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ग्रहों से संबंधित वस्तुएँ भाग 2
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मंगल नेक-मंगल सूर्य का मित्र है। जब इसे सूर्य का साथ मिले तो मंगल नेक बन जाता है। स्वभाव से मंगल लड़ाकू है तथा यह खून करने और कराने का कारक है। मंगल में बदला लेने की भावना अधिक है। यदि उसे कोई नुकसान पहुँचाए तो वह उसी के बारे में सोचता रहता है। दूसरी तरफ हमेशा सच्चाई का साथ देता है और सोच-समझकर बात करता है।
यह लड़ाकू स्वभाव का है फिर भी किसी से नाइंसाफी नहीं करता।

मंगल नेक हमेशा बहुत हौसला रखता है। यह भाई का कारक भी है। जन्म कुंडली देखकर भाइयों के बारे में पता चलता है। मंगल का रंग लाल है परन्तु ऐसा लाल जिसमें चमक नहीं। इसलिए बिना चमक वाला मूँगा इसका पत्थर है। मंगल नेक हो तो बिना चमकं वाला पत्थर पहनना इसका उपाय है।

हमारे शरीर के अंगों में यह जिगर का कारक है। जिगर की सभी बीमारियाँ मंगल बद के कारण होती हैं।

पोशाक में इसका कारक बास्केट या जैकेट है जो हमें सर्दी में गर्मी तथा सुख देती है। साथ में हमारी सुन्दरता बढ़ाती है।

वृक्षों में नीम मंगल नेक का कारक है जो बहुत सारी बीमारियों से मनुष्य की रक्षा करता है तथा कीटाणुओं को नष्ट करता है। यह मंगलमय भी माना जाता है क्योंकि भारतीय संस्कृति में बच्चे के पैदा होने पर नीम के पत्तों की वंदनवार घर के मुख्य द्वार पर बाँधी जाती है।

मंगल बद उसे कहते हैं जब उसके साथ केतु-शनि बुध या राहु बैठा हो। केतु के साथ मंगल शेर तथा कुत्ता कहा जाता है यानी शेर और केतु के समान. फल देता है। कुंडली में यदि सूर्य शनि एक साथ हों तो मंगल बद या अशुभ हो जाता है। इसी तरह मंगल के साथ बुध होने से भी मंगल का फल अच्छा नहीं रहता। राहु तथा मंगल का फल भी बद है क्योंकि राहु मंगल से दबा रहता है। परन्तु यदि राहु की दृष्टि मंगल पर पड़े तो मंगल का फल खराब हो जाता है जिसके कारण पेट या खून की खराबियों से जिस्म के दाएँ हिस्से पर सख्त तकलीफ हो सकती है।

मंगल अगर पहले घर में बैठा हो तो यह किस्मत को जगा देता है और यदि इसके साथ सूर्य और चन्द्र के उपाय के साथ इसका फल और भी अच्छा हो जाता है। लेकिन पापी ग्रह जैसे राहु केतु या अशुभ शनि से मंगल का फल बहुत अशुभ हो जाता है। पहले घर के मंगल को मैदाने

जंग का शूरवीर कहा है और इंसाफ की तलवार भी कहकर पुकारा है। बुध-बुध व्यापारी है। अपने ग्राहकों को सामान बेचते समय -जी-कुजूरी तथा नर्मी से बात करता है इसकी जुबान में मिठास है। यह बर्तन बनाने वाले ठठियार के समान है तथा जरूरत के समय जैसा चाहे बर्तन बना देता है तथा बातों में लगाकर सभी को प्रसन्न कर सकता है।

यह जुबान का मालिक है और जुबान से काम लेता है और किसी को भी जुबान के चक्र में डालकर अपना काम निकलवा लेता है। यह नसीहत देने में बहुत माहिर है। हर चीज के बारे में अपनी राय रखता है। कभी-कभी इसकी नसीहत पुरुष को गलत रास्ते पर भी ले जाती है। यह बहुत जल्दी सबको मित्र बनाता है।

बुध जिसका अच्छे स्थान पर है वह जातक जुबान का मीठा, दिमाग से तेज होगा।

पोशाक में यह पेट के नीचे के वस्त्रों का कारक है। जैसे तडागी पेटी और नाड़ा।

पशुओं की जाति में यह बकरा-बकरी, भेड़ तथा चमगादड़ के समान है। फलों में यह केले का वृक्ष है, जिसके पत्ते चौड़े हों।

शनि-शनि एक अक्खड़ तरखान की तरह है। यह मेहनती मजदूर भी है तथा कठिन से कठिन कार्य भी कर सकता है। यह एक हथियार की तरह लोहे के सख्त से सख्त कार्य भी कर सकता है। परन्तु इसे अपने काम में हस्तक्षेप पसन्द नहीं है।

यह हर कार्य पूर्णतया होशियारी और चालाकी से करता है। कोई ग्रह इससे मेल नहीं खाता। इसको नमस्कार भी करना हो तो पीठ पीछे हाथ बाँधकर जाता है। इसकी दृष्टि बहुत ही पैनी है जो किसी को पता भी नहीं चलता है और यह सब देखता रहता है। यहाँ तक कि इसमें जादू-मंत्र देखने-दिखाने की शक्ति भी है।

पोशाक में यह हमारे जुराब और जूते हैं जिसके बगैर मनुष्य चलने की सोच भी नहीं सकता ।

पशुओं में यह भैंस या भैंसे का कारक है। अगर घर में कोई बाधा हो तो भैंसे को घर के अन्दर लाकर सारे घर में चक्कर लगवाना चाहिए। इस तरह जिन्न-भूत डरकर घर से भागते हैं।
शनि मौत का भी कारक है। पेड़ों में यह कीकर, आक, खजूर का पेड़ है जो यात्री को छाया नहीं देता। दूसरे शब्दों में यह फिजूल में किसी का मददगार नहीं होता।

राहु-राहु जाति से भंगी और शूद्र है। राहु का सम्बन्ध गन्दगी से है। परन्तु गन्दगी के साथ-साथ यह सफाई भी करता है। भंगी या शूद्र का मतलब यह नहीं कि यह इतना सीधा-सादा है कि इसकी बुद्धि भी शूद्र के समान होगी। अगर ध्यान से सोचें तो राहु बहुत चालाक ग्रह है पर यह काम शूद्रों जैसा करता है और यह मक्कारी के साथ मनुष्य को उल्टे चक्र में डाल देता है। इसके बारे में अन्दाजा लगाना बहुत कठिन है कि यह आगे कौन-सी चाल चलेगा। यह एक गुप्त खोजी की तरह काम करता है और यह बिजली की तरह तेजी से कार्य कर जाता है और मनुष्य में डर तथा शत्रुता जल्दी से पैदा कर देता है।

