गुरू चाण्डाल योग कब फायदेमंद हो जाता है
गुरू चाण्डाल योग

गुरू चाण्डाल योग का एकदम उल्टा तब देखने को मिलता है जब गुरू और राहु एक दूसरे से सप्तम भाव में हो और गुरू के साथ केतु स्थित हों।
बृहस्पति के प्रभावों को पराकाष्ठा तक पहुँचाने में केतु सर्वश्रेष्ठ हैं। केतु त्याग चाहते हैं, कदाचित बाद में वृत्तियों का त्याग भी देखने को मिलता है। केतु भोग-विलासिता से दूर बुद्धि विलास या मानसिक विलासिता के पक्षधर हैं और गुरू को, गुरू से युति के कारण अपने जीवन में श्रेष्ठ गुरू या श्रेष्ठ शिष्य पाने के अधिकार दिलाते हैं।

इनको जीवन में श्रेय भी मिलता है और गुरू या शिष्य उनको आगे बढ़ाने के लिए अपना योगदान देते हैं। इस योग का नामकरण कोई बहुत अच्छे ढंग से नहीं हुआ है परन्तु गुरू चाण्डाल योग को ठीक उलट कोई सुन्दर सा नाम अवश्य दिया जाना चाहिये। गुरु-राहु की युति या इनका दृष्टि संबंध इंसान के विवेक को नष्ट कर देता है। यही कारण रावण के सर्वनाश का रहा।
यदि राहु बहुत शक्तिशाली नहीं हुए परन्तु गुरू से युति है तो इससे कुछ हीन स्थिति नजर में आती है। इसमें अधीनस्थ अपने अधिकारी का मान नहीं करते। गुरू-शिष्य में विवाद मिलते हैं।शोध सामग्री की चोरी या उसके प्रयोग के उदाहरण मिलते हैं, धोखा-फरेब यहां खूब देखने को मिलेगा परन्तु राहु और गुरू युति में यदि गुरू बलवान हुए तो गुरू अत्यधिक समर्थ सिद्ध होते हैं और शिष्यों को मार्गदर्शन देकर उनसे बहुत बडे़ कार्य या शोध करवाने में समर्थ हो जाते हैं। शिष्य भी यदि कोई ऎसा अनुसंधान करते हैं जिनके अन्तर्गत गुरू के द्वारा दिये गये सिद्धान्तों में ही शोधन सम्भव हो जाए तो वे गुरू की आज्ञा लेते हैं या गुरू के आशीर्वाद से ऎसा करते हैं।

यह सर्वश्रेष्ठ स्थिति है और मेरा मानना है कि ऎसी स्थिति में उसे गुरू चाण्डाल योग नहीं कहा जाना चाहिए बल्कि किसी अन्य योग का नाम दिया जा सकता है परन्तु उस सीमा रेखा को पहचानना बहुत कठिन कार्य है जब गुरू चाण्डाल योग में राहु का प्रभाव कम हो जाता है और गुरू का प्रभाव बढ़ने लगता है। राहु अत्यन्त शक्तिशाली हैं और इनका नैसर्गिक बल सर्वाधिक है तथा बहुत कम प्रतिशत में गुरू का प्रभाव राहु के प्रभाव को कम कर पाता है। इस योग का सर्वाधिक असर उन मामलों में देखा जा सकता है जब दो अन्य भावों में बैठे हुए राहु और गुरू एक दूसरे पर प्रभाव डालते हैं।


गुरु-राहु की य‍ुति को चांडाल योग के नाम से जाना जाता है। सामान्यत: यह योग अच्छा नहीं माना जाता। जिस भाव में फलीभूत होता है, उस भाव के शुभ फलों की कमी करता है। यदि मूल जन्म कुंडली में गुरु लग्न, पंचम, सप्तम, नवम या दशम भाव का स्वामी होकर चांडाल योग बनाता हो तो ऐसे व्यक्तियों को जीवन में बहुत संघर्ष करना पड़ता है। जीवन में कई बार गलत निर्णयों से नुकसान उठाना पड़ता है। पद-प्रतिष्ठा को भी धक्का लगने की आशंका रहती है।

वास्तव में गुरु ज्ञान का ग्रह है, बुद्धि का दाता है। जब यह नीच का हो जाता है तो ज्ञान में कमी लाता है। बुद्धि को क्षीण बना देता है। राहु छाया ग्रह है जो भ्रम, संदेह, शक, चालबाजी का कारक है। नीच का गुरु अपनी शुभता को खो देता है। उस पर राहु की युति इसे और भी निर्बल बनाती है। राहु मकर राशि में मित्र का ही माना जाता है (शनिवत राहु) अत: यह बुद्धि भ्रष्ट करता है। निरंतर भ्रम-संदेह की स्थिति बनाए रखता है तथा गलत निर्णयों की ओर अग्रसर करता है।


