बारिश के पानी के कई सारे फायदे
बारिश का पानी चमका देगा किस्मत, जानिए बारिश के पानी के चमत्कारी उपाय
बारिश के पानी के कई सारे फायदे होते हैं। वास्तु के अनुसार भी बारिश के पानी लाभ है। जी हां, बारिश के पानी की मदद से आप जीवन में बढ़ रहे कर्ज को कम कर सकते हैं। तो आइए जानते हैं कैसे करें-
1. कहते हैं कि यदि कर्ज नहीं उतर पा रहा है तो बारिश का पानी एक बाल्टी में एकत्रित कर लें और उसमें दूध डालकर भगवान स्मरण करके पूरे माह में इसी तरह स्नान कर लें। धीरे-धीरे आपका कर्ज उतरने लगेगा।
2. यह भी कहा जाता है कि यदि कारोबार में घाटा हो रहा हो तो पीतल के बर्तन में वर्षा जल एकत्रित करके माता लक्ष्मी और विष्णुजी का एकादशी के दिन इस जल से अभिषेक करें। इससे व्यापारिक घाटा नहीं होगा और अच्छी इनकम होने लगेगी
3. मान्यता अनुसार यदि आप आर्थिक तंगी से परेशान हैं तो मिट्टी के घड़े को बारिश के पानी से भरकर उसे घर की ईशान या उत्तर दिशा में रख दें। ऐसा करने से आर्थिक तंगी दूर हो जाती है।
4. यह भी कहा जाता है कि एक कटोरी में बारिश का पानी भरकर छत पर रखकर जब उस पानी को अच्छे से धूप लग जाए तो उस पानी को अपने ईष्टदेव का नाम लेकर आम के पत्तों पर छिड़क दें। इस उपाय से माता लक्ष्मी प्रसन्न होकर धन की कमी दूर कर देती हैं।
5. यदि किसी को विवाह में परेशानी आ रही है तो वह बारिश का पानी एकत्रित करके भगवान गणेशजी का जलाभिषेक करें।
6. यदि किसी भी प्रकार का रोग है या कोई संकट है तो तो बारिश का पानी एकत्रित करके महामृत्युंजय मंत्र के साथ भगवान शिव का जलाभिषेक करें।
7. यदि आपको लगता है कि घर में कोई नकारात्मक शक्ति है जिसके कारण कर्ज आदि जैसी परेशानी हो रही है तो किसी बर्तन में बारिश का पानी एकत्रित करके उसे हनुमानजी के सामने रख दें और पूरे महीने प्रतिदिन 51 हनुमान चालीसा का पाठ करें। फिर उस पानी से घर के सभी हिस्सों में छिड़काव कर दें। इससे नकारात्मक शक्तियां हट जाएंगी।
घर में बरकत (उन्नति) के लिए वास्तु उपाय
१. घर में सुबह सुबह कुछ देर के लिए भजन अवशय लगाएं ।
२. घर में कभी भी झाड़ू को खड़ा करके नहीं रखें, उसे पैर नहीं लगाएं, न ही उसके ऊपर से गुजरे अन्यथा घर में बरकत की कमी हो जाती है। झाड़ू हमेशा छुपा कर रखें |
३. बिस्तर पर बैठ कर कभी खाना न खाएं, ऐसा करने से धन की हानी होती हैं। लक्ष्मी घर से निकल जाती है1 घर मे अशांति होती है1
४. घर में जूते-चप्पल इधर-उधर बिखेर कर या उल्टे सीधे करके नहीं रखने चाहिए इससे घर में अशांति उत्पन्न होती है।
५. पूजा सुबह 6 से 8 बजे के बीच भूमि पर आसन बिछा कर पूर्व या उत्तर की ओर मुंह करके बैठ कर करनी चाहिए । पूजा का आसन जुट अथवा कुश का हो तो उत्तम होता है |
६. पहली रोटी गाय के लिए निकालें। इससे देवता भी खुश होते हैं और पितरों को भी शांति मिलती है |
७.पूजा घर में सदैव जल का एक कलश भरकर रखें जो जितना संभव हो ईशान कोण के हिस्से में हो |
८. आरती, दीप, पूजा अग्नि जैसे पवित्रता के प्रतीक साधनों को मुंह से फूंक मारकर नहीं बुझाएं।