शक्ति को यह अचानक ही परेशान कर देता है जिससे मनुष्य की बुद्धि अचानक काम कर देना बन्द कर देती है। परन्तु इसके साथ ही यह रास्ता भी दिखाने वाला है।

धातुओं में नीलम सिक्का तथा गोमेद का कारक है। जब कभी राहु गलत स्थान पर बैठ जाए तो नीलम धारण करना शुभ रहेगा। परन्तु उसके साथ ही राहु के बद होने पर इसका उपाय सिक्का बहाना है और गोमेद भी इसी की कारक धातु है।

शरीर के अंगों में यह सारे शरीर के बिना सिर्फ सिर का यानि दिमाग का कारक है। कई बार राहु के साथ यदि चन्द्रमा की युति हो जाए तो मनुष्य का दिमाग पागल भी हो जाता है। यह शरीर के अंगों में ठोड़ी का हिस्सा भी है जो मुख की सुन्दरता बनाती है।

पोशाक में यह हमारा पाजामा या पतलून है जो मनुष्य की शर्म को ढकता है। नंगा व्यक्ति तो किसी के सामने आने पर पागल ही कहलाएगा। पशुओं में यह हाथी के समान ताकतवर है जो भारी से भारी कठिन कार्य करता है तथा कठिन राहों पर चलकर बोझा उठाता है। साथ में यह काँटेदार जंगली चूहा है।
पेड़ों में यह नारियल का पेड़ तथा घास काटने वाला कुत्ता। केतु-केतु अपनी मनमर्जी के कार्य करता है इसके लिए संसार के

बन्धनों की कोई शर्त नहीं। यह राहु की तरह चालाक नहीं। यह पेशे से कुली के सामान भारी कार्य करता है तथा भार उठाने वाला मजदूर है। इसकी सुनने की शक्ति बहुत तेज है जो पाँव की आहट से ही किसी के आने-जाने की आवाज भाँप लेता है।

केतु में किसी प्रकार की शर्म नहीं कि कोई अनजान व्यक्ति है या जानकार। यह सभी से बातचीत करने में नियम है। यह दो रंगा पत्थर है जिसे हम वैदूरय कहते हैं।

शरीर के अंगों में यह सिर के बगैर शरीर है जिसमें दिमाग की कमी • है। परन्तु यह कान, रीढ़ की हड्डी, घुटने पेशाब करने की जगह तथा शरीर के जोड़ हैं। जब यह अशुभ है तो शरीर के इन्हीं अंगों में तकलीफ – पैदा करता है, जैसे रीढ़ की हड्डी में दर्द होना, जोड़ों का दर्द, पेशाब की बीमारी आदि ।

पोशाक में यह पटका-कंबल और ओढ़नी है।

पशुओं में यह कुत्ता, गधा, सुअर, नर या मादा दोनों, छिपकली, पौधों में इमली का पेड़, तिल के पौधे तथा केला फल।

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ग्रहों से संबंधित वस्तुएँ
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बृहस्पति-…पेशे में वह सुनार का कार्य करे तो सफलता, पूजा-पाठ उसके लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा। अन्दर से वह पंडित स्वरूप पेशवा होगा पढ़ा-लिखा ज्ञानी दूसरों को ज्ञान बाँटने का परि सोना बृहस्पति की वस्तुएँ हैं इसलिए सोने के काम करने वाला सुनार भी बृहस्पति है।

यह हवा और सांस का कारक है। इसी से हमारा जीवन चलता है और गुरु और सुख का कारक भी बृहस्पति है। शक्ति के लिहाज से बृहस्पति में सांस लेने और दिलाने की शक्ति है। दूसरे शब्दों में यह हमारे जीवन की सांस आने और जाने की कला का हाकिम है।

हमारे शरीर के अंगों में से गर्दन बृहस्पति का सबसे बड़ा कारक है। जब तक गर्दन कायम है तो मनुष्य जीवित है। गर्दन झुक जाती है तो आदमी की मौत की निशानी है तथा जीते जी शर्मिन्दा होने का कारण है।

इसी प्रकार माथे और नाक के अगले हिस्से से भी बृहस्पति का सम्बन्ध है। बृहस्पति मन्दा होने की निशानी यह होगी कि इन हिस्सों में तकलीफ हो सकती है या बीमारी हो सकती है।

हमारी पोशाक में से बृहस्पति पगड़ी या टोपी का कारक है। दूसरे शब्दों में पगड़ी ही सिर को ढकती है और इज्जत बनाए रखती है। सिर से पगड़ी उतर जाए तो यह शर्मिन्दगी की निशानी है। पशुओं में से बबर शेर या शेरनी का कारक बृहस्पति है। दूसरे शब्दों में यह सबसे बहादुर ग्रह है। वृक्षों में यह पीपल का पेड़ है इसलिए इसे खुश करने के लिए पीपल के पेड़ की पूजा जरूरी समझा गया है।

सूरज-…..सूर्य अपनी जाति के अनुसार क्षत्रिय है जो लड़ने-मरने को हमेशा
तैयार रहता है और अपनी बहादुरी के लिए हमारे ग्रन्थों में जाना जाता है।

सूर्य में आग बहुत है इसलिए यह हमारे सभी अंगों को कंट्रोल करता है। मनुष्य के अन्दर की गर्मी ही मनुष्य को जीवित रखती है। कहने में आता है कि मनुष्य में अब कुछ नहीं रहा, यह तो ठंडा पड़ गया है। यह हमारी बुद्धि का भी कारक है तथा विद्या देने वाला है।

सूर्य से ही सारे संसार को रोशनी मिलती है। दूसरे शब्दों में सूर्य से ही हमारे सारे कार्य चलते हैं। यह संसार वाहक है। इसी से सारे संसार का भोजन पैदा होता है तथा खाना पकता है।

सूर्य की धातुएँ माणिक ताँबा तथा शिलाजीत हैं जो मनुष्य को हर प्रकार की ताकत प्रदान करती है। हमारे शरीर का दायाँ भाग भी सूर्य है। सूर्य सेहरा या कलगी का कारक है, बड़े आदमी या हाकम की निशानी है। जीत के तौर पर ही कलगी लगाई जाती है।

सूर्य कपिला गाय का कारक है जो संसार को वार देती है। इसलिए उपाय के तौर पर कपिला गाय को उसकी कारक वस्तु देते हैं तथा उसकी पूजा करते हैं। वृक्ष में यह तेज फल का वृक्ष है जो हमारे शरीर में गर्मी पैदा करता है तथा कई प्रकार की बीमारियों से छुटकारा देता है।

