गौरव सैनी “अभिनय और सृजनशीलता के प्रतीक”
गौरव सैनी “अभिनय और सृजनशीलता के प्रतीक”, जिन्होंने अपनी कला और रचनात्मकता से समाज और मंच को समृद्ध किया है। 8 दिसंबर, 1990 को जबलपुर में जन्मे गौरव को अभिनय के प्रति प्रेरणा बचपन में रामलीला को देखकर और उसमें भाग लेकर मिली। 2014 से वह विवेचना रंग मंडल से जुड़े हैं और प्रतिष्ठित निर्देशक श्री अरुण पांडे, श्री राजकुमार कमले और सीताराम सोनी के निर्देशन में अभिनय, पेंटिंग, सेट डिज़ाइनिंग और नाटकों के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान है।
गौरव ने भारत के विभिन्न हिस्सों में 110 से अधिक नाटकों में प्रदर्शन किया है। उनकी प्रतिभा केवल मंच तक सीमित नहीं रही; उन्होंने द सिग्नल मैन, दरिंदे, हिट एंड रन जैसी शॉर्ट फिल्मों, मेरी निम्मो और डंकी जैसी फीचर फिल्मों और इश्कियां जैसी वेब सीरीज़ में अपनी अद्वितीय छाप छोड़ी है।
अभिनय और नाटकों के प्रति उनकी अपार निष्ठा ने उन्हें रंगमंच का एक महत्वपूर्ण स्तंभ बनाया है। इसके साथ ही, गौरव एक प्रसिद्ध इंटीरियर डिज़ाइनर भी हैं और निर्माण क्षेत्र में अपनी कंपनी का संचालन करते हैं, जिससे उनकी बहुआयामी प्रतिभा का परिचय मिलता है।
यह स्मृति चिन्ह गौरव सैनी के नाटकों और अभिनय के प्रति अद्वितीय समर्पण, उनकी रचनात्मकता और समाज के प्रति उनके योगदान को सम्मानित करता है। यह उनके साहस, मेहनत और प्रतिभा का प्रतीक है।


Garha Dynasty (गढ़ा राजवंश) के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक योगदान

Garha Dynasty (गढ़ा वंश) मध्य भारत का एक महत्वपूर्ण राजवंश था, जिसने विशेषकर गोंड जनजाति के लिए महत्वपूर्ण ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक योगदान दिया। ये राजवंश मुख्यतः वर्तमान मध्य प्रदेश में रहा और 14वीं से 18वीं शताब्दी तक शक्तिशाली शासन किया। इस वंश ने गढ़ा-मंडला (वर्तमान जबलपुर क्षेत्र) को अपनी राजधानी बनाकर कई महत्वपूर्ण नीतियों और संरचनाओं का निर्माण किया, जो उनके प्रभावशाली शासन का प्रतीक है। आइए, इस गढ़ा वंश के इतिहास, इसके शासकों, और इसकी विशेषताओं पर कुछ बिंदुओं पर चर्चा करते हैं, जिन पर एक पॉडकास्ट तैयार किया जा सकता है:
1. गढ़ा वंश का उदय
- गढ़ा वंश का उदय लगभग 14वीं शताब्दी में माना जाता है। इसे स्थापित करने का श्रेय मुख्य रूप से गोंड शासकों को जाता है।
- वंश के प्रारंभिक शासक कबीलों के प्रमुख थे, जो धीरे-धीरे शक्तिशाली बन गए और एक संगठित शासन प्रणाली स्थापित की।
- इस दौरान गढ़ा वंश ने मध्य भारत में एक महत्वपूर्ण शक्ति बनकर उभरना शुरू किया।
2. संग्राम सिंह का शासनकाल
- गढ़ा वंश के सबसे प्रसिद्ध शासकों में से एक संग्राम सिंह थे, जिन्होंने 16वीं शताब्दी में शासन किया।
- संग्राम सिंह के शासन में वंश की शक्ति और संपत्ति का विस्तार हुआ और गढ़ा-मंडला एक समृद्ध राज्य बन गया।
- उन्होंने मुस्लिम शासकों से कई युद्ध किए और अपनी स्वतंत्रता बनाए रखी, जो उनके शौर्य और दृढ़ता का परिचायक है।
3. रानी दुर्गावती और उनका संघर्ष
- गढ़ा वंश की सबसे प्रसिद्ध शासक रानी दुर्गावती थीं, जो अपनी वीरता और बलिदान के लिए जानी जाती हैं।
- 1564 में, अकबर के सेनापति आसफ खान ने गढ़ा वंश पर आक्रमण किया। रानी दुर्गावती ने वीरता के साथ युद्ध किया और आखिरी क्षण तक संघर्ष किया।
- रानी दुर्गावती की मृत्यु के बाद गढ़ा वंश का प्रभाव कम हो गया, लेकिन उनका साहस आज भी प्रेरणा का स्रोत है।
4. गढ़ा वंश की संस्कृति और कला
