अक्षय तृतीया एक अत्यंत शुभ और पुण्यदायी तिथि है
अक्षय तृतीया एक अत्यंत शुभ और पुण्यदायी तिथि है, जिसे हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। इसे ‘अक्ती’ और ‘अक्खा तीज’ के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन इतना पवित्र माना जाता है कि किसी भी शुभ कार्य के लिए मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं होती — इसे अबूझ मुहूर्त कहा जाता है।
👉 वर्ष 2025 में अक्षय तृतीया तिथि प्रारम्भ 29 अप्रैल को शाम 5.32 बजे से होगी और 30 अप्रैल को दोपहर 2.13 बजे तक तृतीया तिथि रहेगी। उदया तिथि में अक्षय तृतीया 30 अप्रैल 2025 को मनाई जाएगी। ( स्थान के अनुसार समय में थोड़ा परिवर्तन सम्भव है, सही समय के लिए अपने लोकल पंचांग को देखें)
अक्षय तृतीया का शाब्दिक अर्थ:
“अक्षय” = जिसका कभी क्षय न हो (जो कभी समाप्त न हो)
“तृतीया” = तीसरा दिन (शुक्ल पक्ष की तीसरी तिथि)
इस दिन किया गया दान, तप, जप, हवन, विवाह, गृहप्रवेश, आदि कार्य अक्षय फल देने वाले माने जाते हैं।
🔰 अक्षय तृतीया का ज्योतिषीय महत्व :
1. सूर्य और चंद्र का उच्च स्थिति में होना :
अक्षय तृतीया एकमात्र तिथि है जब सूर्य मेष राशि में (उच्च का) और चंद्रमा वृष राशि में (उच्च का) होता है।
यह दिन सौर और चंद्र ऊर्जा दोनों के सामंजस्य का प्रतीक होता है। ज्योतिष में, जब सूर्य और चंद्र दोनों उच्च राशि में हों, तो यह अत्यंत शुभ और ऊर्जा-सम्पन्न संयोग होता है।
2. कार्य आरंभ का श्रेष्ठ समय :
इस दिन नए व्यापार की शुरुआत, संपत्ति खरीदना, विवाह, निवेश आदि के लिए मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं होती — यह अपने आप में सर्वोत्तम मुहूर्त है।
3. कुंडली के अनुसार ग्रहों के दोष निवारण का अवसर :
यह दिन ज्योतिषीय उपायों जैसे रत्न धारण, दान, जप, पितृ तर्पण, ग्रह शांति आदि के लिए बहुत उपयुक्त होता है।
विशेष रूप से जिनकी कुंडली में मंगल, शुक्र, शनि या राहु-केतु दोष होते हैं, उनके लिए यह दिन उपाय करने हेतु उत्तम होता है।
4. धन व समृद्धि का कारक :
इस दिन सोना खरीदना अत्यंत शुभ माना जाता है। यह लक्ष्मी के स्थायित्व का प्रतीक है।
कुबेर और लक्ष्मी पूजन कर वित्तीय स्थायित्व और आर्थिक वृद्धि का संकल्प लिया जाता है।
पौराणिक महत्व :
🔶️ इसी दिन भगवान परशुराम का जन्म हुआ था।
🔶️ महाभारत में, युधिष्ठिर को श्रीकृष्ण ने इसी दिन अक्षय पात्र प्रदान किया था।
🔶️ त्रेता युग का प्रारंभ भी इसी दिन हुआ था।
🔶️इस दिन जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर 1008 आदिनाथ भगवन को प्रथम बार 6 माह की प्रतीक्षा उपरांत आहार प्राप्त हुआ था