चन्द्र-….चन्द्रमा मन का कारक है जिससे मन में शान्ति या उथल-पुथल बनी रहती है। चन्द्रमा के कारण जातक में सुख-शान्ति बनी रहती है। यह शान्त स्वभाव का भी कारक है। यह माँ की ममता, दुलार, सुख, माता-पिता तथा अपने बुजुर्गों की सेवा की शक्ति प्रदान करने वाला है।

चन्द्रमा के कारण दयालुता-दूसरों का भला करने वाला तथा दूसरों पर दया करने वाला भोला व्यक्ति जिसमें ज्यादा फेरबदल या चालाकी न हो और जल्द ही मान जाने वाला हठी या जिद्दी न हो अर्थात यह मन का या दिल का कारक है जो दिल से ज्यादा काम लेता है।

चन्द्रमा की धातुएँ चाँदी, मोती तथा दूध का रंग यानि दूध रंग है। वह हमारे शरीर का बायाँ भाग है। हमारी पोशाक में चन्द्रमा धोती परना का कारक है।

चन्द्र घोड़ा घोड़ी का कारक है जिसमें बहुत सहनशक्ति होती है
तथा साथ में ताकत भी होती है। यह मनुष्य को कठिन रास्तों से पार ले जाता है तथा कठिनाइयों में भी संतुलन बनाए रखता है। वृक्षों में यह पोस्त का हरा पौधा है जिससे दूध निकलता है। इसमें नशा होता है। यह ऐसा नशा है जिसे भूलकर आदमी मस्ती में आ जाता है। चन्द्र का देवता शिवजी है जो पोस्त पीए रखते हैं तथा हमेशा मस्ती में खुश रहते हैं।

शुक्र-….शुक्र प्यार, लगन, दिल की शान्ति, ऐशपसन्दगी का कारक है। यह जीवन के हुनर को जानता है। दूसरे शब्दों में यह ऐसा कुम्हार है जो अपनी इच्छा के अनुसार हर प्रकार के घड़े बनाता है जो हमेशा भरे रहते हैं और जरूरत के मुताबिक काम आते हैं। इस प्रकार यह हुनर के तौर पर चीजों की सर्जना करता है। इसीलिए यह खेतीबाड़ी दर्शाता है और सुन्दरता से भरी वैश्या की तरह है जो तरह-तरह के नाच दिखाती है और दूसरों के मन को खुश करती है। इससे काम-वासना भी उत्पन्न होती है।

शुक्र मिट्टी का भी कारक है और मिट्टी से कई प्रकार की उत्पत्ति होती है। मिट्टी के खेलों से खेलते हुए यह गृहस्थ आश्रम के उसूलों का पालन करता है। शरीर में यह गाल का कारक है जो चेहरे की सुन्दरता को बढ़ाता है।

शुक्र पशुओं में बैल या गाय का कारक है। बैल खेती में हमारी मदद करता है तथा गाय दूध देकर हमारे शरीर को शक्ति प्रदान करती है, अन्त समय में गाय की पूँछ पकड़कर व्यक्ति बैतरणी नदी को पार कर जाता है। ऐसा हमारे ग्रन्थों का कहना है। यह पौधों में कपास का पौधा जो सफेद खिला होता है तथा हर तरफ अपनी मुस्कुराहट फैलाता है तथा इसी पौधे के कपड़े बनते हैं जो हमारे शरीर को ढकते हैं और हमें गर्मी-सर्दी से बचाते हैं

पितृ दोष
पितृ दोष : पितरों के दिन आने वाले हैं

सामान्यत: व्यक्ति का जीवन सुख-दुखों से मिलकर बना है.

पूरे जीवन में एक बार को सुख व्यक्ति का साथ छोड़ भी दे लेकिन दु:ख किसी न किसी रुप में उसके साथ बना ही रहता है।

अब फिर वे चाहे संतानहीनता, नौकरी में असफलता, धन हानि, उन्नति न होना, पारिवारिक कलेश आदि के रुप में भी हो सकते हैं।

सूर्य -राहु से बनता है पित्र दोष और ग्रहण दोष ।

जब कुंडली में राहु और सूर्य की युति होती है तो पितृ दोष का निर्माण होता है.

पितृ दोष सभी तरह के दुखों को एक साथ देने की क्षमता रखता है.

इसलिए हिंदू धर्म में सबसे पहले देव पूजा या घर में कोई भी शुभ कार्य होता है तो सबसे पहले पितरों का नाम लिया जाता है पितरों की पूजा होती है उसके बाद में कोई भी शुभ कार्य होते हैं।

देव पूजन से पूर्व पितरों की पूजा करनी चाहिए क्योकि देव कार्यों से अधिक पितृ कार्यों को महत्व दिया गया है।

इसलिए देवों को प्रसन्न करने से पहले पितरों को तृप्त करना चाहिए.

पितर कार्यों के लिए सबसे उतम पितृ पक्ष अर्थात अश्विन मास का कृष्ण पक्ष समझा जाता है।

कैसे होता है कुंडली में पित्र दोष या पित्र ऋण।

कुंडली के नवम भाव को भाग्य भाव कहा गया है. इसके साथ ही यह भाव पित्र या पितृ या पिता का भाव तथा पूर्वजों का भाव होने के कारण भी विशेष रुप से महत्वपूर्ण हो जाता है.

कुंडली के अनुसार पूर्व जन्म के पापों के कारण पितृ दोष बनता है.

इसके अलावा इस योग के बनने के अनेक अन्य कारण भी हो सकते हैं.इसके साथ साथ ग्रहण योग भी बनता है।

ज्योतिष के अनुसार सूर्य और राहु एक साथ जिस भाव में भी बैठ​ते हैं, उस भाव के सभी फल नष्ट हो जाते हैं.

नवम भाव में और पंचम भाव में सूर्य और राहु की युति से पितृ दोष का निर्माण होता है.

नवम भाव पिता का भाव है और सूर्य को पिता का कारक माना जाता है. साथ ही उन्नति, आयु, धर्म का भी कारक माना जाता है.

इस कारण जब पिता के भाव पर राहु जैसे पापी ग्रह की छाया पड़ती है तो पितृ दोष लगता है

. पितृ दोष कुंडली में मौजूद ऐसा दोष है जो व्यक्ति को एक साथ तमाम दुख देने की क्षमता रखता है.

पितृ दोष लगने पर व्यक्ति के जीवन में समस्याओं का अंबार लगा रहता है.

ऐसे लोगों को कदम कदम पर दुर्भाग्य का सामना करना पड़ता है.

परिवार आर्थिक संकट से जूझता रहता है, व्यक्ति को उसकी मेहनत का पूरा फल प्राप्त नहीं होता है,

इस कारण तरक्की बाधित होती है. संतान सुख आसानी से प्राप्त नहीं होता. इस कारण जीवन लगातार उतार चढ़ावों से जूझता रहता है।

पितृ दोष की वजह समझने से पहले ये जानना जरूरी है

कि पितर होते कौन हैं।

दरअसल पितर हमारे पूर्वज होते हैं जो अब हमारे मध्य में नहीं हैं.