- गढ़ा वंश के शासनकाल में क्षेत्रीय कला और वास्तुकला का विकास हुआ। उन्होंने किलों, मंदिरों और जलाशयों का निर्माण करवाया।
- गोंड कला और शिल्प के संरक्षण में गढ़ा वंश का महत्वपूर्ण योगदान रहा। उनकी संस्कृति में प्रकृति का सम्मान और जनजातीय परंपराओं का अद्वितीय स्थान था।
5. गढ़ा वंश का पतन और उत्तराधिकार
- 16वीं शताब्दी के बाद, मुगलों के आक्रमण और अन्य बाहरी शक्तियों के दबाव से गढ़ा वंश कमजोर हो गया।
- 18वीं शताब्दी में, मराठों ने इस क्षेत्र पर अधिकार कर लिया और गढ़ा वंश का अंत हो गया।
6. गढ़ा वंश का योगदान और विरासत
- गढ़ा वंश ने गोंड जनजाति और मध्य भारत की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित किया। उनके शासनकाल के दौरान गोंड समाज की उन्नति हुई।
- उनकी कहानियां आज भी लोककथाओं और साहित्य में जीवित हैं। रानी दुर्गावती का बलिदान और उनकी वीरता भारतीय इतिहास में अनूठी मिसाल हैं।
रानी दुर्गावती (1524-1564) गढ़ा-मंडला राज्य की एक साहसी और वीर शासिका थीं, जिनका शासन मध्य प्रदेश के गोंडवाना क्षेत्र पर था। उनका नाम इतिहास में उनकी अदम्य साहस, कुशल नेतृत्व और मातृभूमि के प्रति प्रेम के लिए अमर है। रानी दुर्गावती का जन्म कालिंजर के चंदेल राजवंश में राजा कीरत राय के घर हुआ था। चंदेल वंश अपने युद्ध-कौशल और वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध था, और रानी दुर्गावती ने अपने इस राजवंश की गौरवशाली परंपरा को गर्व से आगे बढ़ाया। उनका विवाह गोंड राजा दलपत शाह से हुआ था, जो गढ़ा-मंडला के शक्तिशाली शासक संग्राम शाह के पुत्र थे।
रानी दुर्गावती का शासन और उपलब्धियाँ
कुशल शासिका: अपने पति दलपत शाह की मृत्यु के बाद, रानी ने अपने तीन साल के पुत्र वीर नारायण के साथ गढ़ा-मंडला की सत्ता संभाली। उन्होंने न केवल एक मातृत्वपूर्ण शासिका की तरह राज्य की देखरेख की बल्कि उसे मजबूत और सुरक्षित बनाया।
प्रशासनिक सुधार: रानी दुर्गावती ने प्रशासनिक ढांचे को मजबूत किया और अपने राज्य की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया। उनके शासनकाल में कृषि और व्यापार का विकास हुआ। उन्होंने कई जलाशयों का निर्माण करवाया जिससे राज्य में पानी की आपूर्ति सुनिश्चित हो सके।
युद्ध कौशल: रानी दुर्गावती घुड़सवारी, धनुर्विद्या और तलवारबाजी में निपुण थीं। उनके पास अच्छी तरह प्रशिक्षित सेना थी, जिसमें हाथी सेना और घुड़सवार भी शामिल थे।
रायगढ़ किला: रानी ने रायगढ़ किले को अपनी राजधानी बनाया और इसे एक प्रमुख दुर्ग में परिवर्तित किया। इस किले की सुरक्षा और व्यवस्था में उनकी गहरी रुचि थी।
अकबर के साथ संघर्ष
1564 में, मुगल सम्राट अकबर के सेनापति आसफ खान ने गढ़ा-मंडला पर आक्रमण किया। मुगलों ने गढ़ा-मंडला को एक समृद्ध राज्य के रूप में देखा और उसकी संपत्ति को लूटने का उद्देश्य रखा। रानी दुर्गावती ने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए इस आक्रमण का डटकर मुकाबला किया।
रानी ने अपने सैनिकों के साथ शौर्य का प्रदर्शन करते हुए युद्ध का नेतृत्व किया। जब युद्ध में उनकी सेना कमजोर पड़ने लगी और स्थिति विकट हो गई, तब उन्होंने अपनी वीरता और स्वाभिमान का परिचय देते हुए आत्मबलिदान करना उचित समझा। उन्होंने खुद को एक तलवार से मार डाला, ताकि उन्हें दुश्मन के हाथों अपमानित न होना पड़े।
रानी दुर्गावती की विरासत
स्वतंत्रता और स्वाभिमान: रानी दुर्गावती का जीवन और बलिदान आज भी साहस, स्वाभिमान और देशभक्ति की मिसाल के रूप में देखा जाता है। उन्होंने न केवल गढ़ा-मंडला को एक मजबूत राज्य बनाया बल्कि अपने साहसिक निर्णयों से हर भारतीय को प्रेरणा दी।
