शारदीय नवरात्रि 2025
शारदीय नवरात्रि 2025 शुभ मुहूर्त

नवरात्रि, जिसका शाब्दिक अर्थ ‘नौ रातें’ है, हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह शक्ति की देवी, दुर्गा, को समर्पित है, जो ब्रह्मांड की सृजन, पालन और संहारक शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं। यह पर्व मुख्य रूप से वर्ष में दो बार मनाया जाता है: चैत्र नवरात्रि, जो वसंत ऋतु में आती है, और शारदीय नवरात्रि, जो शरद ऋतु के आगमन का प्रतीक है। शारदीय नवरात्रि का विशेष महत्व है क्योंकि यह माँ दुर्गा की महिषासुर पर विजय की कथा से जुड़ा है, और इसका समापन दसवें दिन विजयादशमी के रूप में होता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। यह नौ दिन साधकों के लिए गहन आध्यात्मिक अभ्यास, व्रत और देवी के नौ रूपों की पूजा का समय होता है।

शारदीय नवरात्रि शुभ मुहूर्त

●वर्ष 2025 में शारदीय नवरात्रि का पावन पर्व सोमवार, 22 सितंबर से शुरू हो रहा है । इस वर्ष यह पर्व नौ की बजाय दस दिनों का होगा । यह एक अत्यंत शुभ लक्षण है, क्योंकि एक तिथि का बढ़ना अत्यधिक फलदायी माना जाता है। इस बार चतुर्थी तिथि 25 और 26 सितंबर दोनों दिन रहेगी, जिससे पर्व की अवधि में वृद्धि होगी ।

●पंचांग के अनुसार, घटस्थापना (कलश स्थापना) का मुहूर्त प्रतिपदा तिथि 22 सितंबर को देर रात 1:26 बजे से शुरू होकर 23 सितंबर को रात 2:57 बजे तक रहेगी । कलश स्थापना के लिए दो अत्यंत शुभ मुहूर्त हैं:

●प्रातः काल का मुहूर्त: सुबह 6:15 बजे से सुबह 7:46 बजे तक ।

●अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 11:55 बजे से 12:43 बजे तक ।

पर्व का समापन 2 अक्टूबर को विजयादशमी के साथ होगा, जिस दिन रावण दहन की परंपरा होती है ।

🔴देवी के वाहन का महत्व

●देवी का आगमन और प्रस्थान सप्ताह के उस दिन के अनुसार होता है, जिस दिन नवरात्रि का प्रारंभ होता है । चूँकि इस साल शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ सोमवार, 22 सितंबर को हो रहा है, माँ दुर्गा का आगमन गज (हाथी) पर होगा । हाथी पर सवार होकर आना एक अत्यंत शुभ लक्षण माना जाता है । यह पूरे वर्ष सुख-समृद्धि और सौभाग्य का संचार करने का प्रतीक है । इसके विपरीत, प्रस्थान का वाहन मनुष्य है, जो एक अलग प्रतीकात्मक अर्थ रखता है ।

🔴 नवरात्रि की उत्पत्ति

●नवरात्रि का पौराणिक आधार महाशक्ति दुर्गा की महासुर महिषासुर पर विजय की कहानी से जुड़ा है । पौराणिक कथा के अनुसार, महिषासुर नामक एक अत्यंत शक्तिशाली दानव था, जिसका जन्म एक ऋषिवर और एक भैंस के मिलन से हुआ था । अपनी कठोर तपस्या से उसने ब्रह्मा से यह वरदान प्राप्त कर लिया था कि उसे कोई भी देवता या पुरुष नहीं मार पाएगा; उसकी मृत्यु केवल एक स्त्री के हाथों से ही संभव थी । इस वरदान के अहंकार में चूर होकर, महिषासुर ने तीनों लोकों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। उसने स्वर्ग पर आक्रमण कर देवताओं को पराजित कर दिया, जिसमें भगवान विष्णु और शिव भी शामिल थे ।

अपनी हार से हताश होकर, सभी देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास सहायता के लिए पहुँचे। अपनी सामूहिक ऊर्जाओं को एक साथ मिलाकर, इन देवताओं ने एक नई, सर्वोच्च नारी शक्ति का निर्माण किया, जिसे दुर्गा कहा गया । इस प्रक्रिया में, प्रत्येक देवता ने अपने विशिष्ट हथियार देवी को प्रदान किए। शिव ने अपना त्रिशूल दिया, विष्णु ने अपना चक्र दिया, वरुण ने शंख दिया, और अन्य देवताओं ने भी अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र दिए । हिमवान ने उन्हें सिंह का वाहन भेंट किया । यह प्रतीकात्मक रूप से दर्शाता है कि देवी दुर्गा कोई अलग शक्ति नहीं हैं, बल्कि वे सभी दिव्य शक्तियों का एक एकीकृत और अंतिम रूप हैं ।

इसके बाद, देवी दुर्गा ने अपनी भयंकर गर्जना से महिषासुर के असुरों को युद्ध के लिए चुनौती दी । नौ दिनों तक चले इस भयंकर युद्ध में, महिषासुर ने विभिन्न मायावी रूप धारण कर देवी को छलने का प्रयास किया। कभी वह एक क्रूर शेर बनता, तो कभी एक विशाल हाथी । अंत में, नौवें दिन, देवी ने अपने चक्र से महिषासुर का सिर काट दिया, जिससे धर्म की विजय हुई और ब्रह्मांडीय व्यवस्था पुनः स्थापित हुई ।

🔴नवरात्रि में जिन नौ देवियों की पूजा होती है, वे कोई अलग-अलग देवता नहीं हैं, बल्कि वे एक ही महाशक्ति के नौ अलग-अलग स्वरूप हैं । ये नौ स्वरूप मानव चेतना के विभिन्न आध्यात्मिक चरणों और गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो हमें अज्ञानता से मुक्ति की ओर ले जाते हैं।