९. मंदिर में धूप, अगरबत्ती व हवन कुंड की सामग्री दक्षिण पूर्व में रखें अर्थात आग्नेय कोण में |
१०. घर के मुख्य द्वार पर दायीं तरफ स्वास्तिक बनाएं |
११. घर में कभी भी जाले न लगने दें, वरना भाग्य और कर्म पर जाले लगने लगते हैं और बाधा आती है |
१२. सप्ताह में एक बार जरुर समुद्री नमक अथवा सेंधा नमक से घर में पोछा लगाएं | इससे नकारात्मक ऊर्जा हटती है |
१३. कोशिश करें की सुबह के प्रकाश की किरणें आपके पूजा घर में जरुर पहुचें सबसे पहले |
१४. पूजा घर में अगर कोई प्रतिष्ठित मूर्ती है तो उसकी पूजा हर रोज निश्चित रूप से हो, ऐसी व्यवस्था करे |
हरिद्वार (हरद्वार) की महिमा
हरद्वार जिसे हरिद्वार के नाम से भी जाना जाता है। इसकी महिमा अनन्त है, जिसे शास्त्रो अथवा पुराणों में बहुत गाया और बताया गया है लेकिन ये महिमा क्यों है? इसके कारण क्या हैं?

1. हरद्वार को सर्वप्रथम हर का द्वार कहा जाता है क्योंकि हरद्वार अर्थात हर (देवो के देव महादेवजी) के कैलाश से जुड़ी पर्वत श्रृंखलाओं के पर्वत हरद्वार से शुरू होते है जो हर (देवाधिदेव महादेव) के द्वार कैलाश तक जाते है और हरद्वार महादेवजी का अत्यंत प्रिय स्थान भी है इसी कारण से भी इसे हर का द्वार कहा जाता है द्वार हर तक जाने का!
2. हरिद्वार वह स्थान है जो संसार मे दूसरे स्थान पर बसा था अर्थात पृथ्वी पर सर्वप्रथम काशी मुक्तिक्षेत्र अर्थात आनंदवन की रचना हुई थी जिसे भगवान सदाशिव ने अपने शिवलोक में त्रिशूल से रचकर धरती पर स्थापित किया जो मुक्ति देने वाली काशी के नाम से त्रिलोक विख्यात है। उसके बाद ब्रह्मा जी ने अपने पुत्र दक्ष प्रजापति को राज्य करने के लिए धरती पर जो स्थान प्रदान किया वो हरिद्वार ही था यहीं पर राजा दक्ष ने अपनी नगरी बसाई थी और यहीं पर वो राज्य करते थे। यहीं दक्षपुरी के नाम से पुराणों में वर्णित स्थान है। ये संसार में बसा दूसरा नगर था। पहला काशी दूसरा हरिद्वार इसलिए भी इसकी महिमा है ।
3. हरिद्वार में कुम्भ से छलका अमृत गिरा था जिसे स्वर्भानु नामक दैत्य लेकर भाग रहा था जो बाद में विष्णु भगवान के द्वारा सर विच्छेद के कारण राहु केतु के रूप में जाना गया और नवग्रहों में स्थापित हुआ। अमृत छलककर गिरने के कारण भी हरिद्वार की महिमा बढ़ी और ये कुंभनगरी बना जहां 12 वर्ष बाद कुम्भ होने लगा।
4. पुराणों और शोध में मिले तथ्यों से स्पष्ट हुआ है कि धरती पर सर्वप्रथम भगवान विष्णु के चरण जिस स्थान पर पड़े वो हरिद्वार ही था। बाद में हरिद्वार के मायापुरी क्षेत्र में ही भगवान विष्णु और माता महालक्ष्मी का विवाह संपन्न हुआ था। इन्हीं दोनों कारणों से ये स्थान भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को अत्यंत प्रिय हुआ और इसे भगवान हरि ने अपने नाम से सम्बोधित करके हरिद्वार बनाया तबसे इसके दो नाम पड़े हर का द्वार हरद्वार और हरि का भी द्वार हरिद्वार। संसार का पहला क्षेत्र जो हर और हरि दोनों को अतिप्रिय है और दोनों के नाम से जाना जाता है।
