लोकल पंचांग को देखें)
अक्षय तृतीया का शाब्दिक अर्थ:
“अक्षय” = जिसका कभी क्षय न हो (जो कभी समाप्त न हो)
“तृतीया” = तीसरा दिन (शुक्ल पक्ष की तीसरी तिथि)
इस दिन किया गया दान, तप, जप, हवन, विवाह, गृहप्रवेश, आदि कार्य अक्षय फल देने वाले माने जाते हैं।
अक्षय तृतीया का ज्योतिषीय महत्व :
1. सूर्य और चंद्र का उच्च स्थिति में होना :
अक्षय तृतीया एकमात्र तिथि है जब सूर्य मेष राशि में (उच्च का) और चंद्रमा वृष राशि में (उच्च का) होता है।
यह दिन सौर और चंद्र ऊर्जा दोनों के सामंजस्य का प्रतीक होता है। ज्योतिष में, जब सूर्य और चंद्र दोनों उच्च राशि में हों, तो यह अत्यंत शुभ और ऊर्जा-सम्पन्न संयोग होता है।
2. कार्य आरंभ का श्रेष्ठ समय :
इस दिन नए व्यापार की शुरुआत, संपत्ति खरीदना, विवाह, निवेश आदि के लिए मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं होती — यह अपने आप में सर्वोत्तम मुहूर्त है।
3. कुंडली के अनुसार ग्रहों के दोष निवारण का अवसर :
यह दिन ज्योतिषीय उपायों जैसे रत्न धारण, दान, जप, पितृ तर्पण, ग्रह शांति आदि के लिए बहुत उपयुक्त होता है।
विशेष रूप से जिनकी कुंडली में मंगल, शुक्र, शनि या राहु-केतु दोष होते हैं, उनके लिए यह दिन उपाय करने हेतु उत्तम होता है।
4. धन व समृद्धि का कारक :
इस दिन सोना खरीदना अत्यंत शुभ माना जाता है। यह लक्ष्मी के स्थायित्व का प्रतीक है।
कुबेर और लक्ष्मी पूजन कर वित्तीय स्थायित्व और आर्थिक वृद्धि का संकल्प लिया जाता है।
पौराणिक महत्व :
️ इसी दिन भगवान परशुराम का जन्म हुआ था।
️ महाभारत में, युधिष्ठिर को श्रीकृष्ण ने इसी दिन अक्षय पात्र प्रदान किया था।
️ त्रेता युग का प्रारंभ भी इसी दिन हुआ था।
️इस दिन जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर 1008 आदिनाथ भगवन को प्रथम बार 6 माह की प्रतीक्षा उपरांत आहार प्राप्त हुआ था
चैत्र नवरात्र 2025
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चैत्र नवरात्र की तिथि, पूजन, शुभ मुहूर्त एवं पूजा विधि
चैत्र नवरात्रि 2025 तिथि पूजन शुभ मुहूर्त
उदयातिथि के अनुसार, चैत्र नवरात्र रविवार, 30 मार्च रविवार 2025 से ही शुरू होने जा रहा है।
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
चैत्र नवरात्रि के लिए कलश स्थापना के दो विशेष मुहूर्त निर्धारित किए गए हैं-
पहला मुहूर्त_ प्रतिपदा के एक तिहाई समय में कलश स्थापना करना अत्यंत शुभ माना जाता है, जो 30 मार्च 2025 को सुबह 06,14 से 10,21 बजे तक है।
दूसरा मुहूर्त_ अभिजीत मुहूर्त, 30 मार्च 2025 को दोपहर 12,02 से 12,50 बजे तक है, जब कलश स्थापित किया जा सकता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, घटस्थापना का सर्वोत्तम समय प्रातःकाल होता है, जिसे चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दौरान किया जाता है। यदि इस समय चित्रा नक्षत्र और वैधृति योग उपस्थित हो, तो घटस्थापना को टालने की सलाह दी जाती है।
