नजर एक एैसी चीज है जिसे लगती है वह इंसान सफल होते-होते रह जाता है। बनते-बनते काम बिगड़ जाते हैं। भले ही आज के समय में यह बात अंधविश्वास लगती हो लेकिन नजर दोष को नकारा नहीं जा सकता है। नजर लगने से इंसान का किसी काम में मन नहीं लगता है। सेहत खराब हो जाती है और भी कई तरह से इंसान दिक्कतों का सामना करता है। अक्सर छोटे बच्चों को सबसे पहले नजर लगती है।
बच्चों की नजर उतारने के उपाय—
पुराने समय से नजर उतारने के कई तरह के उपायों को अपनाया जाता रहा है। कई बार छोटे बच्चे बे-वजह रोते रहते हैं। और वे शांत नहीं हो पाते हैं ऐसे में अक्सर आप घर के किसी बुजुर्ग इंसान से सुनते होगें कि बच्चे को किसी की नजर लग गई है।
पहला उपाय:- नजर उतारने के लिए पीली सरसों, लाल मिर्च सूखी हुई, अजवाइन को किसी बर्तन में जलाएं और उससे निकलने वाले धुएं को बच्चे को हल्के हाथों से दें। यह उपाय करने से नजर तुरंत उतर जाती है।
दूसरा उपाय:- प्याज के सूखे हुए छिलके, सूखी मिर्च, राई, नमक और लहसुन को अंगारे में डालकर उस आग को नजर लगे हुए इंसान के सिर के उपर से सात बार घुमाने से बुरी से बुरी नजर उतर जाती है।
तीसरा उपाय:- नजर उतारने का तीसरा उपाय है शनिवार वाले दिन हनुमान मंदिर में जाएं और हनुमान चालीसा का एक पाठ करें। और हनुमान जी के कंधे पर से सिंदूर को नजर लगे हुए इंसान के माथे पर लगाएं।
चौथा उपाय:- नजर लगने से इंसान बुरी तरह से परेशान हो जाता है। ऐसे में गुलाब की सात पंखुडियों को पान के पत्ते में डालकर नजर लगे इंसान को खिलाएं। यह उपाय बुरी नजर के प्रभाव को खत्म कर देता है।
पांचवा उपाय:- पीली सरसो, नमक, राई, सिर का बाल, प्याज छिलका, लाल मिर्च यह सब बस्तुएं बच्चों के सिर से उतारकर जला देने से भी नजर उतर जाती है।
छठवा उपाय:- नजर का मंत्र सिध्द करके भी नजर उतारने से नजर उतर जाती है।
Basant Panchami 2023 हिंदू पंचांग के अनुसार, माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को वसंत पचंमी का पर्व मनाया जाता है। मुख्य रूप से ये पर्व ज्ञान, विद्या, संगीत और कला की देवी मां सरस्वती को समर्पित है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को वसंत पंचमी का पर्व मनाया जाता है। मुख्य रूप से ये पर्व ज्ञान, विद्या, संगीत और कला की देवी मां सरस्वती को समर्पित है। शास्त्रों के अनुसार, इसी दिन मां सरस्वती का जन्म हुआ था। वसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती हाथों में पुस्तक, विणा और माला लिए श्वेत कमल पर विराजमान हो कर प्रकट हुई थीं। इसलिए इस दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है। वसंत पंचमी से बसंत ऋतु की शुरुआत होती है। सनातन धर्म में मां सरस्वती की उपासना का विशेष महत्व है, क्योंकि ये ज्ञान की देवी हैं। मान्यता है कि वसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा करने से मां लक्ष्मी और देवी काली का भी आशीर्वाद मिलता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ऋषि वाल्मीकि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, शौनक तथा व्यास जैसे महान ऋषि भी देवी सरस्वती की साधना से कृतार्थ हुए थे।