जन्म पत्रिका के एक ही भाव में जब गुरु राहु स्थित हो तो चाण्डाल योग निर्मित होता है। ऐसे योग वाला जातक उदण्ड प्र$कृति का होता है। राहु यदि बलिष्ठ हो तो जातक अपने गुरुका अपमान करने वाला होता है। वह गुरु के कार्य को अपना बना कर बताता है। गुरु की संपत्ति हड़पने में भी उसे परहेज नही होता। वहीं यदि गुरु ग्रह राहु सेे ज्यादा बलिष्ठ हो तो वह शिष्य अपने गुरु के सानिध्य में तो रहता परंतु अपने गुरु के ज्ञान को ग्रहण नहीं कर पाता। गुरु भी अपने शिष्य को अच्छे से प्रशिक्षित नहीं कर पाता।चाण्डाल योग वाला जातक अपने से बड़ों का अपमान करने वाला, उनकी बातों को टालने वाला, वाचाल होता है।

गुरु चांडाल योग कब काम नहीं करता?
अगर व्यक्ति का बृहस्पति उच्च राशि में हो तो गुरु चांडाल योग काम नहीं करता है.

यदि मूल कुंडली या गोचर कुंडली इस योग के प्रभाव में हो तो निम्न उपाय कारगर सिद्ध हो सकते हैं-
क्या करें उपाय चाण्डाल योग निर्मुलन के लिए :-

अशुभता का नियंत्रण- —गुरु चांडाल योग के जातक के जीवन पर जो भी दुष्प्रभाव पड़ रहा हो उसे नियंत्रित करने के लिए जातक को भगवान शिव की आराधना और गुरु-राहु से संबंधित वस्तुओं का दान करना चाहिए।.

दीवार पर कहाँ टाँगे घड़ी
दीवार पर कहाँ टाँगे घड़ी

वास्तु टिप्स – दीवार पर कहाँ टाँगे घड़ी

घड़ी खरीदते लमय ध्यान रखें कि यह गोल, अंडाकार, अष्टभुजाकार या फिर षट्भुजाकार हो। यह आपके लिए पॉज़िटिव एनर्जी और खुशियों को लेकर आता है।

क). यदि आप दक्षिण दिवार पर घड़ी टांगते है, तो आपका चन्द्रमा गुरु और शुक्र ग्रह बलहीन हो जाता है जिससे

  1. आपका मन हमेशा अशांत रहेगा और मन में हमेशा नेगेटिव सोच आएगी।
  2. घर में पूजा या धार्मिक कार्य में मन नहीं लगेगा और घर में हर सदस्य हमेशा का आपस में मतभेद होता रहेगा।
  3. किसी को भी अपने कार्य में सफलता नहीं मिलेगी।

ख). यदि आप घड़ी पश्चिम दिवार पर टांगते है, तो आपका शुक्र सूर्य बुध बलहीन हो जाते है, जिससे

  1. घर में रहने वाली महिलाये अक्सर बीमार रहती है और पति पत्नी में भी अच्छी नहीं बन पाती है।
  2. अकसर काम में उच्च अधिकारियो के विवाद होता है या उनको प्रसन्न करने में हम असफल रहते है ।
  3. घर में बच्चो का दिमाग पढ़ाई पर नहीं लग पाता है और न ही वो ठीक से बर्ताव करते है।

ग). यदि आप घडी पूर्व दिशा पर टांगते है, तो आपने मंगल गुरु और शनि ग्रह बलवान हो जाते है, जिससे

1.काम में बहुत तरक्की होती है धन बढ़ता है ।
2.बच्चो की शिक्षा बहुत अच्छी होती है घर में शांति और खुशहाली का वातावरण रहता है ।

घ). यदि आप घर में उत्तर दिशा की और घडी टांगते है तो आपके सूर्य राहु शनि बलवान होते है, जिससे

1.स्वास्थय अच्छा रहता है
2.जीवन में जल्दी ही तरक्की मिलती है और पारिवारिक सुख भी अच्छा होता है और धन भी अच्छा होता है।

कुछ जगह पर घड़ी बिलकुल नहीं टांगना चाहिए

  1. यदि आप टी.वी. के उपर घड़ी टांगते है तो आप आलसी ही जायेंगे और आपका मन किसी से बात करने का नहीं करेगा और काम को कभी भी समय पर नहीं कर पायेंगे।
  2. यदि आप फ्रिज के ऊपर घड़ी टांगते है तो आपकी आर्थिक स्थिति बहुत धीरे धीरे होगी और लोग अक्सर आपको धोखा देंगे।
  3. यदि आप दरवाजे के ऊपर या सामने घडी टांगते है तो घर में एकता की कमी रहती है ।
  4. दरवाजे के ऊपर न लगाएं घड़ी वास्‍तु के मुताबिक यह स्थिति घर में रहने वाले और आने-जाने वाले लोगों के जीवन में तनाव बढ़ाती है। कहा जाता है कि दरवाजे पर लगी घड़ी से आर्थिक नुकसान बढ़ता है।

उपाय :

1.यदि आपको काम में तरक्की और घर में बरकत देखना है तो घर में उत्तर की तरफ चकोर घडी लगाए।
2.यदि हर काम में विजय प्राप्त करनी हो तो उत्तर की तरफ षठकोणीय घडी लगाये।