घटस्थापना का महत्व
कलश स्थापना केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह देवताओं की कृपा प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण साधन भी है।
कलश के मुख पर- भगवान विष्णु
गले में- भगवान शिव
नीचे के भाग में- भगवान ब्रह्मा
मध्य में- मातृशक्ति (दुर्गा देवी की कृपा)
इसलिए, घटस्थापना का सही समय और विधि अपनाकर देवी की कृपा प्राप्त की जा सकती है।
घटस्थापना की सही विधि
साफ-सफाई करें: जिस स्थान पर घटस्थापना करनी है, वहां गंगाजल का छिड़काव करें और उसे पवित्र करें।
मिट्टी का पात्र लें: इसमें जौ बोएं, जो समृद्धि का प्रतीक माने जाते हैं।
कलश की स्थापना करें: मिट्टी के घड़े में जल भरें, उसमें गंगाजल, सुपारी, अक्षत (चावल), दूर्वा, और पंचपल्लव डालें।
नारियल रखें: कलश के ऊपर लाल या पीले वस्त्र में लिपटा हुआ नारियल रखें।
मां दुर्गा का आह्वान करें: मंत्रों का जाप करें और कलश पर रोली और अक्षत अर्पित करें।
नवरात्रि के दौरान दीप जलाएं: घटस्थापना के साथ अखंड ज्योति प्रज्वलित करें, ताकि घर में सुख और शांति बनी रहे।
घटस्थापना के लाभ
घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।
देवी दुर्गा की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होते हैं।
मनोकामनाएं पूरी होने का विश्वास है।
घर में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है।
इस शुभ महोत्सव में ही कलश की स्थापना कर अच्छा रहेगा। दुर्गा जी के नौ भक्तों में सबसे पहले शैलपुत्री की आराधना की जाती है।
चैत्र नवरात्रि 2025 के कार्यक्रम
चैत्र नवरात्रि 2025 का 09 दिनों का पूजा कैलेंडर के अनुसार नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती है।
प्रत्येक दिन एक देवी का पूजन किया जाता है, और हर देवी के स्वरूप में अलग-अलग प्रकार की शक्ति और आशीर्वाद समाहित होते हैं।
इस बार नवरात्रि 08 दिन की होगी लेकिन ज्वारे विसर्जन नवम दिन 07 अप्रैल को ही होगा।
तिथि दिनांक वार देवी पूजा
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प्रतिपदा_ 30 मार्च, रविवार, मां शैलपुत्री।
द्वितीया_ 31 मार्च, सोमवार, मां ब्रह्मचारिणी।
तृतीया_ 01 अप्रैल, मंगलवार, मां चंद्रघंटा।
चतुर्थी,पंचमी_ 02 अप्रैल, बुधवार, मां कूष्मांडा- स्कंदमाता।
षष्ठी__ 03 अप्रैल, गुरुवार, मां कात्यायनी।
सप्तमी_ 04 अप्रैल, शुक्रवार, मां कालरात्रि।
अष्टमी_ 05 अप्रैल, शनिवार, मां महागौरी।
नवमी_ 06अप्रैल, रविवार, मां सिद्धिदात्री।
ज्योतिष Sushil Modi जबलपुर
गौरव सैनी “अभिनय और सृजनशीलता के प्रतीक”