इतना ही नहीं कवि कालिदास ने भी विद्या और बुद्धि की देवी माता सरस्वती की कृपा से ही यश और ख्याति प्राप्त की थी। विद्यार्थियों को भी यदि विद्या, बुद्धि, वाणी और ज्ञान की प्राप्ति करना हैं तो वसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की आराधना और उपाय करना चाहिए जिससे उन्हें माता सरस्वती की विशेष कृपा प्राप्त हो।
प्राचीन काल में वसंत पंचमी दिन से ही बालकों को शिक्षा देना प्रारंभ किया जाता था और यह परंपरा आज भी जीवित है। मान्यतानुसार इस दिन से शिक्षा प्रारंभ करने से बालक अपार सफलता और विद्या प्राप्त करता है।
वसंत पंचमी तिथि पंचांग के अनुसार, माघ शुक्ल पंचमी 25 जनवरी 2023 की दोपहर 12 बजकर 34 मिनट से होगी और 26 जनवरी 2023 को सुबह 10 बजकर 28 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार इस साल वसंत पंचमी 26 जनवरी 2023 को मनाई जाएगी।
इस वसंत पंचमी पर विद्यार्थी/छात्र के लिए करने योग्य सरल उपाय
1. देवी मां सरस्वती की कृपा पाने के लिए वसंत पंचमी पर प्रात:काल उठते ही हथेलियों के मध्य भाग के दर्शन करें।
2. वाक् सिद्धि के लिए वसंत पंचमी पर अपनी जिह्वा को तालु में लगाकर सरस्वती के बीज मंत्र ‘ऐं’ का जाप करना लाभदायक है।
3. बच्चों की कुशाग्र बुद्धि के लिए उन्हें इस दिन से ब्राह्मी, मेघावटी, शंखपुष्पी देना आरंभ करें।
4. वसंत पंचमी के दिन विद्यार्थियों को अपनी कठिन पाठ्यपुस्तकों में मोर पंख रखने चाहिए।
5. जिनकी वाणी में हकलाना, तुतलाना जैसे दोष हों, वे इस दिन बांसुरी के छेद से शहद भरकर तथा मोम से बंद कर जमीन में गाड़ें। ऐसा करने से लाभ मिलेगा।
वसंत पंचमी पूजा
वसंत पंचमी वाले दिन सुबह स्नान आदि से निवृत होकर साफ पीले या सफेद रंग का वस्त्र पहनें। उसके बाद सरस्वती पूजा का संकल्प लें।
पूजा स्थान पर मां सरस्वती की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। मां सरस्वती को गंगाजल से स्नान कराएं। फिर उन्हें पीले वस्त्र पहनाएं।
इसके बाद पीले फूल, अक्षत, सफेद चंदन या पीले रंग की रोली, पीला गुलाल, धूप, दीप, गंध आदि अर्पित करें। सरस्वती माता को गेंदे के फूल की माला पहनाएं।
माता को पीले रंग की मिठाई का भोग लगाएं। इसके बाद सरस्वती वंदना एवं मंत्र से मां सरस्वती की पूजा करें। आप चाहें तो पूजा के समय सरस्वती कवच का पाठ भी कर सकते हैं।
आखिर में हवन कुंड बनाकर हवन सामग्री तैयार कर लें और ‘ओम श्री सरस्वत्यै नमः: स्वहा” मंत्र की एक माला का जाप करते हुए हवन करें। फिर अंत में खड़े होकर मां सरस्वती की आरती करें।
जैनागम के अनुसार मकर संक्रांति के दिवस चक्रवर्ती को सूर्य पर स्थित अकृत्रिम जिनालयों के भरत ऐरावत क्षेत्रों से दर्शन होते हैं, जिसके कारण वह प्रसन्नतापूर्वक दान आदि कार्य करता है। मकर संक्रांति भी इन्हीं त्योहारों में से एक है। संक्रांति का अर्थ होता है सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना। इस दिन से सूर्य उत्तरायण होता है। मकर संक्रांति का संबंध ऋतु परिवर्तन और कृषि से है। यह पर्व अपना धार्मिक महत्व भी रखता है। इस दिन उत्तरायण के समय देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन का समय देवताओं की रात्रि होती है, वैदिक काल में उत्तरायण को देवयान तथा दक्षिणायन को पितृ यान कहा गया है। संक्रांति के बाद माघ मास में उत्तरायण में सभी शुभ कार्य किए जाते हैं। इस दिन के बाद हर दिन तिल-तिल बढ़ता है इसलिए इसे तिल संक्रांति भी कहते हैं।