घड़ी के लिए इन बातों का भी रखें ख्‍याल

कभी भी बंद घड़ी का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इनकी बैटरी तुरंत ही सही करवा देनी चाहिए। यद‍ि संभव न हो तो बदल देना चाहिए। क्‍योंकि यह धन का प्रवाह रोक देती है। इसी तरह घड़ी के रंग का भी ख्‍याल रखें। कभी भी नीले, काले और नारंगी रंग की घड़ी नहीं लगानी चाहिए। इनसे निकलने वाली ऊर्जा नुकसान पहुंचाती है। बेड के स‍िरहाने घड़ी न रखें। इससे स‍िरदर्द की समस्‍या लगी रहती है।

इस धनतेरस पर यह चीज लेकर आएं घर में, चमक जाएगी किस्मत, धन बरसेगा जमकर
धनतेरस

धनतेरस 2022: 23 अक्टूबर 2022 रविवार के दिन धनतेरस का पर्व मनाया जाएगा। धनतेरस पर कई लोग सोना, चांदी और बर्तन के साथ ही वाहन आदि खरीदते हैं। धनतेरस पर भगवान धन्वंतरि की पूजा होती है। धन्वंतरि को आयुर्वेद का जन्मदाता और ज्ञाता माना गया है। इस दिन उनकी पूजा करने से जातक रोगमुक्त होता है। इस दिन बहुत ही सस्ती मात्र कुछ चीजें खरीदने से रोग और शोक मिटकर जातक सुख और समृद्धि प्राप्त करता है। आओ जानते हैं कि वे कौनसी चीजें हैं जिनमें से एक आप खरीद सकते हैं।

धनतेरस पर क्या खरीदना शुभ होता है


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1. कमलगट्टा का बीज :- कमल के फल को कमलगट्टा कहते हैं। इसके अंदर से जो बीज निकलते हैं उनकी माला बनती हैं। आप चाहे तो माल खरीद सकते हैं लेकिन इनके बीज मिले तो उसे खरीदकर माता धन्वंतरि देव और माता लक्ष्मी को अर्पित करें। माता लक्ष्मी को कमल का फूल, फल और बीज बहुत ही पसंद हैं।

2. औषधी :- इस दिन औषधी जरूर खरीदना चाहिए। औषधियां हमें निरोगी बनाए रखती हैं। मान्यता के अनुसार कालाबच, घौडबच, कायस्थ, हेमवती, शंकर जटा और सर्व औषधी जैसी कुछ ऐसी औषधियां हैं जिन्हें खरीदकर घर में रखने से रोग दूर भागते हैं।

3. गोमती चक्र और कोड़ियां :- इस दिन बच्चों की सुरक्षा के लिए गोमदी चक्र और धन समृद्धि बढ़ाने के लिए कोड़ियां जरूर खरीदें।

4. झाड़ू :- इस दिन झाडू खरीदना बहुत ही शुभ माना जाता है। इसे वर्षभर के लिए घर से नकारात्मक ऊर्जा बाहर निकल जाती है।

5. धनिया :- इस दिन जहां ग्रामीण क्षेत्रों में धनिए के नए बीज खरीदते हैं वहीं शहरी क्षेत्र में पूजा के लिए साबुत धनिया खरीदते हैं। इसे खरीदकर माता लक्ष्मी को अर्पित करते हैं। धनतेरस पर इसे खरीदना बहुत ही शुभ होता है।

जैन दीपावली 2022 विशेष एवं पूजन मुहूर्त Jain Diwali

Jain Diwali 2022 Muhurt

इस वर्ष सन् 2022 को वैदिक मतानुसार दीपावली और लक्ष्मी पूजन 24 नवम्बर 2022 की शाम या रात्रि में मनाई जाएगी क्योंकि वैदिक मतानुसार दीपावली पर्व मनाने के लिए शाम या रात्रि में अमावस्या तिथि का होना आवश्यक है जो कि 24 नवम्बर 2022 को ही मिलेगी, 25 नवम्बर 2022 को अमावस्या तिथि उदय काल में ही है अपरान्ह या शाम को अमावस्या नहीं है।
किन्तु दिगम्बर जैन धर्म के ग्रन्थों के अनुसार भगवान महावीर का निर्वाण कल्याणक महोत्सव मनाने या निर्वाण लाड़ू चढ़ाने के लिए सूर्योदय के समय अमावस्या तिथि का होना आवश्यक है जो कि 25 नवम्बर 2022 को ही होगी और इसीलिए भगवान महावीर के निर्वाण कल्याणक का लाड़ू 25 नवम्बर 2022 को चढ़ाया जाएगा और
जैनधर्म के अनुसार दीपावली भगवान महावीर के निर्वाण कल्याणक के पश्चात् उसी दिन शाम को गौतम गणधर के केवलज्ञान प्राप्ति के उपलक्ष्य में मनाई जाती है इसलिए जैनधर्म अनुयायियों की दीपावली भी 25 नवम्बर 2022 की शाम को ही मनाई जानी चाहिए।