गौरव सैनी “अभिनय और सृजनशीलता के प्रतीक”, जिन्होंने अपनी कला और रचनात्मकता से समाज और मंच को समृद्ध किया है। 8 दिसंबर, 1990 को जबलपुर में जन्मे गौरव को अभिनय के प्रति प्रेरणा बचपन में रामलीला को देखकर और उसमें भाग लेकर मिली। 2014 से वह विवेचना रंग मंडल से जुड़े हैं और प्रतिष्ठित निर्देशक श्री अरुण पांडे, श्री राजकुमार कमले और सीताराम सोनी के निर्देशन में अभिनय, पेंटिंग, सेट डिज़ाइनिंग और नाटकों के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान है।
गौरव ने भारत के विभिन्न हिस्सों में 110 से अधिक नाटकों में प्रदर्शन किया है। उनकी प्रतिभा केवल मंच तक सीमित नहीं रही; उन्होंने द सिग्नल मैन, दरिंदे, हिट एंड रन जैसी शॉर्ट फिल्मों, मेरी निम्मो और डंकी जैसी फीचर फिल्मों और इश्कियां जैसी वेब सीरीज़ में अपनी अद्वितीय छाप छोड़ी है।
अभिनय और नाटकों के प्रति उनकी अपार निष्ठा ने उन्हें रंगमंच का एक महत्वपूर्ण स्तंभ बनाया है। इसके साथ ही, गौरव एक प्रसिद्ध इंटीरियर डिज़ाइनर भी हैं और निर्माण क्षेत्र में अपनी कंपनी का संचालन करते हैं, जिससे उनकी बहुआयामी प्रतिभा का परिचय मिलता है।
यह स्मृति चिन्ह गौरव सैनी के नाटकों और अभिनय के प्रति अद्वितीय समर्पण, उनकी रचनात्मकता और समाज के प्रति उनके योगदान को सम्मानित करता है। यह उनके साहस, मेहनत और प्रतिभा का प्रतीक है।


मोबाइल फिल्म निर्माण: सिनेमा की नई परिभाषा
परिचय
मोबाइल फिल्म निर्माण आज के डिजिटल युग में एक नई क्रांति बन गया है। स्मार्टफोन की बढ़ती तकनीकी क्षमताओं और उन्नत कैमरा फीचर्स ने हर व्यक्ति को एक फिल्ममेकर बना दिया है। यह न केवल पेशेवर फिल्म निर्माताओं के लिए, बल्कि शौकिया कलाकारों के लिए भी एक सशक्त माध्यम बन चुका है। मोबाइल फिल्म निर्माण, जिसे स्मार्टफोन फिल्म निर्माण भी कहा जाता है, आज के समय में फिल्म निर्माण का एक उभरता हुआ माध्यम है। स्मार्टफोन की तकनीकी उन्नति और उच्च गुणवत्ता वाले कैमरों ने इसे लोकप्रिय बना दिया है। यह केवल मनोरंजन के लिए ही नहीं, बल्कि शैक्षिक, प्रचार और सामाजिक परिवर्तन जैसे उद्देश्यों के लिए भी उपयोगी साबित हो रहा है।
मोबाइल फिल्म निर्माण की शुरुआत
मोबाइल फिल्म निर्माण की शुरुआत 2000 के दशक में हुई थी, लेकिन इसका असली प्रभाव तब महसूस हुआ जब स्मार्टफोन में उन्नत कैमरे आने लगे। 2015 में रिलीज़ हुई फिल्म “Tangerine”, जिसे पूरी तरह आईफोन से शूट किया गया था, ने यह दिखाया कि मोबाइल कैमरा भी पेशेवर फिल्म निर्माण में इस्तेमाल किया जा सकता है।
मोबाइल फिल्म निर्माण का महत्व
मोबाइल फिल्म निर्माण का महत्व
मोबाइल फिल्म निर्माण ने फिल्म निर्माण की परिभाषा को बदल दिया है। अब महंगे कैमरा, जटिल उपकरण और बड़े बजट की आवश्यकता नहीं है। स्मार्टफोन के कैमरे में 4K रिकॉर्डिंग, स्टेबलाइज़ेशन, स्लो-मोशन और लो-लाइट फोटोग्राफी जैसे फीचर्स ने इसे संभव बनाया है।
- सुलभता:
स्मार्टफोन लगभग हर व्यक्ति की पहुंच में है। इससे हर कोई अपनी रचनात्मकता का प्रदर्शन कर सकता है। - कम बजट:
पारंपरिक फिल्म निर्माण में महंगे कैमरे, लाइटिंग उपकरण और स्टूडियो की आवश्यकता होती है। मोबाइल फिल्म निर्माण में इनकी आवश्यकता नहीं होती। - तेज़ उत्पादन:
मोबाइल पर फिल्म बनाना और उसे तुरंत संपादित करना पारंपरिक प्रक्रियाओं की तुलना में अधिक तेज़ है। - विविधता:
यह माध्यम छोटे वृत्तचित्र, शॉर्ट फिल्म, संगीत वीडियो और यहां तक कि फीचर फिल्मों के निर्माण के लिए भी उपयुक्त है।
मोबाइल फिल्म निर्माण के उपकरण
मोबाइल से फिल्म बनाने के लिए केवल एक स्मार्टफोन ही पर्याप्त नहीं है। कुछ अतिरिक्त उपकरण इसकी गुणवत्ता को और बेहतर बनाते हैं:
- गिंबल और ट्राइपॉड:
स्थिर और स्मूद शॉट्स के लिए। - माइक्रोफोन:
बेहतर ऑडियो क्वालिटी के लिए। - लेंस अडॉप्टर:
वाइड एंगल, मैक्रो और टेलीफोटो लेंस का उपयोग करने के लिए। - लाइटिंग उपकरण:
लो-लाइट शूटिंग के लिए पोर्टेबल लाइट्स। - एडिटिंग सॉफ़्टवेयर:
Adobe Premiere Rush, iMovie, Kinemaster, और LumaFusion जैसे ऐप्स मोबाइल पर संपादन के लिए उपयोगी हैं।
मोबाइल फिल्म निर्माण की प्रक्रिया
- प्री–प्रोडक्शन:
- कहानी का चयन करें: कहानी जितनी दिलचस्प होगी, दर्शकों पर उतना ही प्रभाव पड़ेगा।
- स्क्रिप्ट लिखें: यह सुनिश्चित करें कि आपकी कहानी का हर दृश्य स्पष्ट हो।
- लोकेशन तय करें: ऐसा स्थान चुनें जो कहानी के अनुकूल हो।
- प्रोडक्शन:
- कैमरा एंगल्स: विभिन्न कोणों से शूटिंग करें ताकि वीडियो में विविधता आए।
- प्रकाश: प्राकृतिक और कृत्रिम प्रकाश का संतुलन बनाए रखें।
- ऑडियो पर ध्यान दें: परिवेशीय शोर से बचने की कोशिश करें।
- पोस्ट–प्रोडक्शन:
- एडिटिंग: वीडियो को काट-छांट कर सही आकार दें।
- साउंड मिक्सिंग: बैकग्राउंड म्यूजिक और डायलॉग्स को मिलाएं।
- कलर करेक्शन: रंग संतुलन को सही करें ताकि फिल्म अधिक पेशेवर दिखे।
मोबाइल फिल्म निर्माण के फायदे
- रचनात्मकता का प्रदर्शन:
सीमित संसाधनों में अपनी कला दिखाने का मौका मिलता है। - सोशल मीडिया का सहयोग:
फेसबुक, यूट्यूब, और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म पर अपनी फिल्म को तुरंत साझा किया जा सकता है। - लचीलापन:
किसी भी स्थान और समय पर फिल्म बनाई जा सकती है। - शुरुआत के लिए आदर्श:
नवोदित फिल्म निर्माताओं के लिए यह एक आदर्श मंच है।
मोबाइल फिल्म निर्माण की चुनौतियां
- तकनीकी सीमाएं:
स्मार्टफोन कैमरा का सीमित ज़ूम और बैटरी लाइफ एक बड़ी चुनौती है। - ऑडियो क्वालिटी:
माइक्रोफोन के बिना ऑडियो की गुणवत्ता अक्सर खराब होती है। - प्रोफेशनल उपकरणों की कमी:
पारंपरिक कैमरों के मुकाबले मोबाइल में फीचर्स की कुछ सीमाएं होती हैं।
मोबाइल फिल्म निर्माण की सफलता की कहानियां
मोबाइल फिल्म निर्माण ने कई स्वतंत्र फिल्म निर्माताओं को पहचान दिलाई है। स्टीवन सोडरबर्ग जैसे फिल्म निर्माता ने भी मोबाइल से फिल्में बनाई हैं, जो दर्शाती हैं कि यह माध्यम कितना प्रभावी हो सकता है।
- “Tangerine”:
यह पूरी तरह आईफोन 5S से शूट की गई फिल्म है, जिसे आलोचकों ने सराहा। - “Unsane”:
स्टीवन सोडरबर्ग द्वारा आईफोन से बनाई गई यह फिल्म एक बड़ी सफलता थी। - शॉर्ट फिल्म्स और डॉक्यूमेंट्रीज:
भारत में कई स्वतंत्र फिल्म निर्माता मोबाइल फिल्म निर्माण के माध्यम से अपनी कहानियां सुना रहे हैं।
सुशील मोदी
इंडिया बुक ऑफ़ रिकॉर्ड धारक
यूट्यूब क्रेयटर
फिल्म मेकर / एडिटर / डायरेक्टर
राष्ट्रीय बालश्री पुरस्कार (राष्ट्रपति पुरस्कार) विजेता: श्रेया खंडेलवाल

श्रेया खंडेलवाल, (13-08-2003) जिन्होंने अपनी अद्वितीय अभिनय क्षमता से राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई, को राष्ट्रीय बालश्री पुरस्कार (जिसे राष्ट्रपति पुरस्कार के नाम से भी जाना जाता है) से सम्मानित किया गया है। यह पुरस्कार भारत सरकार द्वारा उन प्रतिभाशाली बच्चों को दिया जाता है जिन्होंने कला, साहित्य, संगीत और विज्ञान जैसे क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया हो। श्रेया ने अभिनय के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है।
राष्ट्रीय बालश्री पुरस्कार क्या है?
राष्ट्रीय बालश्री पुरस्कार, जिसे “राष्ट्रपति पुरस्कार” के नाम से भी जाना जाता है, बाल कला प्रतिभा को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। यह पुरस्कार 9 से 16 वर्ष की आयु वर्ग के बच्चों को दिया जाता है जिन्होंने अपने क्षेत्र में असाधारण प्रतिभा दिखाई हो। इसमें चार मुख्य श्रेणियाँ शामिल हैं:
- सृजनात्मक प्रदर्शन
- सृजनात्मक लेखन
- सृजनात्मक कला
- सृजनात्मक विज्ञान
श्रेया खंडेलवाल को “सृजनात्मक प्रदर्शन” की श्रेणी में अभिनय के लिए यह पुरस्कार प्रदान किया गया।
श्रेया खंडेलवाल का अभिनय क्षेत्र में योगदान
श्रेया ने बचपन से ही अभिनय के प्रति गहरी रुचि दिखाई। उनकी अभिनय कला में भावनाओं की गहराई, संवाद की स्पष्टता और चरित्र को जीवंत करने की अद्भुत क्षमता है। उन्होंने विभिन्न मंचों और प्रतियोगिताओं में भाग लेकर अपनी प्रतिभा को निखारा।
उनके अभिनय की खास बात यह है कि वह किसी भी चरित्र में बड़ी सहजता और विश्वास के साथ ढल जाती हैं। उनके प्रदर्शन में मानवीय संवेदनाएँ और गहरी समझ झलकती हैं, जो दर्शकों को भाव-विभोर कर देती हैं।
सम्मान समारोह और उपलब्धि
1.राष्ट्रीय बालश्री अभिनय पुरस्कार( “राष्ट्रपति पुरस्कार”)
2.ब्रांड एम्बेसडर,स्वच्छता अभियान,जबलपुर
3.सर्वश्रेष्ठ बालिका पुरस्कार-महिला,बाल विकास मंत्रालय
- डाक तार विभाग, भारत सरकार द्वारा मुझ पर “डाक टिकट” जारी
- गुरुधाम अवॉर्ड — उत्तरप्रदेश सरकार
- म. प्र. गौरव सम्मान
- ABZY COOL नेशनल चैनल के सीरियल “क्राइम स्टॉप” में महत्वपूर्ण भूमिका
- “राष्ट्रीय नृत्य समारोह” : वाराणसी एवं भुवनेश्वर में मंच संचालन
- राष्ट्रीय वी अवॉर्ड – दिल्ली
- विवेचना रंगमंडल, बालभवन, नाट्यलोक ,बंधुत्व और सोशल मीडिया के 60 से अधिक नाटकों तथा मोनोलॉग्स में विभिन्न भूमिकाएं। 50 से अधिक शहरों- गाँवों में प्रस्तुतियां