5. राजा दक्ष ने परमेश्वरी माता आदिशक्ति की तपस्या करके उनसे पुत्री रूप में अपने घर जन्म लेने का वर मांगा था तो माँ उसके घर पैदा हुई। राजा दक्ष की पुत्री सती के रूप मे आदिशक्ति स्वरूपा भगवती माता सती का जन्म इसी हरिद्वार में हुआ था। यहीं उनका बालपन और युवाअवस्था गुजरी। यहीं पर उन्होंने तप करके महादेवजी को पति रूप में प्राप्त किया तब भगवान महादेवजी ब्रह्मा, विष्णुजी, इंद्र, सूर्य, चन्द्र आदि देवों व लक्ष्मी, सरस्वती, इंद्राणी, गायत्री आदि देवियों और ऋषि मुनियों तथा अपने गणों सहित बारात लेकर यहां पर आए थे और माता सती से विवाह किया था। इस कारण से भी हरिद्वार की महानता बढ़ती है।
6. राजा दक्ष ने विश्व विख्यात जो यज्ञ किया था वो भी हरिद्वार के कनखल क्षेत्र में ही किया था जहां राजा दक्ष का महल था।
7. गंगोत्री जहां से गंगाजी का उद्गम है उसका रास्ता भी हरिद्वार से होकर ही जाता है। गंगाजी हरिद्वार से होकर ही अन्य स्थानों पर जाती है इसीलिये इसकी महिमा माँ गंगा की कृपा से और भी बढ़ गयी है।
8. चारधाम गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, बद्रीनाथ तक जाने से पूर्व हरिद्वार में पूजन करना अनिवार्य है जो देव आज्ञा है शास्त्रों अथवा पुराणों में क्योंकि चारधाम तक जाने का मार्ग भी हरिद्वार से होकर ही जाता है।
9. महादेवजी की पुत्री माता मनसा जो वासुकि नागों के राजा की बहन थी उनका निवास स्थान भी हरिद्वार में ही है जो माँ मनसा देवी के नाम से विख्यात है जहां हजारोन भक्तगण प्रतिदिन माँ के दर्शन करने दूर-दूर से आते है। मन की कामना पूरी करने के कारण माँ को मनसा देवी कहा जाता है।
10. रामायणकाल में अहिरावण और महिरावण श्रीराम को जब पाताल में देवी के सामने बलि देने के लिए ले गए थे तो महादेवजी के अवतार हनुमानजी ने देवी से श्रीराम की बलि टालने का आग्रह किया था तब देवी ने हनुमानजी से कहा था – मैं इस पातालपुरी को त्यागकर शिवपुरी अर्थात हरिद्वार की पर्वत श्रृंखला पर जा रही हूं। तुम इन दोनों असुरों की बलि मुझे दो जिससे मुझे प्रसन्नता होगी और पाताल में धर्म स्थापना होगी तब जो देवी पाताल से उठकर हरिद्वार के पर्वतों पर विराजी वो माँ चंडीदेवी के नाम से विश्व विख्यात है। रामायणकाल में रावण को जीतने के बाद और अयोध्या आने के बाद श्रीराम ने सीताजी, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न और हनुमानजी महाराज सहित यहां आकर माता के दर्शन किये थे और माँ चंडीदेवी का आशीर्वाद लिया था।
11. माता सती ने जब दक्ष यज्ञ में अपने देह को यज्ञकुंड में जला दिया था तब महादेवजी जब उनका देह लेकर बहुत समय तक जब पृथ्वी भ्रमण करते रहे और उन्होंने संसार को भुला दिया तब विष्णुजी ने अपने कांता नामक चक्र से सती माता के शरीर को 52 भागो में विच्छेद किया था जिन में से माता सती का हृदय हरिद्वार में गिरा था और मायादेवी के नाम से विख्यात हुआ। ये मायादेवी हरिद्वार के निवासियों की कुल देवी बनी और हरिद्वार की महिमा और बढ़ गई।