लेकिन मोहवश या असमय मृत्यु को प्राप्त होने के कारण आज भी मृत्युलोक में भटक रहे हैं.

इस भटकाव के कारण उन्हें काफी परेशानी झेलनी पड़ती है और वो पितृ योनि से मुक्त होना चाहते हैं।

लेकिन जब वंशज पितरों की तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक विधि विधान से श्राद्ध कर्म नहीं करते हैं,

धर्म कार्यो में पितरों को याद न करते हैं, धर्मयुक्त आचरण नहीं करते हैं और किसी निरअपराध की हत्या करते हैं,

ऐसी स्थिति में पूर्वजों को महसूस होता है कि उनके वंशज उन्हें पूरी तरह से भुला चुके हैं.

इन हालातों में ही पितृ दोष उत्पन्न होता है और ये कुंडली के नवम भाव में राहु और सूर्य की युति के साथ प्र​दर्शित होता है।

पितृदोष हमेशा तीसरी पीढ़ी पर लगता है जब हमारे पूर्वज पितरों की शांति नहीं करते तो यह हमारी संतान पर तीसरी पीढ़ी पर आकर लग जाता है और आगे फिर संतान वृद्धि में परेशानियां होने लगती है।

जिन लोगों की कुंडली में पित्र दोष है वह लोग पित्र दोष के उपाय कर सकते हैं

पितरों को खुश करना सबसे आसान काम है क्योंकि यह आपको प्रत्यक्ष देखने को मिलता है।

पित्र खुश तो सब देव खुश

क्योंकि हम पितरों की ही संतान है उन्हीं के डीएनए से हम हैं और वह हमें ज्यादा दिन परेशान नहीं करते बस थोड़ा सा उनकी तिथि पर उनको याद किया जाए

जैसे हम खुद के लिए सारी चीजें करते हैं वैसे ही पितरों के लिए किया जाए जीवन बहुत सुख मई हो जाता है और पित्र हमें हमेशा आशीर्वाद देते हैं ।

अगर आपके घर में किसी की कुंडली में भी पितृ दोष बना हुआ है तो उसका निवारण जरूर करवाएं

Rakhi
रक्षाबंधन 2024 राखी बांधने का सही समय क्या रहेगा, इस साल भद्रा कब तक रहेगी?
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Raksha Bandhan 2024: रक्षाबंधन पर इस साल भद्रा लग रही है. सावन पूर्णिमा पर सुबह के समय राखी नहीं बांध पाएंगे. आइए जानें रक्षाबंधन पर राखी बांधने का शुभ मुहूर्त और भद्रा काल समय क्या है.

Raksha Bandhan 2024: भाई और बहन के प्रेम का प्रतीक त्योहार रक्षाबंधन हर साल अगस्त महीने में आता है. राखी के दिन बहनें भाई के घर आती हैं और भाई को रक्षासूत्र बांधकर उसके उज्जवल भविष्य की कामना करती है. दूसरी तरफ राखी (Rakhi) बांधने के बाद भाई अपनी बहन की सदैव रक्षा करने का वचन देता है.

इस साल रक्षाबंधन 19 अगस्त 2024 को मनाया जाएगा. भाई-बहन का रिश्ता अटूट रहे इसके लिए शुभ मुहूर्त में ही राखी बांधना चाहिए, भद्राकाल (Rakhi bhadra kaal) में भूलकर भी राखी न बांधें. इस साल रक्षाबंधन पर भद्रा का साया मंडरा रहा है. जान लें राखी किस मुहूर्त में बांधे, भद्रा कब तक रहेगी.

रक्षाबंधन की तिथि (Raksha bandhan 2024 Tithi)

पंचांग के अनुसार, इस साल सावन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 19 अगस्त दिन सोमवार को प्रात: 03:04 से शुरू हो रही है. इस तिथि की समाप्ति 19 अगस्त को ही रात 11:55 पर हो रही है. सावन पूर्णिमा (Sawan Purnima) पर रक्षाबंधन मनाया जाता है.

सुबह नहीं बांध पाएंगी राखी (Raksha Bandhan Shubh muhurat)

इस साल रक्षाबंधन पर 19 अगस्त को राखी बांधने के शुभ मुहूर्त दोपहर 2:07 से रात्रि 08:20 तक रहेगा. वहीं प्रदोष काल में शाम 06.57 से रात 09.10 तक राखी बांधना शुभ रहेगा. 

जो लोग रक्षाबंधन का त्योहार सुबह के समय मनाते हैं इस बार वह सुबह से दोपहर 01.32 तक राखी नहीं बांध पाएंगे, इस दौरान भद्रा रहेगी.

रक्षाबंधन पर भद्रा कब से कब तक ? (Raksha Bandhan Bhadra kaal time)

रक्षाबंधन पर भद्रा के प्रारंभ का समय सुबह में 5 बजकर 53 मिनट पर है, उसके बाद वह दोपहर 1 बजकर 32 मिनट तक रहेगा. इस भद्रा का वास पाताल लोक में है. रक्षाबंधन में राखी बांधने से पहले भद्रा काल पर जरुर विचार किया जाता है, क्योंकि ये अशुभ मानी गई है.

भद्रा में राखी बांधना अशुभ

धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक रक्षाबंधन का पर्व भद्रा काल में नहीं मनाना चाहिए.धार्मिक मान्यता है कि भद्रा काल के दौरान राखी बांधना शुभ नहीं होता है. पौराणिक कथा के अनुसार लंकापति रावण को उसकी बहन ने भद्रा काल में राखी बांधी थी और उसी साल प्रभु राम के हाथों रावण का वध हुआ था. इस कारण से भद्रा काल में कभी भी राखी नहीं बांधी जाती है.

रक्षासूत्र का महत्व

नकारात्मकता और दुर्भाग्य से रक्षा के लिए रक्षासूत्र बांधा जाता है. रक्षासूत्र पहनने वाले व्यक्ति के विचार सकारात्मक होते हैं और मन शांत रहता है. हालांकि अब रक्षासूत्र ने राखी का स्वरूप ले लिया है लेकिन इसका उद्देश्य भाई-बहन के रिश्ते को मजबूत बनाए रखना होता है.

भद्रा क्या है और ज्योतिष में उसका महत्व है

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एक हिन्दु तिथि में दो करण होते हैं. जब विष्टि नामक करण आता है तब उसे ही भद्रा कहते हैं. माह के एक पक्ष में भद्रा की चार बार पुनरावृति होती है. जैसे शुक्ल पक्ष की अष्टमी व पूर्णिमा तिथि के पूर्वार्द्ध में भद्रा होती है और चतुर्थी व एकादशी तिथि के उत्तरार्ध में भद्रा होती है.