●शैलपुत्री (पहला दिन): हिमालय की पुत्री, ये देवी किसी भी अनुभव के शिखर पर स्थित दिव्यता का प्रतीक हैं। वे जीवन में स्थिरता और समृद्धि लाती हैं ।

●ब्रह्मचारिणी (दूसरा दिन): यह स्वरूप गहन तपस्या और शुद्ध, अछूती ऊर्जा का प्रतीक है। उनकी पूजा से साधक को स्वतः ही सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं ।

●चंद्रघंटा (तीसरा दिन): यह रूप मन को मोहित करने वाली सुंदरता का प्रतीक है। ये सभी प्राणियों में मौजूद सौंदर्य का स्रोत हैं ।

●कूष्माण्डा (चौथा दिन): इन्हें प्राण ऊर्जा का पुंज माना जाता है, जो सूक्ष्मतम जगत से लेकर विशालतम ब्रह्मांड तक फैली हुई है। ये निराकार होकर भी सभी रूपों को जन्म देती हैं ।

●स्कंदमाता (पांचवां दिन): ये संपूर्ण ब्रह्मांड की संरक्षिका और सभी ज्ञान प्रणालियों की जननी हैं ।

●कात्यायनी (छठा दिन): चेतना के द्रष्टा पहलू से निकलने वाली ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो सहज ज्ञान की शक्ति लाती हैं। इन्हें मन की शक्ति भी कहा गया है, और रुक्मिणी ने भगवान कृष्ण को पति के रूप में पाने के लिए इनकी आराधना की थी ।

●कालरात्रि (सातवां दिन): ये गहन, अंधकारमय ऊर्जा का प्रतीक हैं, जो अनंत ब्रह्मांडों को धारण करती हैं। ये हर आत्मा को सांत्वना और शांति प्रदान करती हैं

●महागौरी (आठवां दिन): यह सुंदरता, कृपा और शक्ति का प्रतीक है, जो परम स्वतंत्रता और मुक्ति की ओर ले जाती है। उनकी पूजा से सभी पापों से मुक्ति मिलती है ।

●सिद्धिदात्री (नौवां दिन): ये अंतिम स्वरूप हैं, जो असंभव को संभव बनाती हैं और भक्तों को उनके प्रयासों का फल प्रदान करती हैं। उनकी आराधना से जीवन में चमत्कार प्रकट होते हैं ।

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शारदीय नवरात्रि 2025
शारदीय नवरात्रि 2025 बहुत ही भाग्यशाली रहेगा।

श्रीमददेवी भागवत महापुराण के अनुसार, देवी का आगमन और प्रस्थान नवरात्रि आरंभ और समापन होने के दिन के हिसाब से होता है। इस बार नवरात्रि का आरंभ 22 सितंबर सोमवार से हो रहा है और नवरात्रि का समापन विजयदशमी 2 अक्टूबर को होगा।

शशिसूर्ये गजारूढ़ा , शनिभौमे तुरंगमे ।
गुरुशुक्रे च दोलायां बुधे नौका प्रकीर्तिता ।।
फलम् – गजे च जलदा देवी , छत्रभङ्ग तुरंगमे ।
नौकायां सर्व सिद्धिस्यात् दोलायां मरणं धुव्रम् ।।

श्रीमददेवी भागवत महापुराण के इस श्लोक के अनुसार, जब रविवार और सोमवार के दिन माता का आगमन होता है तो माता का वाहन हाथी होता है। यानी इस बार 22 सितंबर को मां दुर्गा का आगमन हाथी से हो रहा है। जब माता हाथी से आती है तो इसे बेहद ही शुभ माना जाता है। माता के हाथी पर आगमन पर उस वर्ष वर्षा अच्छी होती है। कृषी में वृद्धि होती है दूध का उत्पादन बढ़ता है साथ ही देश में धन धान्य की बढ़ोतरी होती है। शनिवार और मंगलवार को माता का आगमन होता है तो वह घोड़ी से आती है ऐसे में सरकार को अपने पद से हटने पड़ सकता है। गुरुवार और शुक्रवार को जब माता का आगमन होता है तो वह खटोला पर होता है। ऐसे में प्रज्ञा में लड़ाई झगड़ा और किसी बड़ी दुर्घटना होने का संकेत मिलता है। बुधवार को जब माता का आगमन होता है तो देवी नौका पर आती है। ऐसा होने पर मां अपने भक्तों को हर प्रकार की सुख सुविधाएं देती हैं।

देवी का प्रस्थान और वाहन
शारदीय नवरात्रि का समापन विजयदशमी के दिन 2 अक्तूबर को होगा।
शशिसूर्यदिने यदि सा विजया, महिषा गमनेरूज शोककरा,
शनिभौमे यदि सा विजया चरणायुधयानकरी विकला ,
बुधशुक्रे यदि सा विजया गजवाहनगा शुभवृष्टिकरा ,
सुरराजगुरौ यदि सा विजया नरवाहनगा शुभसौख्यकरा ।।

श्रीमददेवी भागवत महापुराण के अनुसार, विजयदशमी जब रविवार और सोमवार की होती है तो मां दुर्गा का प्रस्थान भैंसे पर होता है। जो व्यक्ति को शोक देता है। जब विजयदशमी मंगलवार और शनिवार को होती है तो माता का वाहन मूर्गा होता है। ऐसे में लोगों को तबाही का सामना करना पड़ता है। वहीं,बुधवार और शुक्रवार को विजदशमी हो तो माता हाथी पर जाती है। हाथी पर माता का जाना शुभ माना जाता है। वहीं, गुरुवार को विजयदशमी हो तो मााता का वाहन मनुष्य की सवारी होती है। इस बार 2 अक्तूबर 2025 गुरुवार के दिन विजयदशमी है ऐसे में माता के प्रस्थान का वाहन मनुष्य की सवारी होगा। ऐसे में लोगों को सुख शांति का आनुभव होगा। समय बहुत ही भाग्यशाली रहेगा।