12. ऋषि मुनियों अवतारों तथा देवी देवताओं की अतिप्रिय स्थली होने के कारण ही इसे देवभूमि हरिद्वार भी कहते हैं।
13. जिस पहाड़ की चोटी पर बैठकर महादेवजी ने दक्ष यज्ञ विध्वंस हेतु वीरभद्र, देवी महाकाली, भैरव, क्षेत्रपाल, नंदी, नवदुर्गा आदि सेना की कमांड की थी उन्हें नेत्तृत्व किया था वो पहाड़ की चोटी भी हरिद्वार में ही है जो नीलपर्वत के नाम से जानी जाती है।
14. हरिद्वार संसार का एक मात्र स्थान है जो भगवान महादेव, आदिशक्ति माता, भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी इन चारों को अतिप्रिय है इसीलिए यहां पर पूरे वर्ष हर हरि और माँ के भक्तों का आवागमन लगा रहता है। श्रद्धालु दूर-दूर से इस दिव्य स्थान पर दर्शन हेतु आते हैं।
15. भीम ने अपने गौडे तक जल भरकर जिस स्थान पर तप किया था वो भीमगोडा कहलाया जो हरिद्वार में ही है।
और भी बहुत कुछ महिमा है हरिद्वार की जो यहां कह पाना असंभव है लेकिन हरिद्वार की महिमा अनन्त है जो सतयुग से महाभारत काल तक की अनेक कथाएं और चमत्कार से भरी हुई है।
कब है देवशयनी एकादशी, जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि..
इस साल देवशयनी एकादशी 29 जून 2023 को है

हिंदू धर्म में देवशयनी एकादशी बहुत महत्वपूर्ण मानी गई है। वैसे तो हर महीने में दो एकादशी पड़ती हैं लेकिन योगिनी एकादशी के बाद श्रद्धालुओं को देवशयनी एकादशी का इंतजार रहता है। देवशयनी एकादशी बड़ी एकादशी मानी गई है। इस साल देवशयनी एकादशी 29 जून 2023 को है। इस दिन के बाद से जगत के पालनहार विष्णु जी योग निद्रा में चले जाते हैं, देवों का शयनकाल शुरु हो जाता है। जो चार माह बाद यानि कि कार्तिक माह की देवउठनी एकादशी पर खत्म होता है। इन चार महीनों को चातुर्मास कहा जाता है।
इस साल अधिकमास होने के कारण विष्णु जी 5 महीने तक शयनकाल में रहेंगे। इस एकादशी को हरिशयनी एकादशी और पद्मा एकादशी भी कहते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि देवशयनी एकादशी का व्रत करने से नर्क की यातनाएं नहीं झेलनी पड़ती और जीवन रोग, दोष मुक्त रहता है। देवशयनी एकादशी व्रत में कथा का श्रवण जरूर करें, इसके बिना व्रत व्यर्थ माना जाता है।
आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 29 जून की सुबह 3 बजकर 18 मिनट से शुरू होगी और 30 जून को 02 बजकर 42 मिनट तक रहेगी। ऐसे में उदया तिथि के हिसाब से एकादशी का व्रत 29 जून को रखा जाएगा। व्रत का पारण 30 जून को किया जाएगा। वैसे तो व्रत का पारण 30 जून को स्नान, दान के बाद कभी भी किया जा सकता है, लेकिन पारण का शुभ समय दोपहर 01 बजकर 48 मिनट से लेकर शाम 04 बजकर 36 मिनट तक है।
पूजा विधि
देवशयनी एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठें। इस दिन पानी में गंगाजल डालकर स्नान करें। साफ कपड़े पहनें। व्रत का संकल्प लें। घर और मंदिर की साफ-सफाई करें। चौकी पर एक पीला कपड़ा बिछाएं। इस पर भगवान विष्णु की तस्वीर स्थापित करके विधि-विधान से पूजा करें। भगवान को फल, फूल और धूप आदि अर्पित करें। पूजन के दौरान भगवान के मंत्रों का जाप करें, देवशयनी एकादशी की कथा पढ़ें या सुनें। भगवान को पंचामृत का भोग लगाएं। एकादशी व्रत के सभी नियमों का पालन करें और अगले दिन स्नान और दान के बाद व्रत का पारण करें।