कृष्ण पक्ष में तृतीया व दशमी तिथि का उत्तरार्ध और सप्तमी व चतुर्दशी तिथि के पूर्वार्ध में भद्रा व्याप्त रहती है.

भद्रा में वर्जित कार्य | Restrictions during Bhadra

मुहुर्त्त  चिंतामणि और अन्य ग्रंथों के अनुसार भद्रा में कई कार्यों को निषेध माना गया है. जैसे मुण्डन संस्कार, गृहारंभ, विवाह संस्कार, गृह – प्रवेश, रक्षाबंधन, शुभ यात्रा, नया व्यवसाय आरंभ करना और सभी प्रकार के मंगल कार्य भद्रा में वर्जित माने गये हैं.

मुहुर्त्त मार्त्तण्ड के अनुसार भद्रा में किए गये शुभ काम अशुभ होते हैं. कश्यप ऋषि ने भद्रा का अति अनिष्टकारी प्रभाव बताया है. उनके अनुसार अपना जीवन जीने वाले व्यक्ति को कोई भी मंगल काम भद्राकाल में नहीं करना चाहिए. यदि कोई व्यक्ति अनजाने में ही मंगल कार्य करता है तब उसके मंगल कार्य के सब फल खतम हो सकते हैं.

भद्रा में किए जाने वाले कार्य | Activities that can be carried out during Bhadra

भद्रा में कई कार्य ऎसे भी है जिन्हें किया जा सकता है. जैसे अग्नि कार्य, युद्ध करना, किसी को कैद करना, विषादि का प्रयोग, विवाद संबंधी काम, क्रूर कर्म, शस्त्रों का उपयोग, आप्रेशन करना, शत्रु का उच्चाटन, पशु संबंधी कार्य, मुकदमा आरंभ करना या मुकदमे संबंधी कार्य, शत्रु का दमन करना आदि कार्य भद्रा में किए जा सकते हैं.

भद्रा का वास | Bhadra’s residence

मुहुर्त्त चिन्तामणि के अनुसार जब चंद्रमा कर्क, सिंह, कुंभ या मीन राशि में होता है तब भद्रा का वास पृथ्वी पर होता है. चंद्रमा जब मेष, वृष, मिथुन या वृश्चिक में रहता है तब भद्रा का वास स्वर्गलोक में रहता है. कन्या, तुला, धनु या मकर राशि में चंद्रमा के स्थित होने पर भद्रा पाताल लोक में होती है.

भद्रा जिस लोक में रहती है वही प्रभावी रहती है. इस प्रकार जब चंद्रमा कर्क, सिंह, कुंभ या मीन राशि में होगा तभी वह पृथ्वी पर असर करेगी अन्यथा नही. जब भद्रा स्वर्ग या पाताल लोक में होगी तब वह शुभ फलदायी कहलाएगी.

भद्रा संबंधी परिहार | Avoidance of Bhadra

  • यदि दिन की भद्रा रात में और रात की भद्रा दिन में आ जाए तब भद्रा का परिहार माना जाता है. भद्रा का दोष पृथ्वी पर नहीं होता है. ऎसी भद्रा को शुभ फल देने वाली माना जाता है.
  • एक अन्य मतानुसार जब उत्तरार्ध की भद्रा दिन में तथा पूर्वार्ध की भद्रा रात में हो तब इसे शुभ माना जाता है. भद्रा दोषरहित होती है.
  • यदि कभी भद्रा में शुभ काम को टाला नही जा सकता है तब भूलोक की भद्रा तथा भद्रा मुख-काल को त्यागकर स्वर्ग व पाताल की भद्रा पुच्छकाल में मंगलकार्य किए जा सकते हैं.

भद्रा पुच्छ और भद्रा मुख जानने की विधि | Procedure to know about Bhadra Pucch and Bhadra Mukh

भद्रा मुख | Bhadra Mukh

मुहुर्त्त चिन्तामणि के अनुसार शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि की पांचवें प्रहर की पांच घड़ियों में भद्रा मुख होता है, अष्टमी तिथि के दूसरे प्रहर के कुल मान आदि की पांच घटियाँ, एकादशी के सातवें प्रहर की प्रथम 5 घड़ियाँ तथा पूर्णिमा के चौथे प्रहर के आदि की पाँच घड़ियों में भद्रा मुख होता है.

ठीक इसी तरह कृष्ण पक्ष की तृतीया के आठवें प्रहर आदि की 5 घड़ियाँ भद्रा मुख होती है, कृष्ण पक्ष की सप्तमी के तीसरे प्रहर में आदि की 5 घड़ी में भद्रा मुख होता है. इसी प्रकार कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि का छठा प्रहर और चतुर्दशी तिथि का प्रथम प्रहर की पांच घड़ी में भद्रा मुख व्याप्त होता है.

भद्रा पुच्छ | Bhadra Pucch

शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के अष्टम प्रहर की अन्त की 3 घड़ी दशमांश तुल्य, भद्रा पुच्छ कहलाती है. पूर्णिमा की तीसरे प्रहर की अंतिम तीन घटी में भी भद्रा पुच्छ होती है.

पाठकों के लिए एक बात ध्यान देने योग्य यह है कि भद्रा के कुल मान को 4 से भाग देने पर प्रहर आ जाता है, 6 से भाग देने पर षष्ठांश आता है और दस से भाग देने पर दशमांश प्राप्त हो जाता है.

सुशील मोदी ज्योतिष एवं वास्तु विशेषज्ञ

सुनील जैन श्रीमती प्रतिभा जैन
श्री मान सुनील जैन श्रीमती प्रतिभा जैन बने कल्पद्रुम महामण्डल विधान के सौधर्म इंद्र इंद्राणी

कल्पवृक्ष के सामान मुँहमाँगा फल देने वाला है यह कल्पद्रुम विधान

आचार्य श्री जिनसेन जी ने महापुराण के अड़तीसवें पर्व के प्रारम्भ में श्रावक के षष्टकर्मो का वर्णंन करते हुए पूजन के चार भेद बताये है
नित्य पूजन , चतुर्मुख पूजन , कल्पद्रुम पूजन और आष्ठनिका पूजन.