श्री शासनोदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र,हनुमानताल
जबलपुर नगर के जिनालयो की वंदना

1) श्री शासनोदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र,हनुमानताल
2) श्री पार्श्वनाथ दिग.जैन नन्हें मंदिर,हनुमानताल
3) श्री पार्श्वनाथ दिग.जैन बरियाबाला मंदिर,हनुमानताल
4) श्री महावीर स्वामी दिग.जैन ड्योढिया मंदिर,हनुमानताल
5) श्री आदिनाथ दिग.जैन चौधरी मंदिर,हनुमानताल
6) श्री नेमिनाथ दिग.जैन मंदिर,पुरानी बाजाजी सराफा
7) श्री पार्श्वनाथ दिग.जैन जुगल मंदिर,बाजाजी सराफा
8) श्री त्रिमूर्ति पार्श्वनाथ दिग.जैन मंदिर,जुड़ी तलेया
9) श्री पार्श्वनाथ दिग.जैन स्वर्ण मंदिर,लार्डगंज
10) श्री आदिनाथ दिग.जैन बोर्डिंग मंदिर,गोल बाजार
11) श्री महावीर स्वामी दिग.जैन मंदिर वीतराग विज्ञान मंडल,गोल बाजार
12) श्री पार्श्वनाथ दिग.जैन मंदिर,नेपियर टाउन
13) श्री पार्श्वनाथ दिग.जैन मंदिर, नर्मदा तट ग्वारीघाट
14) श्री चन्द्रप्रभु जिनालय,मदन महल
15) श्री आदिनाथ दिग.जैन मंदिर,आमनपुर मदन महल
16) श्री पार्श्वनाथ दिग.जैन मंदिर,शक्ति नगर मदन महल
17) श्री पिसनहारी मढ़िया तीर्थ क्षेत्र, मेडिकल
18) श्री शांतिनाथ दिग.जैन मंदिर,बाजना मठ
19) श्री चंद्रप्रभु दिग.जैन मंदिर,शास्त्री नगर
20) श्री आदिनाथ जिनालय दयोदय तीर्थ,तिलवाराघाट
21) श्री शांतिनाथ दिग.जैन पयोदय तीर्थ क्षेत्र,भेड़ाघाट
22) श्री दिग.जैन गणेशप्रसाद ज़ी वर्णी गुरुकुल,मढ़िया ज़ी मेडिकल
23) श्री आदिनाथ दिग.जैन मंदिर,पुरवा गढ़ा
24) श्री पार्श्वनाथ दिग.जैन छोटा मंदिर,गढ़ा बाजार
25) श्री पार्श्वनाथ दिग.जैन बड़ा मंदिर,गढ़ा बाजार
26) श्री मुनिसुब्रतनाथ जिनालय,गंगानगर
27) श्री पार्श्वनाथ दिग.जैन मंदिर,संजीवनी नगर
28) श्री महावीर स्वामी दिग.जैन मंदिर,संजीवनी नगर
29) श्री पार्श्वनाथ दिग.जैन मंदिर,अग्रवाल कॉलोनी
30) श्री चंद्रप्रभु दिग.जैन मंदिर,संगम कॉलोनी
31) श्री आदिनाथ दिग.जैन मंदिर,कचनार सिटी विजय नगर
32) श्री पार्श्वनाथ दिग.जैन मंदिर,कंचन विहार विजय नगर
33) श्री दिग.जैन मंदिर,वीतराग विज्ञान मंडल,ग्रीनबेली स्कूल पाटन बाईपास
34) श्री शांतिनाथ दिग.जैन मंदिर,नक्षत्र नगर
35) अमृत तीर्थ,कटंगी बाईपास रोड
36) श्री महावीर स्वामी दिग.जैन मंदिर,मदर टेरेसा
37) श्री पार्श्वनाथ दिग.जैन मंदिर,ग्रीन सिटी
38) श्री पार्श्वनाथ दिग.जैन मंदिर,शिवनगर
39) श्री पार्श्वनाथ दिग.जैन मंदिर,त्रिमूर्ति नगर
40) श्री शांतिनाथ दिग.जैन मंदिर,शांतिनगर दमोह नाका
41) श्री आदिनाथ दिग.जैन ड्योडिया मंदिर,मिलोनीगंज
42) श्री पार्श्वनाथ दिग.जैन मंदिर,आधारताल
43) श्री पार्श्वनाथ दिग.जैन मंदिर,सुभाष नगर
44) श्री पार्श्वनाथ दिग.जैन मंदिर,रांझी बस्ती
45) श्री आदिनाथ दिग.जैन मंदिर,मेन रोड रांझी
46) श्री शांतिनाथ दिग.जैन मंदिर,मेन रोड रांझी

अक्षय तृतीया एक अत्यंत शुभ और पुण्यदायी तिथि है

अक्षय तृतीया एक अत्यंत शुभ और पुण्यदायी तिथि है, जिसे हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। इसे ‘अक्ती’ और ‘अक्खा तीज’ के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन इतना पवित्र माना जाता है कि किसी भी शुभ कार्य के लिए मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं होती — इसे अबूझ मुहूर्त कहा जाता है।

👉 वर्ष 2025 में अक्षय तृतीया तिथि प्रारम्भ 29 अप्रैल को शाम 5.32 बजे से होगी और 30 अप्रैल को दोपहर 2.13 बजे तक तृतीया तिथि रहेगी। उदया तिथि में अक्षय तृतीया 30 अप्रैल 2025 को मनाई जाएगी। ( स्थान के अनुसार समय में थोड़ा परिवर्तन सम्भव है, सही समय के लिए अपने लोकल पंचांग को देखें)

अक्षय तृतीया का शाब्दिक अर्थ:
“अक्षय” = जिसका कभी क्षय न हो (जो कभी समाप्त न हो)