देवशयनी एकादशी शयन मंत्र
29 जून को देवशयनी एकादशी पर भगवान को शयन करवाते समय श्रद्धापूर्वक इस मंत्र का उच्चारण करें ।
‘सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जगत सुप्तं भवेदिदम।
विबुद्धे त्वयि बुध्येत जगत सर्वं चराचरम।’
‘हे जगन्नाथ जी! आपके सो जाने पर यह सारा जगत सुप्त हो जाता है और आपके जाग जाने पर सम्पूर्ण विश्व तथा चराचर भी जागृत हो जाते हैं। प्रार्थना करने के बाद भगवान को श्वेत वस्त्रों की शय्या पर शयन करा देना चाहिए।
घर से निकलते ही दिखाई दें ये पशु या पक्षी तो अशुभ होता है, शुभ भविष्य के संकेत
पशु और पक्षी के शुभ अशुभ संकेत क्या हैं? : शकुन अपशकुन शास्त्र, समुद्रिक शास्त्र और ज्योतिष शास्त्र में पशु या पक्षियों के दर्शन करने को शुभ और अशुभ श्रेणी में विभाजित किया गया है। कहते हैं कि घर से निकलते ही इनके दर्शन हो जाए तो यह शुभ या अशुभ होते हैं। इनसे भी संकटों के संकेत मिलते हैं। आओ जानते हैं कि किस पशु या पक्षी को देखना शुभ है या अशुभ। और पक्षियों और जानवरों का व्यवहार बदलने से क्या होता है?

शुभ
1. चिड़िया के दर्शन शुभ है।
2. तोते का दर्शन शुभ माना गया है।
3. बकरी-बकरा शुभ माना गया है।
4. मुर्गा शुभ माना गया है।
5. हाथी दर्शन अति शुभ माना गया है।
6. सूअर भी शुभ माना गया है।
7. घोड़ा भी शुभ माना गया है। भूतादि घोड़े से दूर रहते हैं।
8. मधुमखी को अति शुभ माना गया है।
9. मोर का दर्शन शुभ है।
10. गाय या बैल का दर्शन शुभ है।
11. सफेद उल्लू का दर्शन शुभ।
12. नीलकंड का दिखाई देना शुभ।
13. धनेश का दिखाई देगा शुभ।
अशुभ
1. कबूतर को अशुभ माना गया है।
2. बिल्ली को अशुभ माना गया है।
3. सांप के दर्शन दुखदाई है।
4. चमगादड़ को देखना दुख, धोका, जादूटोना आदि।
5. चील अशुभ है। चील जिस पेड़ पर आती है वो पेड़ सूख जाता है।
6. चूहा यदि बिना कारण के मकान को छोड़ दे तो मकान गिर जाता है।
7. भैंस या भैंसा का दर्शन अशुभ।
8. गिद्ध का दर्शन अशुभ।
9. बिच्छू का दिखाई देना अशुभ।
10. लाल चिटिंयों का दिखाई देना भी अशुभ।
भूल कर भी इन 5 चीजों को न गिरने दें हाथ से, होगा बड़ा नुकसान
क्या आप जानते हैं कि चावल, दूध, नमक और शकर और नारियल ये 5 चीजें कभी भी हाथ से गिरना नहीं चाहिए। शास्त्रों में लिखा है इन 5 सफेद चीजों के हाथ से गिरने पर होते हैं अशुभ होने के संकेत…
नमक :- नमक को कभी भी नीचे नहीं गिरना चाहिए इससे घर में आर्थिक तंगी हो जाती है। अगर किसी के हाथों से नमक नीचे गिर जाता है तो उसके जीवन में परेशानियां आनी शुरू हो जाती हैं और ग्रह भी परेशान कर सकते हैं इसलिए हाथ से नमक का गिरना अशुभ है। कुछ लोग नमक के गिरने को उम्र से भी जोड़ कर देखते हैं।