कल्पद्रुम पूजन चक्रवर्ती राजाओ द्वारा किमिक्षिक दानपूर्वक वो विशाल पूजन किया जाता उसे कल्पद्रुम पूजन कहा जाता है
श्री 1008 कल्पद्रुम महामण्डल विधान कल्पवृक्ष के सामान मुँहमाँगा फल देता है . भक्त को अगर इच्छापूर्ति करना हो तो कल्पद्रुम चौबीसी समावशरण विधान कर लेना ।विघ्न बाधाओं को जीवन में न आने देना हो तो ये विधान ही एक उपाय है ।जो भी दान देता है उसकी प्रशंसा करो तो भक्त को इच्छापूर्ति का वरदान मिलेगा देने वाले को धन्यदाता कहो 

ऐसा ही सुअवसर जबलपुर शहर को मिलने जा रहा है, परम श्राध्देय आध्यात्म शिरोमणि आचार्य भगवन श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के परम आशीर्वाद से वात्सलयमयी माँ 105 आर्यिका आदर्शमती माता जी एवं 105 आर्यिका श्री दुर्लभमति माता जी ससंघ सानिध्य में महामहिम विधान 24 दिसंबर 2023 से 2 जनवरी 2024 तक विद्यासागर सभा भवन “लाखा भवन “जबलपुर में संपन्न होने जा रहा है जिसका आयोजन लार्डगंज चातुर्मास कमेटी और लार्डगंज ट्रस्ट कमेटी के द्वारा किया जा रहा है आप सभी इस आयोजन में भाग ले कर पुण्यार्जन करे,

कल्पद्रुम महामण्डल विधान

 मुख्य पात्रो का चयन मंगलवार 19 दिसंबर 2023 को विद्यासागर सभा भवन “लाखा भवन “जबलपुर में प्रातः 8 बजे से , प्रतिष्ठाचार्य बाल ब्रम्हचारी अशोक भैया इंदौर का सानिध्य ,में संपन्न हुआ

कल्पद्रुम महामण्डल विधान

कार्यक्रम का शुभारंभ डॉ पी सी जैन , स्वर्ण मंदिर लार्डगंज ट्रस्ट कमेटी के विमल जैन , विनय जैन (प्रदीप स्टोर), लार्डगंज चातुर्मास कमेटी के अध्यक्ष श्री राज कुमार जैन एवं वरिष्ठ जानो द्वारा स्वर्ण मंदिर लार्डगंज के मूल नायक भगवन 1008 पारसनाथ भगवन एवं  परम श्राध्देय आध्यात्म शिरोमणि आचार्य भगवन श्री विद्यासागर जी महाराज के चित्र समक्ष दीप प्रवज्जलित करके किया गया

सौधर्म इंद्र इंद्राणी

इस सुअवसर पर परम श्राध्देय आध्यात्म शिरोमणि आचार्य भगवन श्री विद्यासागर जी महाराज का विशेष पूजन किया गया, जिसका सौभाग्य प्राप्त हुआ संजय जैन ऑटोमोबाइल वालो को

सुनील जैन श्रीमती प्रतिभा जैन

1008 श्री कल्पद्रुम महामण्डल विधान के सौधर्म इंद्र इंद्राणी बनने का परम सौभाग्य जबलपुर के प्रतिष्ठित व्यवसायी परिवार एस सी जैन होजरी के संचालक श्रीमान सुनील जैन श्रीमती प्रतिभा जैन को प्राप्त हुआ

गणमान्य नागरिक

1008 श्री कल्पद्रुम महामण्डल विधान के मुख्य पात्र चयन के आयोजन में जबलपुर पंचायत सभा के अध्यक्ष श्री कैलाश जैन ,श्री मान शैलेश चौधरी , प्रदीप जैन HB , प्रदीप जैन रद्दी , राज कुमार जैन , अमित पड़रिया , शैलेश जैन मिंकू , अनिल नायक , सनत जैन,चक्रेश जैन पन्नी ,विनय जैन , राजू सोधिया , अशोक जैन मेनका आदि गणमान्य नागरिक उपस्तिथ थे

शेष पत्रो का चयन 23 दिसम्बर २०२३ दिन शनिवार को होगा, यदि आप भी पुण्य का अर्जन करना चाहे तो मंदिर कमेटी से संपर्क कर सकते है

सुशील मोदी (इंडिया बुक रिकॉर्ड धारक)
संपादक एवं मिडिया प्रभारी स्वर्ण मंदिर लार्डगंज चातुर्मास कमेटी

कल्पद्रुम महामण्डल
श्री 1008 कल्पद्रुम महामण्डल विधान 2023 जबलपुर

कल्पवृक्ष के सामान मुँहमाँगा फल देने वाला है यह कल्पद्रुम विधान

आचार्य श्री जिनसेन जी ने महापुराण के अड़तीसवें पर्व के प्रारम्भ में श्रावक के षष्टकर्मो का वर्णंन करते हुए पूजन के चार भेद बताये है
नित्य पूजन , चतुर्मुख पूजन , कल्पद्रुम पूजन और आष्ठनिका पूजन.

कल्पद्रुम पूजन चक्रवर्ती राजाओ द्वारा किमिक्षिक दानपूर्वक वो विशाल पूजन किया जाता उसे कल्पद्रुम पूजन कहा जाता है
श्री 1008 कल्पद्रुम महामण्डल विधान कल्पवृक्ष के सामान मुँहमाँगा फल देता है .

कल्पद्रुम महामण्डल

ऐसा ही सुअवसर जबलपुर शहर को मिलने जा रहा है, परम श्राध्देय आध्यात्म शिरोमणि आचार्य भगवन श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के परम आशीर्वाद से वात्सलयमयी माँ 105 आर्यिका आदर्शमती माता जी एवं 105 आर्यिका श्री दुर्लभमति माता जी ससंघ सानिध्य में महामहिम विधान 24 दिसंबर 2023 से 2 जनवरी 2024 तक विद्यासागर सभा भवन “लाखा भवन “जबलपुर में संपन्न होने जा रहा है जिसका आयोजन लार्डगंज चातुर्मास कमेटी और लार्डगंज ट्रस्ट कमेटी के द्वारा किया जा रहा है आप सभी इस आयोजन में भाग ले कर पुण्यार्जन करे, मुख्य पात्रो का चयन मंगलवार 19 दिसंबर 2023 को विद्यासागर सभा भवन “लाखा भवन “जबलपुर में प्रातः 8 बजे से आयोजित है , प्रतिष्ठाचार्य की भूमिका में बाल ब्रम्हचारी अशोक भैया इंदौर का सानिध्य प्राप्त हो रहा है जिसमे श्री अमित शास्त्री जी का भी सहयोग होगा, मंच संचालन राष्ट्रिय प्रवक्ता नगर गौरव श्री अमित पड़रिया जी द्वारा किया जायेगा

कल्पद्रुम महामण्डल

लेख / सुचना : सुशील मोदी (मीडिया प्रभारी) लार्डगंज स्वर्णमंदिर चातुर्मास कमेटी

घर की दक्षिण दिशा में ये 4 चीजें रखते ही बरसने लगता है पैसा

वास्तु शास्त्र में इंसान की सुख-समृद्धि और खुशहाली के लिए दिशाओं के महत्व को बारीकी से समझाया है.

raksha bandhan 2023

1. घर की दक्षिण दिशा में झाड़ू रखना शुभ होता है. कहते हैं कि झाड़ू में धन की देवी माता लक्ष्मी का वास होता है. इस दिशा में झाड़ू रखने से कभी धन की कमी नहीं होती है. इसे हमेशा दक्षिण दिशा में छिपाकर रखना चाहिए. झाड़ू को कभी भी उत्तर-पूर्व दिशा में रखने से बचें.