“तृतीया” = तीसरा दिन (शुक्ल पक्ष की तीसरी तिथि)

 इस दिन किया गया दान, तप, जप, हवन, विवाह, गृहप्रवेश, आदि कार्य अक्षय फल देने वाले माने जाते हैं।

🔰 अक्षय तृतीया का ज्योतिषीय महत्व :

1. सूर्य और चंद्र का उच्च स्थिति में होना :
अक्षय तृतीया एकमात्र तिथि है जब सूर्य मेष राशि में (उच्च का) और चंद्रमा वृष राशि में (उच्च का) होता है।

यह दिन सौर और चंद्र ऊर्जा दोनों के सामंजस्य का प्रतीक होता है। ज्योतिष में, जब सूर्य और चंद्र दोनों उच्च राशि में हों, तो यह अत्यंत शुभ और ऊर्जा-सम्पन्न संयोग होता है।

2. कार्य आरंभ का श्रेष्ठ समय :
इस दिन नए व्यापार की शुरुआत, संपत्ति खरीदना, विवाह, निवेश आदि के लिए मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं होती — यह अपने आप में सर्वोत्तम मुहूर्त है।

3. कुंडली के अनुसार ग्रहों के दोष निवारण का अवसर :
यह दिन ज्योतिषीय उपायों जैसे रत्न धारण, दान, जप, पितृ तर्पण, ग्रह शांति आदि के लिए बहुत उपयुक्त होता है।

विशेष रूप से जिनकी कुंडली में मंगल, शुक्र, शनि या राहु-केतु दोष होते हैं, उनके लिए यह दिन उपाय करने हेतु उत्तम होता है।

4. धन व समृद्धि का कारक :
इस दिन सोना खरीदना अत्यंत शुभ माना जाता है। यह लक्ष्मी के स्थायित्व का प्रतीक है।

कुबेर और लक्ष्मी पूजन कर वित्तीय स्थायित्व और आर्थिक वृद्धि का संकल्प लिया जाता है।

पौराणिक महत्व :

🔶️ इसी दिन भगवान परशुराम का जन्म हुआ था।

🔶️ महाभारत में, युधिष्ठिर को श्रीकृष्ण ने इसी दिन अक्षय पात्र प्रदान किया था।

🔶️ त्रेता युग का प्रारंभ भी इसी दिन हुआ था।

🔶️इस दिन जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर 1008 आदिनाथ भगवन को प्रथम बार 6 माह की प्रतीक्षा उपरांत आहार प्राप्त हुआ था

चैत्र नवरात्र 2025

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चैत्र नवरात्र की तिथि, पूजन, शुभ मुहूर्त एवं पूजा विधि

चैत्र नवरात्रि 2025 तिथि पूजन शुभ मुहूर्त‼️
उदयातिथि के अनुसार, चैत्र नवरात्र रविवार, 30 मार्च रविवार 2025 से ही शुरू होने जा रहा है।

कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त‼️
चैत्र नवरात्रि के लिए कलश स्थापना के दो विशेष मुहूर्त निर्धारित किए गए हैं-

पहला मुहूर्त_ प्रतिपदा के एक तिहाई समय में कलश स्थापना करना अत्यंत शुभ माना जाता है, जो 30 मार्च 2025 को सुबह 06,14 से 10,21 बजे तक है।

दूसरा मुहूर्त_ अभिजीत मुहूर्त, 30 मार्च 2025 को दोपहर 12,02 से 12,50 बजे तक है, जब कलश स्थापित किया जा सकता है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, घटस्थापना का सर्वोत्तम समय प्रातःकाल होता है, जिसे चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दौरान किया जाता है। यदि इस समय चित्रा नक्षत्र और वैधृति योग उपस्थित हो, तो घटस्थापना को टालने की सलाह दी जाती है।

घटस्थापना का महत्व‼️
कलश स्थापना केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह देवताओं की कृपा प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण साधन भी है।

कलश के मुख पर- भगवान विष्णु
गले में- भगवान शिव
नीचे के भाग में- भगवान ब्रह्मा
मध्य में- मातृशक्ति (दुर्गा देवी की कृपा)
इसलिए, घटस्थापना का सही समय और विधि अपनाकर देवी की कृपा प्राप्त की जा सकती है।

घटस्थापना की सही विधि‼️
साफ-सफाई करें: जिस स्थान पर घटस्थापना करनी है, वहां गंगाजल का छिड़काव करें और उसे पवित्र करें।

मिट्टी का पात्र लें: इसमें जौ बोएं, जो समृद्धि का प्रतीक माने जाते हैं।

कलश की स्थापना करें: मिट्टी के घड़े में जल भरें, उसमें गंगाजल, सुपारी, अक्षत (चावल), दूर्वा, और पंचपल्लव डालें।

नारियल रखें: कलश के ऊपर लाल या पीले वस्त्र में लिपटा हुआ नारियल रखें।

मां दुर्गा का आह्वान करें: मंत्रों का जाप करें और कलश पर रोली और अक्षत अर्पित करें।

नवरात्रि के दौरान दीप जलाएं: घटस्थापना के साथ अखंड ज्योति प्रज्वलित करें, ताकि घर में सुख और शांति बनी रहे।

घटस्थापना के लाभ‼️
घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।
देवी दुर्गा की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होते हैं।
मनोकामनाएं पूरी होने का विश्वास है।
घर में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है।
इस शुभ महोत्सव में ही कलश की स्थापना कर अच्छा रहेगा। दुर्गा जी के नौ भक्तों में सबसे पहले शैलपुत्री की आराधना की जाती है।

चैत्र नवरात्रि 2025 के कार्यक्रम‼️
चैत्र नवरात्रि 2025 का 09 दिनों का पूजा कैलेंडर के अनुसार नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती है।

प्रत्येक दिन एक देवी का पूजन किया जाता है, और हर देवी के स्वरूप में अलग-अलग प्रकार की शक्ति और आशीर्वाद समाहित होते हैं।