- 100 से अधिक सरकारी व गैरसरकारी कार्यक्रमों में मंच संचालन
13.स्वच्छता, रक्तदान, अधिक मतदान, वोकल फॉर लोकल,थैलेसीमिया उन्मूलन, देहदान- अंगदान-नेत्रदान, पर्यावरण संरक्षण, निशुल्क कन्या विवाह,कोरोना जागरुकता आदि अभियानों में सरकारी व गैरसरकारी स्तरों पर सक्रियता
- पत्रिका समूह द्वारा म. प्र. के 40 “प्रभावशाली अंडर 40” में चयन
- दैनिक भास्कर गरबा में “बेस्ट गरबा प्राइज़”
- नई दुनिया प्रतिभा सम्मान
- पं. ओंकार प्रसाद तिवारी अलंकरण
- निर्माणाधीन फ़िल्म “हर पल है यहां धोखा” में भूमिका
- राष्ट्रीय “खण्डेलवाल प्रतिभा सम्मान”
- अ. भा. सुमधुरा सखी सहेली का राष्ट्रीय “खण्डेलवाल मणि” अवॉर्ड
- राष्ट्रीय खण्डेलवाल युवा उत्सव, उज्जैन में मंच संचालन
- इंटरनेशनल डांसर “रत्ना दत्ता मेम ग्रुप” की नियमित मंच संचालिका
- “अंतर्राष्ट्रीय मातृ दिवस” पर मेरी मम्मी और मुझ पर फेसबुक पेज पर लिखे आलेख को दस लाख से अधिक बार देखा गया
- ऑनलाइन नेशनल न्यूज़ पोर्टल “खण्डेलवाल विचार” की सहसंपादक
- प्रिंट तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर लेखन, कविता , कार्यक्रम संचालन तथा उद्बोधन
- मेरी शाला स्मॉल वंडर्स द्वारा “ऑल टाइम अचीवर” अवॉर्ड
- मृत्योपरांत “अंगदान- देहदान-नेत्रदान” की घोषणा तथा नियमित “रक्तदान”
30.राष्ट्रीय खंडेलवाल “नारी शक्ति सम्मान” (अ.भा. खंडेलवाल महासभा ,जयपुर द्वारा)
- नई दुनिया नायिका सम्मान — 2023
- लोकमत जन्म शताब्दी अलंकरण
- ब्रांड एम्बेसडर — स्वयंयुग साहित्यिक प्रकाशन
- फ्रीलांस जर्नलिस्ट
- इंस्टाग्राम और फेसबुक में 150 से अधिक एक्टिंग रील्स
श्रेया खंडेलवाल के लिए यह पुरस्कार सिर्फ एक उपलब्धि नहीं, बल्कि उनके उज्ज्वल भविष्य की ओर पहला कदम है। उनके अभिनय के प्रति समर्पण को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि आने वाले समय में वह बड़े मंचों और फिल्मों में भी अपना योगदान देंगी।
श्रेया खंडेलवाल की सफलता यह प्रमाणित करती है कि भारत की युवा पीढ़ी में अपार प्रतिभा है। राष्ट्रीय बालश्री पुरस्कार जैसे सम्मान न केवल बच्चों के आत्मविश्वास को बढ़ाते हैं, बल्कि देश के सांस्कृतिक और कलात्मक विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। श्रेया की इस उपलब्धि पर हमें गर्व है और उनकी सफलता की कामना करते हैं कि वह अपने अभिनय से आगे भी देश का नाम रोशन करें।
संकलन
सुशील मोदी
इंडिया बुक ऑफ़ रिकॉर्ड धारक
यूट्यूब क्रेयटर
फिल्म मेकर / एडिटर / डायरेक्टर
Garha Dynasty (गढ़ा राजवंश) के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक योगदान