लोककथाओं और साहित्य में स्थान: रानी दुर्गावती की वीरता की कहानियां आज भी भारत के विभिन्न क्षेत्रों की लोककथाओं और साहित्य में जीवित हैं। उनकी कहानियां एक वीर नारी के प्रतीक के रूप में गाई और सुनाई जाती हैं।
दुर्गावती संग्रहालय: जबलपुर में स्थित दुर्गावती संग्रहालय उनकी स्मृति को जीवित रखता है और उनके जीवन तथा शासनकाल से जुड़ी वस्तुओं का संग्रह दर्शाता है।
डॉ भीमराव अंबेडकर आर्थिक कल्याण योजना
- योजना का उद्देश्य : योजना का उद्देश्य अनुसूचित जाति वर्ग के हितग्राहियों को स्वरोजगार स्थापित करने के लिए कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराया जाएगा।
- योजना का क्रियान्वयन: डॉ भीमराव अंबेडकर आर्थिक कल्याण योजना के क्रियान्वयन के लिए एवं वित्तीय लक्ष्यों का निर्धारण जिलेवार प्रबंध संचालक, म0प्र0 राज्य सहकारी अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास निगम मर्यादित, भोपाल द्वारा किया जावेगा।
- पात्रता:
- योजना का कार्यक्षेत्र सम्पूर्ण मध्यप्रदेश होगा (अर्थात योजना का लाभ उन्हीं उद्यमों को देय होगा, जो मध्यप्रदेश सीमा के अन्दर स्थापित हों)।
- आवेदक मध्यप्रदेश का मूल निवासी हो।
- आवेदक अनुसूचित जाति वर्ग का सदस्य हो। (सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी प्रमाण पत्र सलंग्न करना होगा)।
- आवेदन दिनांक को आयु 18 से 55 वर्ष के मध्य हो।
- किसी भी राष्ट्रीयकृत बैंक/वित्तीय संस्था/सहकारी बैंक का चूककर्ता /अशोधी Defaulter नहीं होना चाहिए।
- यदि कोई व्यक्ति किसी शासकीय उद्यमी/स्वरोजगार योजना के अन्तर्गत सहायता प्राप्त कर रहा हो, तो इस योजना के अन्तर्गत पात्र नहीं होगा।
- सिर्फ एक बार ही इस योजना के अन्तर्गत सहायता के लिए पात्र होगा।
- योजना उद्योग/सेवा व्यवसाय क्षेत्र के लिए होगी।
- पात्रता:
- वित्तीय सहायता:
- सभी प्रकार के स्वरोजगार हेतु रु 10 हज़ार से रु 1 लाख तक की परियोजनाए
- ब्याज अनुदान – योजनान्तर्गत अनुसूचित जाति वर्ग के हितग्राहियों को बैंक द्वारा वितरित / शेष (Outstanding) ऋण (Term Loan & Working Capital Loan ) पर 7% प्रतिवर्ष की दर से ब्याज अनुदान अधिकतम 5 वर्षो तक (मोरेटोरियम अवधि सहित ), नियमित रूप से ऋण भुगतान (निर्धारित समय एवं राशि ) की शर्त पर निगम द्वारा दिया जायेगा
Indian Bank / Allahabad Bank Aeps निकासी चालू करने आवेदन

इंडिया बैंक / इलाहबाद बैंक के कुछ खाता धारको को बैंक से sms में माध्यम से सूचना भेजी जा रही है जिसमे उनके बचत खाते की Aeps निकासी को बंद करने की सुचना (Indian Bank AEPS debit facility is disabled in your account) दी जा रही है या NPCI की गाइड लाइन के अनुसार किया जा रहा है जिसमे ऐसे खाता धारक जो लास्ट 1 ईयर में केवल Aeps के माध्यम से निकासी कर रहे है किसी अन्य माध्यम जैसे ब्रांच से कॅश / चेक / ATM के माध्यम से निकासी नहीं कर रहे है या जिन्होंने लास्ट 1 ईयर में कभी भी aeps सेवा से निकासी नहीं की उनका Aeps से निकासी बंद कर दिया है साथ ही ग्राहकों से अपेक्षा है की वो aeps के अलावा ब्रांच से कॅश / चेक / ATM के माध्यम से निकासी करे , अगर आपके बचत खाता से भी Aeps निकासी को बंद हो गई है तो आप अपनी शाखा में आवेदन देकर इसको पुनः चालू करा सकते है चालू करने के लिए आवेदन कैसे करना है इसका फॉर्मेट इस लेख में दिया गया है
India Book of Records