इस बार नवरात्रि 08 दिन की होगी लेकिन ज्वारे विसर्जन नवम दिन 07 अप्रैल को ही होगा।

तिथि दिनांक वार देवी पूजा
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प्रतिपदा_ 30 मार्च, रविवार, मां शैलपुत्री।
द्वितीया_ 31 मार्च, सोमवार, मां ब्रह्मचारिणी।
तृतीया_ 01 अप्रैल, मंगलवार, मां चंद्रघंटा।
चतुर्थी,पंचमी_ 02 अप्रैल, बुधवार, मां कूष्मांडा- स्कंदमाता।
षष्ठी__ 03 अप्रैल, गुरुवार, मां कात्यायनी।
सप्तमी_ 04 अप्रैल, शुक्रवार, मां कालरात्रि।
अष्टमी_ 05 अप्रैल, शनिवार, मां महागौरी।
नवमी_ 06अप्रैल, रविवार, मां सिद्धिदात्री।

 

 

ज्योतिष Sushil Modi जबलपुर

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ग्रहों से संबंधित वस्तुएँ भाग 2
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मंगल नेक-मंगल सूर्य का मित्र है। जब इसे सूर्य का साथ मिले तो मंगल नेक बन जाता है। स्वभाव से मंगल लड़ाकू है तथा यह खून करने और कराने का कारक है। मंगल में बदला लेने की भावना अधिक है। यदि उसे कोई नुकसान पहुँचाए तो वह उसी के बारे में सोचता रहता है। दूसरी तरफ हमेशा सच्चाई का साथ देता है और सोच-समझकर बात करता है।
यह लड़ाकू स्वभाव का है फिर भी किसी से नाइंसाफी नहीं करता।

मंगल नेक हमेशा बहुत हौसला रखता है। यह भाई का कारक भी है। जन्म कुंडली देखकर भाइयों के बारे में पता चलता है। मंगल का रंग लाल है परन्तु ऐसा लाल जिसमें चमक नहीं। इसलिए बिना चमक वाला मूँगा इसका पत्थर है। मंगल नेक हो तो बिना चमकं वाला पत्थर पहनना इसका उपाय है।

हमारे शरीर के अंगों में यह जिगर का कारक है। जिगर की सभी बीमारियाँ मंगल बद के कारण होती हैं।

पोशाक में इसका कारक बास्केट या जैकेट है जो हमें सर्दी में गर्मी तथा सुख देती है। साथ में हमारी सुन्दरता बढ़ाती है।

वृक्षों में नीम मंगल नेक का कारक है जो बहुत सारी बीमारियों से मनुष्य की रक्षा करता है तथा कीटाणुओं को नष्ट करता है। यह मंगलमय भी माना जाता है क्योंकि भारतीय संस्कृति में बच्चे के पैदा होने पर नीम के पत्तों की वंदनवार घर के मुख्य द्वार पर बाँधी जाती है।

मंगल बद उसे कहते हैं जब उसके साथ केतु-शनि बुध या राहु बैठा हो। केतु के साथ मंगल शेर तथा कुत्ता कहा जाता है यानी शेर और केतु के समान. फल देता है। कुंडली में यदि सूर्य शनि एक साथ हों तो मंगल बद या अशुभ हो जाता है। इसी तरह मंगल के साथ बुध होने से भी मंगल का फल अच्छा नहीं रहता। राहु तथा मंगल का फल भी बद है क्योंकि राहु मंगल से दबा रहता है। परन्तु यदि राहु की दृष्टि मंगल पर पड़े तो मंगल का फल खराब हो जाता है जिसके कारण पेट या खून की खराबियों से जिस्म के दाएँ हिस्से पर सख्त तकलीफ हो सकती है।

मंगल अगर पहले घर में बैठा हो तो यह किस्मत को जगा देता है और यदि इसके साथ सूर्य और चन्द्र के उपाय के साथ इसका फल और भी अच्छा हो जाता है। लेकिन पापी ग्रह जैसे राहु केतु या अशुभ शनि से मंगल का फल बहुत अशुभ हो जाता है। पहले घर के मंगल को मैदाने

जंग का शूरवीर कहा है और इंसाफ की तलवार भी कहकर पुकारा है। बुध-बुध व्यापारी है। अपने ग्राहकों को सामान बेचते समय -जी-कुजूरी तथा नर्मी से बात करता है इसकी जुबान में मिठास है। यह बर्तन बनाने वाले ठठियार के समान है तथा जरूरत के समय जैसा चाहे बर्तन बना देता है तथा बातों में लगाकर सभी को प्रसन्न कर सकता है।

यह जुबान का मालिक है और जुबान से काम लेता है और किसी को भी जुबान के चक्र में डालकर अपना काम निकलवा लेता है। यह नसीहत देने में बहुत माहिर है। हर चीज के बारे में अपनी राय रखता है। कभी-कभी इसकी नसीहत पुरुष को गलत रास्ते पर भी ले जाती है। यह बहुत जल्दी सबको मित्र बनाता है।

बुध जिसका अच्छे स्थान पर है वह जातक जुबान का मीठा, दिमाग से तेज होगा।

पोशाक में यह पेट के नीचे के वस्त्रों का कारक है। जैसे तडागी पेटी और नाड़ा।

पशुओं की जाति में यह बकरा-बकरी, भेड़ तथा चमगादड़ के समान है। फलों में यह केले का वृक्ष है, जिसके पत्ते चौड़े हों।

शनि-शनि एक अक्खड़ तरखान की तरह है। यह मेहनती मजदूर भी है तथा कठिन से कठिन कार्य भी कर सकता है। यह एक हथियार की तरह लोहे के सख्त से सख्त कार्य भी कर सकता है। परन्तु इसे अपने काम में हस्तक्षेप पसन्द नहीं है।