Garha Dynasty (गढ़ा वंश) मध्य भारत का एक महत्वपूर्ण राजवंश था, जिसने विशेषकर गोंड जनजाति के लिए महत्वपूर्ण ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक योगदान दिया। ये राजवंश मुख्यतः वर्तमान मध्य प्रदेश में रहा और 14वीं से 18वीं शताब्दी तक शक्तिशाली शासन किया। इस वंश ने गढ़ा-मंडला (वर्तमान जबलपुर क्षेत्र) को अपनी राजधानी बनाकर कई महत्वपूर्ण नीतियों और संरचनाओं का निर्माण किया, जो उनके प्रभावशाली शासन का प्रतीक है। आइए, इस गढ़ा वंश के इतिहास, इसके शासकों, और इसकी विशेषताओं पर कुछ बिंदुओं पर चर्चा करते हैं, जिन पर एक पॉडकास्ट तैयार किया जा सकता है:
1. गढ़ा वंश का उदय
- गढ़ा वंश का उदय लगभग 14वीं शताब्दी में माना जाता है। इसे स्थापित करने का श्रेय मुख्य रूप से गोंड शासकों को जाता है।
- वंश के प्रारंभिक शासक कबीलों के प्रमुख थे, जो धीरे-धीरे शक्तिशाली बन गए और एक संगठित शासन प्रणाली स्थापित की।
- इस दौरान गढ़ा वंश ने मध्य भारत में एक महत्वपूर्ण शक्ति बनकर उभरना शुरू किया।
2. संग्राम सिंह का शासनकाल
- गढ़ा वंश के सबसे प्रसिद्ध शासकों में से एक संग्राम सिंह थे, जिन्होंने 16वीं शताब्दी में शासन किया।
- संग्राम सिंह के शासन में वंश की शक्ति और संपत्ति का विस्तार हुआ और गढ़ा-मंडला एक समृद्ध राज्य बन गया।
- उन्होंने मुस्लिम शासकों से कई युद्ध किए और अपनी स्वतंत्रता बनाए रखी, जो उनके शौर्य और दृढ़ता का परिचायक है।
3. रानी दुर्गावती और उनका संघर्ष
- गढ़ा वंश की सबसे प्रसिद्ध शासक रानी दुर्गावती थीं, जो अपनी वीरता और बलिदान के लिए जानी जाती हैं।
- 1564 में, अकबर के सेनापति आसफ खान ने गढ़ा वंश पर आक्रमण किया। रानी दुर्गावती ने वीरता के साथ युद्ध किया और आखिरी क्षण तक संघर्ष किया।
- रानी दुर्गावती की मृत्यु के बाद गढ़ा वंश का प्रभाव कम हो गया, लेकिन उनका साहस आज भी प्रेरणा का स्रोत है।
4. गढ़ा वंश की संस्कृति और कला
- गढ़ा वंश के शासनकाल में क्षेत्रीय कला और वास्तुकला का विकास हुआ। उन्होंने किलों, मंदिरों और जलाशयों का निर्माण करवाया।
- गोंड कला और शिल्प के संरक्षण में गढ़ा वंश का महत्वपूर्ण योगदान रहा। उनकी संस्कृति में प्रकृति का सम्मान और जनजातीय परंपराओं का अद्वितीय स्थान था।
5. गढ़ा वंश का पतन और उत्तराधिकार
- 16वीं शताब्दी के बाद, मुगलों के आक्रमण और अन्य बाहरी शक्तियों के दबाव से गढ़ा वंश कमजोर हो गया।
- 18वीं शताब्दी में, मराठों ने इस क्षेत्र पर अधिकार कर लिया और गढ़ा वंश का अंत हो गया।
6. गढ़ा वंश का योगदान और विरासत
- गढ़ा वंश ने गोंड जनजाति और मध्य भारत की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित किया। उनके शासनकाल के दौरान गोंड समाज की उन्नति हुई।
- उनकी कहानियां आज भी लोककथाओं और साहित्य में जीवित हैं। रानी दुर्गावती का बलिदान और उनकी वीरता भारतीय इतिहास में अनूठी मिसाल हैं।