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एक कहावत है की बूँद बूँद से घड़ा भरता है इस कहावत को चरितार्थ करते हुए जबलपुर के फिनटेक व्यवसायी, यूटूबेर क्रिएटर, ज्योतिष विशेषज्ञ श्री सुशील मोदी ने अपनी धर्मपत्नी श्री मति योगिता सुशील मोदी के साथ मिल कर बचत और भविष्य के जोखिम के उद्देश्य से दिसंबर 2018 प्रतिमाह 5000-5000 रूपये का निवेश पोस्ट ऑफिस की NSC (राष्ट्रीय बचत पत्र) में किया इस प्रकार अभी तक उन्होंने 60-60 कुल 120 NSC (राष्ट्रीय बचत पत्र) में लगातार निवेश किया कोरोना महामारी जैसे काल में भी उन्होंने अपनी बचत और निवेश जारी रखी, और इस वर्ष दिसम्बर 2023 से NSC (राष्ट्रीय बचत पत्र) की परिपवक्ता राशि प्रति माह उनको अगले 5 वर्ष तक मिलती रहगी, बचत और निवेश के इस कार्य से उनका एक रिकॉर्ड बना दिया है जिसके कारण भारत की प्रतिष्ठित संस्था इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड्स द्वारा उनका उनका नाम इंडिया बुक ऑफ़ रिकॉर्ड में दर्ज किया गया है , या आपने आप में पहला मामला है जब सरकारी बचत और निवेश की योजना में निवेश कर किसी ने इतनी बड़ी राशि और संख्या में NSC (राष्ट्रीय बचत पत्र) में निवेश की और कीर्तिमान बनाया , श्री सुशील मोदी को इस प्रकार की बचत और निवेश की प्रेरणा उनके ही चाचा जी श्री प्रदीप कुमार जैन () से मिली जिन्होंने सर्वाधिक पोस्ट ऑफिस RD खाता खोल कर 2 बार लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड में नाम दर्ज कराया था, अब सुशील मोदी NSC (राष्ट्रीय बचत पत्र) से मिलनी वाली परिपवक्ता राशि को पुनः NSC (राष्ट्रीय बचत पत्र) में अगले पांच वर्ष निवेश कर नया कीर्तिमान बनाना चाहते है और भविष्य के लिए एक बड़ा फण्ड जेनरेट करना चाहते है, NSC (राष्ट्रीय बचत पत्र) एक पोस्ट ऑफिस के मध्य से संचालित होने वाली योजना है जिसमे गारंटेड रेतुर्न प्राप्त किया जा सकता है
Rakha Bandhan Muhurat 2023: रक्षाबंधन पर पूरे दिन भद्रा , जानें राखी बांधने का सही समय

Raksha Bandhan 2023
Raksha Bandhan 2023: रक्षाबंधन आस्था और विश्वास का पर्व है. यह भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक है. रक्षाबंधन के दिन हर बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं. इस दिन भाई भी अपनी बहनों को रक्षा का वचन देते हैं. रक्षाबंधन का पर्व सावन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. इस बार रक्षाबंधन के दिन और शुभ मुहूर्त को लेकर दुविधा बनी हुई है. आइए जानते हैं कि रक्षाबंधन किस दिन मनाया जाएगा और इसका शुभ मुहूर्त क्या है.
रक्षाबंधन पर भद्रा का साया
इस बार सावन माह की पूर्णिमा तिथि 30 अगस्त को है, लेकिन इस दिन भद्रा का साया है. अगर पूर्णिमा तिथि पर भद्रा का साया हो तो भद्राकाल में राखी बांधना अशुभ माना जाता है. भद्राकाल के समापन के बाद ही राखी बांधनी चाहिए. 30 अगस्त के दिन भद्राकाल रात में 9 बजकर 2 मिनट पर समाप्त होगा. इसके बाद ही राखी बांधने का शुभ मुहूर्त शुरू होगा.
रक्षाबंधन 2023 का राहुकाल
30 अगस्त 2023 को मध्यान्ह 12:20 से 1:54 तक राहुकाल रहेगा और प्रात: 10:19 मिनट से पंचक शुरू होंगे.
राखी बांधने का शुभ मुहूर्त
इस बार रक्षाबंधन के दिन राखी बांधने का शुभ मुहूर्त बहुत ही कम समय का है. 30 अगस्त को रात में 9 बजकर 2 मिनट पर भद्राकाल समाप्त होगा. वहीं सावन पूर्णिमा 31 अगस्त को सुबह 7.05 मिनट पर खत्म होगी. इसलिए रात में भद्रा खत्म होने के बाद और 31 अगस्त को सुबह 7 बजकर 5 मिनट से पहले राखी बांधी जा सकती है.