यह हर कार्य पूर्णतया होशियारी और चालाकी से करता है। कोई ग्रह इससे मेल नहीं खाता। इसको नमस्कार भी करना हो तो पीठ पीछे हाथ बाँधकर जाता है। इसकी दृष्टि बहुत ही पैनी है जो किसी को पता भी नहीं चलता है और यह सब देखता रहता है। यहाँ तक कि इसमें जादू-मंत्र देखने-दिखाने की शक्ति भी है।

पोशाक में यह हमारे जुराब और जूते हैं जिसके बगैर मनुष्य चलने की सोच भी नहीं सकता ।

पशुओं में यह भैंस या भैंसे का कारक है। अगर घर में कोई बाधा हो तो भैंसे को घर के अन्दर लाकर सारे घर में चक्कर लगवाना चाहिए। इस तरह जिन्न-भूत डरकर घर से भागते हैं।
शनि मौत का भी कारक है। पेड़ों में यह कीकर, आक, खजूर का पेड़ है जो यात्री को छाया नहीं देता। दूसरे शब्दों में यह फिजूल में किसी का मददगार नहीं होता।

राहु-राहु जाति से भंगी और शूद्र है। राहु का सम्बन्ध गन्दगी से है। परन्तु गन्दगी के साथ-साथ यह सफाई भी करता है। भंगी या शूद्र का मतलब यह नहीं कि यह इतना सीधा-सादा है कि इसकी बुद्धि भी शूद्र के समान होगी। अगर ध्यान से सोचें तो राहु बहुत चालाक ग्रह है पर यह काम शूद्रों जैसा करता है और यह मक्कारी के साथ मनुष्य को उल्टे चक्र में डाल देता है। इसके बारे में अन्दाजा लगाना बहुत कठिन है कि यह आगे कौन-सी चाल चलेगा। यह एक गुप्त खोजी की तरह काम करता है और यह बिजली की तरह तेजी से कार्य कर जाता है और मनुष्य में डर तथा शत्रुता जल्दी से पैदा कर देता है।

शक्ति को यह अचानक ही परेशान कर देता है जिससे मनुष्य की बुद्धि अचानक काम कर देना बन्द कर देती है। परन्तु इसके साथ ही यह रास्ता भी दिखाने वाला है।

धातुओं में नीलम सिक्का तथा गोमेद का कारक है। जब कभी राहु गलत स्थान पर बैठ जाए तो नीलम धारण करना शुभ रहेगा। परन्तु उसके साथ ही राहु के बद होने पर इसका उपाय सिक्का बहाना है और गोमेद भी इसी की कारक धातु है।

शरीर के अंगों में यह सारे शरीर के बिना सिर्फ सिर का यानि दिमाग का कारक है। कई बार राहु के साथ यदि चन्द्रमा की युति हो जाए तो मनुष्य का दिमाग पागल भी हो जाता है। यह शरीर के अंगों में ठोड़ी का हिस्सा भी है जो मुख की सुन्दरता बनाती है।

पोशाक में यह हमारा पाजामा या पतलून है जो मनुष्य की शर्म को ढकता है। नंगा व्यक्ति तो किसी के सामने आने पर पागल ही कहलाएगा। पशुओं में यह हाथी के समान ताकतवर है जो भारी से भारी कठिन कार्य करता है तथा कठिन राहों पर चलकर बोझा उठाता है। साथ में यह काँटेदार जंगली चूहा है।
पेड़ों में यह नारियल का पेड़ तथा घास काटने वाला कुत्ता। केतु-केतु अपनी मनमर्जी के कार्य करता है इसके लिए संसार के

बन्धनों की कोई शर्त नहीं। यह राहु की तरह चालाक नहीं। यह पेशे से कुली के सामान भारी कार्य करता है तथा भार उठाने वाला मजदूर है। इसकी सुनने की शक्ति बहुत तेज है जो पाँव की आहट से ही किसी के आने-जाने की आवाज भाँप लेता है।

केतु में किसी प्रकार की शर्म नहीं कि कोई अनजान व्यक्ति है या जानकार। यह सभी से बातचीत करने में नियम है। यह दो रंगा पत्थर है जिसे हम वैदूरय कहते हैं।

शरीर के अंगों में यह सिर के बगैर शरीर है जिसमें दिमाग की कमी • है। परन्तु यह कान, रीढ़ की हड्डी, घुटने पेशाब करने की जगह तथा शरीर के जोड़ हैं। जब यह अशुभ है तो शरीर के इन्हीं अंगों में तकलीफ – पैदा करता है, जैसे रीढ़ की हड्डी में दर्द होना, जोड़ों का दर्द, पेशाब की बीमारी आदि ।

पोशाक में यह पटका-कंबल और ओढ़नी है।

पशुओं में यह कुत्ता, गधा, सुअर, नर या मादा दोनों, छिपकली, पौधों में इमली का पेड़, तिल के पौधे तथा केला फल।

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ग्रहों से संबंधित वस्तुएँ
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बृहस्पति-…पेशे में वह सुनार का कार्य करे तो सफलता, पूजा-पाठ उसके लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा। अन्दर से वह पंडित स्वरूप पेशवा होगा पढ़ा-लिखा ज्ञानी दूसरों को ज्ञान बाँटने का परि सोना बृहस्पति की वस्तुएँ हैं इसलिए सोने के काम करने वाला सुनार भी बृहस्पति है।

यह हवा और सांस का कारक है। इसी से हमारा जीवन चलता है और गुरु और सुख का कारक भी बृहस्पति है। शक्ति के लिहाज से बृहस्पति में सांस लेने और दिलाने की शक्ति है। दूसरे शब्दों में यह हमारे जीवन की सांस आने और जाने की कला का हाकिम है।

हमारे शरीर के अंगों में से गर्दन बृहस्पति का सबसे बड़ा कारक है। जब तक गर्दन कायम है तो मनुष्य जीवित है। गर्दन झुक जाती है तो आदमी की मौत की निशानी है तथा जीते जी शर्मिन्दा होने का कारण है।