2. हमें अपने पलंग का सिरहाना भी दक्षिण दिशा में रखना चाहिए. ऐसे में सोते वक्त आपका सिर दक्षिण की ओर और पैर उत्तर दिशा में होंगे.
कहते हैं कि दक्षिण दिशा में सिर करके सोने से मन-मस्तिष्क में अच्छे विचार आते हैं. ऐसे लोग हर मोर्चे पर कामयाबी हासिल करते हैं.


3. घर में जो भी कीमती सामान हैं, वो हमेशा दक्षिण दिशा में रखना उत्तम होता है. ऐसा करने से घर की बरकत बनी रहती है.


4. वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर की दक्षिण दिशा में चिड़िया की तस्वीर लगाना शुभ होता है. इससे घर में नकारात्मक ऊर्जा का वास नहीं होता है.

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काली हल्दी के सौभाग्यवर्धक प्रयोग

धन और ऐश्वर्य की देवी विष्णुपत्नी महालक्ष्मी है। लक्ष्मी की प्रसन्नता से धनवान होने के लिए तंत्र विज्ञान में बहुत से सरल प्रयोग बताये गये है। इन में से एक प्रयोग है रसोई में प्राय: मसालों के रुप में उपयोग आने वाली हल्दी से धन प्राप्ति का रास्ता।

हर व्यक्ति अपने दैनिक जीवन में हल्दी का उपयोग किसी न किसी रुप में करता ही है। भोजन,चोट लगने, मांगलिक कार्य, पूजा-अर्चना में हल्दी का उपयोग किया जाता है।

अक्सर हम हल्दी की पीली और नारंगी रंग की गांठ देखते हैं। किंतु इन्हीं हल्दी की गांठों में संयोग से कभी-कभी काले रंग की गांठ भी पैदा हो जाती है। लेकिन जानकारी के अभाव में हम उसे खराब मानकर अलग कर देते हैं, फेक देते है। जबकि तंत्र विज्ञान के अनुसार यह काली हल्दी की गांठ ही धन का खजाना माना जाता है। जिसकी विधिवत साधना से अपार धन-संपदा पाई जा सकती है।

हल्दी को संस्कृत में हरिद्रा भी कहा जाता है। तंत्र विद्या में लक्ष्मी प्राप्ति के इस प्रयोग को साधना कहा जाता है। तंत्र विज्ञान में काली हल्दी बहुत अनमोल, अद्भुत और देवीय गुणों वाली मानी जाती है। हालांकि इसका रंग-रुप भद्दा और अनाकर्षक होता है, किंतु धन प्राप्ति की दृष्टि से बहुत प्रभावकारी मानी गई है।

अगर संयोग से आपको काली हल्दी मिल जाए तो आप स्वयं को सौभाग्यशाली मानें उसे अपने देवालय में विष्णु-लक्ष्मी प्रतिमा के समीप रखें और विधिवत पूजा करें। माना जाता है कि इसके रखने मात्र से ही घर में सुख-शांति आने लगती है। काली हल्दी की गांठ को चांदी के साथ या किसी भी सिक्के के साथ एक स्वच्छ और नए वस्त्र में बांधकर अन्य देव प्रतिमाओं के साथ पूजा करें। इस पोटली को गृहस्थ अपने घर की तिजोरी और व्यापारी अपने गल्ले में रख दें। ऐसा करने पर धनोपार्जन में आने वाली बाधा दूर होती है और अद्भूत धनलाभ होता है। तंत्र विज्ञान में काली हल्दी की गांठ या हरिद्रा तंत्र की सिद्धी के लिए पूजा विधान, नियम बताए गए हैं।

धन प्राप्ति के लिए हल्दी की काली गांठ यानि हरिद्रा तंत्र की साधना शुक्ल या कृष्ण पक्ष की किसी भी अष्टमी से शुरु की जा सकती है। इसके लिए पूजा सूर्योदय के समय ही की जाती है।

हरिद्रा तंत्र की नियम-संयम से साधना व्रती को मनोवांछित और अनपेक्षित धनलाभ होता है। रुका धन प्राप्त हो जाता है। परिवार में सुख-समृद्धि आती है। इस तरह एक हरिद्रा यानि हल्दी घर की दरिद्रता को दूर कर देती है।

पूर्वी मनोगत और गहन अध्ययनों से पता चला है की काली हल्दी बंगाल में चमत्कारी औषधियों के उपयोगों के कारण बहुत उपयोग में लायी जाती है। साधक इसे माता काली जी की पूजा करने में भी प्रयोग करते है। यह घर में बुरी शक्तियों को प्रवेश नहीं करने देती है। इसको ज्यादा बाधायों का नाश करने में उपयोग किया जाता है।

* यदि परिवार में कोई व्यक्ति निरन्तर अस्वस्थ्य रहता है, तो पहले गुरूवार को आटे के दो पेड़े बनाकर उस में गीली चने की दाल के साथ गुड़ और थोड़ी सी पिसी काली हल्दी को दबाकर रोगी व्यक्ति के उपर से 7 बार उसार कर गाय को खिला दें । यह उपाय लगातार 3 गुरूवार करने से आश्चर्यजनक लाभ मिलता है।

* यदि किसी व्यक्ति या बच्चे को नजर लग गयी है, तो काले कपड़े में काली हल्दी को बांधकर 7 बार ऊपर से उतार कर बहते हुये जल में प्रवाहित कर दें । इस से नजर से मुक्ति मिलेगी।

* शुक्लपक्ष के प्रथम गुरूवार से नियमित रूप से काली हल्दी पीसकर तिलक लगाने से गुरू और शनी दोनों ग्रह शुभ फल देने लगेंगे। यदि किसी के पास धन आता तो बहुत है किन्तु टिकता नहीं है, उन्हे यह उपाय अवश्य करना चाहिए।

* शुक्लपक्ष के प्रथम शुक्रवार को चांदी की डिब्बी में काली हल्दी, नागकेशर व सिन्दूर को साथ में काली हल्दी रखकर मां लक्ष्मी के चरणों से स्पर्श करवा कर धन रखने के स्थान पर रख दें। यह उपाय करने से धन रूकने लगेगा।