रानी दुर्गावती (1524-1564) गढ़ा-मंडला राज्य की एक साहसी और वीर शासिका थीं, जिनका शासन मध्य प्रदेश के गोंडवाना क्षेत्र पर था। उनका नाम इतिहास में उनकी अदम्य साहस, कुशल नेतृत्व और मातृभूमि के प्रति प्रेम के लिए अमर है। रानी दुर्गावती का जन्म कालिंजर के चंदेल राजवंश में राजा कीरत राय के घर हुआ था। चंदेल वंश अपने युद्ध-कौशल और वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध था, और रानी दुर्गावती ने अपने इस राजवंश की गौरवशाली परंपरा को गर्व से आगे बढ़ाया। उनका विवाह गोंड राजा दलपत शाह से हुआ था, जो गढ़ा-मंडला के शक्तिशाली शासक संग्राम शाह के पुत्र थे।
रानी दुर्गावती का शासन और उपलब्धियाँ
कुशल शासिका: अपने पति दलपत शाह की मृत्यु के बाद, रानी ने अपने तीन साल के पुत्र वीर नारायण के साथ गढ़ा-मंडला की सत्ता संभाली। उन्होंने न केवल एक मातृत्वपूर्ण शासिका की तरह राज्य की देखरेख की बल्कि उसे मजबूत और सुरक्षित बनाया।
प्रशासनिक सुधार: रानी दुर्गावती ने प्रशासनिक ढांचे को मजबूत किया और अपने राज्य की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया। उनके शासनकाल में कृषि और व्यापार का विकास हुआ। उन्होंने कई जलाशयों का निर्माण करवाया जिससे राज्य में पानी की आपूर्ति सुनिश्चित हो सके।
युद्ध कौशल: रानी दुर्गावती घुड़सवारी, धनुर्विद्या और तलवारबाजी में निपुण थीं। उनके पास अच्छी तरह प्रशिक्षित सेना थी, जिसमें हाथी सेना और घुड़सवार भी शामिल थे।
रायगढ़ किला: रानी ने रायगढ़ किले को अपनी राजधानी बनाया और इसे एक प्रमुख दुर्ग में परिवर्तित किया। इस किले की सुरक्षा और व्यवस्था में उनकी गहरी रुचि थी।
अकबर के साथ संघर्ष
1564 में, मुगल सम्राट अकबर के सेनापति आसफ खान ने गढ़ा-मंडला पर आक्रमण किया। मुगलों ने गढ़ा-मंडला को एक समृद्ध राज्य के रूप में देखा और उसकी संपत्ति को लूटने का उद्देश्य रखा। रानी दुर्गावती ने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए इस आक्रमण का डटकर मुकाबला किया।
रानी ने अपने सैनिकों के साथ शौर्य का प्रदर्शन करते हुए युद्ध का नेतृत्व किया। जब युद्ध में उनकी सेना कमजोर पड़ने लगी और स्थिति विकट हो गई, तब उन्होंने अपनी वीरता और स्वाभिमान का परिचय देते हुए आत्मबलिदान करना उचित समझा। उन्होंने खुद को एक तलवार से मार डाला, ताकि उन्हें दुश्मन के हाथों अपमानित न होना पड़े।
रानी दुर्गावती की विरासत
स्वतंत्रता और स्वाभिमान: रानी दुर्गावती का जीवन और बलिदान आज भी साहस, स्वाभिमान और देशभक्ति की मिसाल के रूप में देखा जाता है। उन्होंने न केवल गढ़ा-मंडला को एक मजबूत राज्य बनाया बल्कि अपने साहसिक निर्णयों से हर भारतीय को प्रेरणा दी।
लोककथाओं और साहित्य में स्थान: रानी दुर्गावती की वीरता की कहानियां आज भी भारत के विभिन्न क्षेत्रों की लोककथाओं और साहित्य में जीवित हैं। उनकी कहानियां एक वीर नारी के प्रतीक के रूप में गाई और सुनाई जाती हैं।
दुर्गावती संग्रहालय: जबलपुर में स्थित दुर्गावती संग्रहालय उनकी स्मृति को जीवित रखता है और उनके जीवन तथा शासनकाल से जुड़ी वस्तुओं का संग्रह दर्शाता है।