इसी प्रकार माथे और नाक के अगले हिस्से से भी बृहस्पति का सम्बन्ध है। बृहस्पति मन्दा होने की निशानी यह होगी कि इन हिस्सों में तकलीफ हो सकती है या बीमारी हो सकती है।

हमारी पोशाक में से बृहस्पति पगड़ी या टोपी का कारक है। दूसरे शब्दों में पगड़ी ही सिर को ढकती है और इज्जत बनाए रखती है। सिर से पगड़ी उतर जाए तो यह शर्मिन्दगी की निशानी है। पशुओं में से बबर शेर या शेरनी का कारक बृहस्पति है। दूसरे शब्दों में यह सबसे बहादुर ग्रह है। वृक्षों में यह पीपल का पेड़ है इसलिए इसे खुश करने के लिए पीपल के पेड़ की पूजा जरूरी समझा गया है।

सूरज-…..सूर्य अपनी जाति के अनुसार क्षत्रिय है जो लड़ने-मरने को हमेशा
तैयार रहता है और अपनी बहादुरी के लिए हमारे ग्रन्थों में जाना जाता है।

सूर्य में आग बहुत है इसलिए यह हमारे सभी अंगों को कंट्रोल करता है। मनुष्य के अन्दर की गर्मी ही मनुष्य को जीवित रखती है। कहने में आता है कि मनुष्य में अब कुछ नहीं रहा, यह तो ठंडा पड़ गया है। यह हमारी बुद्धि का भी कारक है तथा विद्या देने वाला है।

सूर्य से ही सारे संसार को रोशनी मिलती है। दूसरे शब्दों में सूर्य से ही हमारे सारे कार्य चलते हैं। यह संसार वाहक है। इसी से सारे संसार का भोजन पैदा होता है तथा खाना पकता है।

सूर्य की धातुएँ माणिक ताँबा तथा शिलाजीत हैं जो मनुष्य को हर प्रकार की ताकत प्रदान करती है। हमारे शरीर का दायाँ भाग भी सूर्य है। सूर्य सेहरा या कलगी का कारक है, बड़े आदमी या हाकम की निशानी है। जीत के तौर पर ही कलगी लगाई जाती है।

सूर्य कपिला गाय का कारक है जो संसार को वार देती है। इसलिए उपाय के तौर पर कपिला गाय को उसकी कारक वस्तु देते हैं तथा उसकी पूजा करते हैं। वृक्ष में यह तेज फल का वृक्ष है जो हमारे शरीर में गर्मी पैदा करता है तथा कई प्रकार की बीमारियों से छुटकारा देता है।

चन्द्र-….चन्द्रमा मन का कारक है जिससे मन में शान्ति या उथल-पुथल बनी रहती है। चन्द्रमा के कारण जातक में सुख-शान्ति बनी रहती है। यह शान्त स्वभाव का भी कारक है। यह माँ की ममता, दुलार, सुख, माता-पिता तथा अपने बुजुर्गों की सेवा की शक्ति प्रदान करने वाला है।

चन्द्रमा के कारण दयालुता-दूसरों का भला करने वाला तथा दूसरों पर दया करने वाला भोला व्यक्ति जिसमें ज्यादा फेरबदल या चालाकी न हो और जल्द ही मान जाने वाला हठी या जिद्दी न हो अर्थात यह मन का या दिल का कारक है जो दिल से ज्यादा काम लेता है।

चन्द्रमा की धातुएँ चाँदी, मोती तथा दूध का रंग यानि दूध रंग है। वह हमारे शरीर का बायाँ भाग है। हमारी पोशाक में चन्द्रमा धोती परना का कारक है।

चन्द्र घोड़ा घोड़ी का कारक है जिसमें बहुत सहनशक्ति होती है
तथा साथ में ताकत भी होती है। यह मनुष्य को कठिन रास्तों से पार ले जाता है तथा कठिनाइयों में भी संतुलन बनाए रखता है। वृक्षों में यह पोस्त का हरा पौधा है जिससे दूध निकलता है। इसमें नशा होता है। यह ऐसा नशा है जिसे भूलकर आदमी मस्ती में आ जाता है। चन्द्र का देवता शिवजी है जो पोस्त पीए रखते हैं तथा हमेशा मस्ती में खुश रहते हैं।

शुक्र-….शुक्र प्यार, लगन, दिल की शान्ति, ऐशपसन्दगी का कारक है। यह जीवन के हुनर को जानता है। दूसरे शब्दों में यह ऐसा कुम्हार है जो अपनी इच्छा के अनुसार हर प्रकार के घड़े बनाता है जो हमेशा भरे रहते हैं और जरूरत के मुताबिक काम आते हैं। इस प्रकार यह हुनर के तौर पर चीजों की सर्जना करता है। इसीलिए यह खेतीबाड़ी दर्शाता है और सुन्दरता से भरी वैश्या की तरह है जो तरह-तरह के नाच दिखाती है और दूसरों के मन को खुश करती है। इससे काम-वासना भी उत्पन्न होती है।

शुक्र मिट्टी का भी कारक है और मिट्टी से कई प्रकार की उत्पत्ति होती है। मिट्टी के खेलों से खेलते हुए यह गृहस्थ आश्रम के उसूलों का पालन करता है। शरीर में यह गाल का कारक है जो चेहरे की सुन्दरता को बढ़ाता है।

शुक्र पशुओं में बैल या गाय का कारक है। बैल खेती में हमारी मदद करता है तथा गाय दूध देकर हमारे शरीर को शक्ति प्रदान करती है, अन्त समय में गाय की पूँछ पकड़कर व्यक्ति बैतरणी नदी को पार कर जाता है। ऐसा हमारे ग्रन्थों का कहना है। यह पौधों में कपास का पौधा जो सफेद खिला होता है तथा हर तरफ अपनी मुस्कुराहट फैलाता है तथा इसी पौधे के कपड़े बनते हैं जो हमारे शरीर को ढकते हैं और हमें गर्मी-सर्दी से बचाते हैं

पितृ दोष
पितृ दोष : पितरों के दिन आने वाले हैं

सामान्यत: व्यक्ति का जीवन सुख-दुखों से मिलकर बना है.