दूध :- दूध सफेद चीजों में सबसे शुभ सामग्री माना जाता है। दूध का हाथ से नीचे गिरना संतान के जीवन में परेशानी खड़ी कर सकता है। जबकि गैस के चुल्हे पर दूध का गिरना शुभ माना जाता है। नए घर के वास्तु में जानबूझ कर दूध को उबाल कर गिराया जाता है या खीर बनाकर नीचे गिराई जाती है।
चावल :- चावल को अक्षत कहा जाता है। चावल भी सबसे शुभ पूजा सामग्री में गिने जाते हैं। चावल का हाथ से गिरना या चावल से भरा बर्तन हाथ से छूटना अशुभ समाचार मिलने के संकेत देता है। लेकिन नई दुल्हन के गृहप्रवेश में पैरों से चावल का कलश ढुलकाया जाता है। हालांकि कई विद्वान इसे गलत प्रथा बताते हैं क्योंकि चावल अन्न है और हमारी परंपराएं अन्न को पैर लगाने की इजाजत नहीं देती है।

शकर :- शकर भगवान का प्रसाद माना जाता है। इसके नीचे गिरने से या शकर से भरा पात्र नीचे गिरने से अप्रिय समाचार मिल सकता है। ऐसी मान्यता है। .
नारियल :- नारियल का भीतरी हिस्सा सफेद होता है। और नारियल अपने हर रूप में पूजा के उपयोग में आता है। नारियल का हाथ से छूटना तरक्की की राहों में अवरोध का संकेत है।
कैसे उतारे बच्चों की नजर, सरल विधि से

नजर एक एैसी चीज है जिसे लगती है वह इंसान सफल होते-होते रह जाता है। बनते-बनते काम बिगड़ जाते हैं। भले ही आज के समय में यह बात अंधविश्वास लगती हो लेकिन नजर दोष को नकारा नहीं जा सकता है। नजर लगने से इंसान का किसी काम में मन नहीं लगता है। सेहत खराब हो जाती है और भी कई तरह से इंसान दिक्कतों का सामना करता है। अक्सर छोटे बच्चों को सबसे पहले नजर लगती है।
बच्चों की नजर उतारने के उपाय—
पुराने समय से नजर उतारने के कई तरह के उपायों को अपनाया जाता रहा है। कई बार छोटे बच्चे बे-वजह रोते रहते हैं। और वे शांत नहीं हो पाते हैं ऐसे में अक्सर आप घर के किसी बुजुर्ग इंसान से सुनते होगें कि बच्चे को किसी की नजर लग गई है।
पहला उपाय:- नजर उतारने के लिए पीली सरसों, लाल मिर्च सूखी हुई, अजवाइन को किसी बर्तन में जलाएं और उससे निकलने वाले धुएं को बच्चे को हल्के हाथों से दें। यह उपाय करने से नजर तुरंत उतर जाती है।
दूसरा उपाय:- प्याज के सूखे हुए छिलके, सूखी मिर्च, राई, नमक और लहसुन को अंगारे में डालकर उस आग को नजर लगे हुए इंसान के सिर के उपर से सात बार घुमाने से बुरी से बुरी नजर उतर जाती है।
तीसरा उपाय:- नजर उतारने का तीसरा उपाय है शनिवार वाले दिन हनुमान मंदिर में जाएं और हनुमान चालीसा का एक पाठ करें। और हनुमान जी के कंधे पर से सिंदूर को नजर लगे हुए इंसान के माथे पर लगाएं।
चौथा उपाय:- नजर लगने से इंसान बुरी तरह से परेशान हो जाता है। ऐसे में गुलाब की सात पंखुडियों को पान के पत्ते में डालकर नजर लगे इंसान को खिलाएं। यह उपाय बुरी नजर के प्रभाव को खत्म कर देता है।
पांचवा उपाय:- पीली सरसो, नमक, राई, सिर का बाल, प्याज छिलका, लाल मिर्च यह सब बस्तुएं बच्चों के सिर से उतारकर जला देने से भी नजर उतर जाती है।
छठवा उपाय:- नजर का मंत्र सिध्द करके भी नजर उतारने से नजर उतर जाती है।