* यदि आपके व्यवसाय में निरन्तर गिरावट आ रही है, तो शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरूवार को पीले कपड़े में काली हल्दी, 11 अभिमंत्रित गोमती चक्र, चांदी का सिक्का व 11 अभिमंत्रित धनदायक कौड़ियां बांधकर 108 बार •“ऊँ नमो भगवते वासुदेव नमः” का जाप कर धन रखने के स्थान पर रखने से व्यवसाय में प्रगति आ जाती है।

* यदि आपका व्यवसाय मशीनों से सम्बन्धित है, और आये दिन कोई मंहगी मशीन आपकी खराब हो जाती है। तो आप काली हल्दी को पीसकर केशर व गंगा जल मिलाकर प्रथम बुधवार को उस मशीन पर स्वास्तिक बना दें। यह उपाय करने से मशीन जल्दी खराब नहीं होगी।

* दीपावली के दिन पीले वस्त्रों में काली हल्दी के साथ एक चांदी का सिक्का रखकर धन रखने के स्थान पर रख देने से वर्ष भर मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।

* यदि कोई व्यक्ति मिर्गी या पागलपन से पीडि़त हो तो किसी अच्छे मूहूर्त में काली हल्दी को कटोरी में रखकर लोबान की धूप दिखाकर शुद्ध करें। तत्पश्चात एक टुकड़ें में छेद कर धागे की मदद से उसके गले में पहना दें और नियमित रूप से कटोरी की थोड़ी सी हल्दी का चूर्ण ताजे पानी से सेंवन कराते रहें। इस से आप को अवश्य लाभ मिलेगा।

* शुभ दिन में गुरु पुष्य या रवि पुष्य नक्षत्र हो। राहुकाल न हो, शुभ घड़ी में काली हल्दी को लाएँ। इसे शुद्ध जल से भीगे कपड़े से पोंछकर लोबान की धूप की धुनी में शुद्ध कर लें व कपड़े में लपेटकर रख दें। आवश्यकता होने पर इसका एक माशा चूर्ण ताजे पानी के साथ सेवन कराये व एक छोटा टुकड़ा काटकर धागे में पिरोकर रोगी के गले या भुजा में बाँध दें। इस प्रकार उन्माद, मिर्गी, भ्रांति और अनिन्द्रा जैसे मानसिक रोगों मे बहुत लाभ होता है।

* गुरु पुष्य नक्षत्र में काली हल्दी को सिंदूर में रखकर लाल वस्त्र में लपेटकर धूप आदि देकर कुछ सिक्कों के साथ बाँधकर बक्से या तिजोरी में रख दें तो धनवृद्धि होने लगती है।

* काली हल्दी, श्वेतार्क मूल, रक्त चन्दन और हनुमान मंदिर या काली मंदिर में हुए हवन की विभूति गोमूत्र में मिलाकर लेप बनायें और उससे घर के मुख्य द्वार और सभी प्रवेश के दरवाजों के ऊपर स्वास्तिक का चिन्ह बनायें। इससे किसी भी प्रकार की बुरी नजर, टोना टोटका या बाधा आपके घर में प्रवेश नहीं कर सकेंगे।

* जिस व्यक्ति को बुरी नजर लगी हो या बार बार लगती हो या अक्सर बीमार रहता हो तो काली हल्दी, श्वेतार्क मूल, रक्त चन्दन और हनुमान मंदिर या काली मंदिर में हुए हवन की विभूति गोमूत्र में मिलाकर मिश्रण का तिलक माथे, कंठ व् ह्रदय पर करे तो वो सुरक्षित रहता है।

* काली हल्दी का चूर्ण दूध में भिगोकर चेहरे और शरीर पर लेप करने से सौन्दर्य की वृद्धि होती है।

* मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए तंत्र शास्त्र में हरिद्रा तंत्र में चर्चा की गयी है। कहते हैं, इससे मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और धन-धान्य की वर्षा करती हैं। हरिद्रा यानी काली हल्दी खाने के काम में नहीं आती, पर चोट लगने और दूसरे औषधीय गुणों में इसे महत्व दिया जाता है। यदि किसी को इस काली हल्दी की गांठ प्राप्त हो, तो उसे पूजा घर में रख दें। मान्यता है कि यह जहां भी होती है, सहज ही वहां श्री-समृद्धि का आगमन होने लगता है। हरिद्रा तंत्र को नए कपड़े में अक्षत और चांदी के टुकड़े अथवा किसी सिक्के के साथ रखकर गांठ बांध दें। और धूप-दीप से पूजा करके गल्ले या बक्से में रख दें, तो आश्चर्यजनक आर्थिक लाभ होने लगता है। लेकिन इसको घर में रखने से पहले अभिमंत्रित भी कर लें, तभी इसका विशेष प्रभाव दिखता है।

* हरिद्रा तंत्र के लिए साधना विधि महीने की किसी भी अष्टमी से इस पूजा को शुरू कर सकते हैं इस दिन प्रात: उठकर नित्यकर्म से निवृत्त होकर पूर्व की ओर मुख करके आसन पर बैठ जाएं। तत्पश्चात् काली हल्दी की गांठ को धूप-दीप देकर नमस्कार करें। फिर उगते हुए सूर्यको नमस्कार करें और 108 बार •‘‘ॐ ह्रीं सूर्याय नम: मंत्र का जाप करे।’

इसके बाद स्थापित काली हल्दी की पूजा करें। पूरे दिन व्रत रखें और फलाहार करें । यथाशक्ति दान-पुण्य भी करें। हरिद्रा तंत्र की साधना में यह तथ्य स्मरण रखना चाहिए कि इसके साधक के लिए मूली, गाजर और जिमींकंद का प्रयोग वर्जित है। इस प्रयोग को विधिपूर्वक करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। घर में बरकत होती है।

* चंदन की भाँति काली हल्दी का तिलक लगाएँ। यदि अपनी कनिष्ठा उँगली का रक्त भी मिला दिया जाए तो प्रभाव में वृद्धि होगी। यह तिलक लगाने वाला सबका प्यारा होता है। सामने वाले को आकर्षित करता है।

* काली हल्दी, रोली, तुलसी की मंजरी को समरूप आंवले के रस में पीस कर जिसके भी सम्मुख जायेंगे वो स्वतः आपके अनुरूप कार्य करेगा।

* काली हल्दी, श्वेतार्क मूल, श्वेत चन्दन, गोरोचन, पान और हरसिंगार की जड़ पीस कर एक चाँदी की डिब्बी में लेप बनाकर रख लें। जिसे वश में करना हो उसके सम्मुख आने से पूर्व इसका तिलक धारण कर लें। इस प्रकार कि तिलक लगाने के बाद आपको सर्व प्रथम देखे।