पूरे जीवन में एक बार को सुख व्यक्ति का साथ छोड़ भी दे लेकिन दु:ख किसी न किसी रुप में उसके साथ बना ही रहता है।

अब फिर वे चाहे संतानहीनता, नौकरी में असफलता, धन हानि, उन्नति न होना, पारिवारिक कलेश आदि के रुप में भी हो सकते हैं।

सूर्य -राहु से बनता है पित्र दोष और ग्रहण दोष ।

जब कुंडली में राहु और सूर्य की युति होती है तो पितृ दोष का निर्माण होता है.

पितृ दोष सभी तरह के दुखों को एक साथ देने की क्षमता रखता है.

इसलिए हिंदू धर्म में सबसे पहले देव पूजा या घर में कोई भी शुभ कार्य होता है तो सबसे पहले पितरों का नाम लिया जाता है पितरों की पूजा होती है उसके बाद में कोई भी शुभ कार्य होते हैं।

देव पूजन से पूर्व पितरों की पूजा करनी चाहिए क्योकि देव कार्यों से अधिक पितृ कार्यों को महत्व दिया गया है।

इसलिए देवों को प्रसन्न करने से पहले पितरों को तृप्त करना चाहिए.

पितर कार्यों के लिए सबसे उतम पितृ पक्ष अर्थात अश्विन मास का कृष्ण पक्ष समझा जाता है।

कैसे होता है कुंडली में पित्र दोष या पित्र ऋण।

कुंडली के नवम भाव को भाग्य भाव कहा गया है. इसके साथ ही यह भाव पित्र या पितृ या पिता का भाव तथा पूर्वजों का भाव होने के कारण भी विशेष रुप से महत्वपूर्ण हो जाता है.

कुंडली के अनुसार पूर्व जन्म के पापों के कारण पितृ दोष बनता है.

इसके अलावा इस योग के बनने के अनेक अन्य कारण भी हो सकते हैं.इसके साथ साथ ग्रहण योग भी बनता है।

ज्योतिष के अनुसार सूर्य और राहु एक साथ जिस भाव में भी बैठ​ते हैं, उस भाव के सभी फल नष्ट हो जाते हैं.

नवम भाव में और पंचम भाव में सूर्य और राहु की युति से पितृ दोष का निर्माण होता है.

नवम भाव पिता का भाव है और सूर्य को पिता का कारक माना जाता है. साथ ही उन्नति, आयु, धर्म का भी कारक माना जाता है.

इस कारण जब पिता के भाव पर राहु जैसे पापी ग्रह की छाया पड़ती है तो पितृ दोष लगता है

. पितृ दोष कुंडली में मौजूद ऐसा दोष है जो व्यक्ति को एक साथ तमाम दुख देने की क्षमता रखता है.

पितृ दोष लगने पर व्यक्ति के जीवन में समस्याओं का अंबार लगा रहता है.

ऐसे लोगों को कदम कदम पर दुर्भाग्य का सामना करना पड़ता है.

परिवार आर्थिक संकट से जूझता रहता है, व्यक्ति को उसकी मेहनत का पूरा फल प्राप्त नहीं होता है,

इस कारण तरक्की बाधित होती है. संतान सुख आसानी से प्राप्त नहीं होता. इस कारण जीवन लगातार उतार चढ़ावों से जूझता रहता है।

पितृ दोष की वजह समझने से पहले ये जानना जरूरी है

कि पितर होते कौन हैं।

दरअसल पितर हमारे पूर्वज होते हैं जो अब हमारे मध्य में नहीं हैं.

लेकिन मोहवश या असमय मृत्यु को प्राप्त होने के कारण आज भी मृत्युलोक में भटक रहे हैं.

इस भटकाव के कारण उन्हें काफी परेशानी झेलनी पड़ती है और वो पितृ योनि से मुक्त होना चाहते हैं।

लेकिन जब वंशज पितरों की तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक विधि विधान से श्राद्ध कर्म नहीं करते हैं,

धर्म कार्यो में पितरों को याद न करते हैं, धर्मयुक्त आचरण नहीं करते हैं और किसी निरअपराध की हत्या करते हैं,

ऐसी स्थिति में पूर्वजों को महसूस होता है कि उनके वंशज उन्हें पूरी तरह से भुला चुके हैं.

इन हालातों में ही पितृ दोष उत्पन्न होता है और ये कुंडली के नवम भाव में राहु और सूर्य की युति के साथ प्र​दर्शित होता है।

पितृदोष हमेशा तीसरी पीढ़ी पर लगता है जब हमारे पूर्वज पितरों की शांति नहीं करते तो यह हमारी संतान पर तीसरी पीढ़ी पर आकर लग जाता है और आगे फिर संतान वृद्धि में परेशानियां होने लगती है।

जिन लोगों की कुंडली में पित्र दोष है वह लोग पित्र दोष के उपाय कर सकते हैं

पितरों को खुश करना सबसे आसान काम है क्योंकि यह आपको प्रत्यक्ष देखने को मिलता है।

पित्र खुश तो सब देव खुश

क्योंकि हम पितरों की ही संतान है उन्हीं के डीएनए से हम हैं और वह हमें ज्यादा दिन परेशान नहीं करते बस थोड़ा सा उनकी तिथि पर उनको याद किया जाए

जैसे हम खुद के लिए सारी चीजें करते हैं वैसे ही पितरों के लिए किया जाए जीवन बहुत सुख मई हो जाता है और पित्र हमें हमेशा आशीर्वाद देते हैं ।

अगर आपके घर में किसी की कुंडली में भी पितृ दोष बना हुआ है तो उसका निवारण जरूर करवाएं