इस दिन सूर्य वर्ष में एक बार मकर राशि में आता है, इस दिन प्रथम जैन तीर्थंकर श्री आदिनाथ भगवान के पुत्र भरत चक्रवर्ती (जिनके नाम पर देश का नाम भारत हुआ) ने सूर्य में स्थित जिनबिम्ब की अपने राजमहल की खिड़की से खड़े होकर पूजा करी । इससे पूर्व स्नान किया तथा पूजा के पश्चात लड्डू का वितरण किया
बहुत ही कम जैनों को इस दिवस की वास्तविकता के बारे में जानकारी है जो कि प्रमाणिकता के साथ जैन दर्शन में उल्लेखित है।
जैन धर्म और मकर संक्रांति
मकर संक्रांति एक लोक पर्व है लेकिन जैन धर्म में इस पर्व का कोई विशेष महत्त्व नहीं है
आइए जानते हैं मकर संक्रांति लोक पर्व क्यों है
मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। इस राशि परिवर्तन के समय को ही मकर संक्रांति कहते हैं। यही एकमात्र पर्व है जिसे समूचे भारत में मनाया जाता है, चाहे इसका नाम प्रत्येक प्रांत में अलग-अलग हो और इसे मनाने के तरीके भी भिन्न हों।
मकर संक्रांति फसल से जुड़ा हुआ त्योहार है जिसे सर्दियां समाप्त होने के साथ मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन सूर्य दक्षिणयान से मुड़कर उत्तर की ओर रुख करता है। ज्योतिष के अनुसार इस दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाता है।
सामान्यत: भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियाँ चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। इसी कारण यह पर्व प्रतिवर्ष १४ जनवरी को ही पड़ता है क्योंकि सूर्य की गति निश्चित रहती है
आइए अब जानते हैं कुछ तथ्य
ज्योतिष के अनुसार मकर संक्रांति से उत्तरायण की शुरुआत मानी जाती है लेकिन पंचांग के अनुसार हर साल उत्तरायण २२ दिसंबर से २१ जून तक होता है एवं दक्षिणायण २२ जून से २१ दिसंबर तक होता है
कुछ जैन श्रावकों की मान्यता यह बन गई है की मकर संक्रांति के दिन भरत क्षेत्र के चक्रवर्ती सूर्य में स्थित जिन बिम्बों के दर्शन करते हैं और इसलिए कुछ जैन श्रावक मकर संक्रांति को जैन धर्म से जोड़ देते हैं लेकिन यह एक मिथ्या धारणा है।
तिलोयपण्णत्ती
अध्याय ७ की गाथा संख्या ४३० से ४३३ तक के विशेष अर्थ में यह स्पष्ट उल्लेख आया है कि जब श्रावण मास में सूर्य की कर्क संक्रांति होती है और सूर्य अपनी अभ्यन्तर वीथी में स्थित होता है तब अयोध्या नगरी के मध्य में अपने महल के ऊपर स्थित भरत आदि चक्रवर्ती निषध पर्वत के ऊपर उदित होते हुए सूर्य बिम्ब को देखते हैं और सूर्य विमान में स्थित जिन बिम्बों के दर्शन करते हैं।
जब सूर्य निषध पर्वत के ऊपर अपनी प्रथम वीथी में होता है तब वह भरत क्षेत्र से ४७२६३ ७/२० योजन दूर होता है और यही चक्षुस्पर्श क्षेत्र का उत्कृष्ट प्रमाण है। चक्रवर्ती के चक्षुओं में इतनी उत्कृष्ट क्षमता होती है और उसी वजह से वो सूर्य में स्थित जिन बिम्बों के दर्शन कर लेते हैं।
इस प्रमाण से ये बात सिद्ध होती है की चक्रवर्ती से जुडी यह घटना श्रावण माह में कर्क संक्रांति के दिन होती है। इस वर्ष यह कर्क संक्रांति १६ जुलाई २०१९ को होगी। इसलिए इस घटना को मकर संक्रांति से जोड़ना मिथ्या है।
मकर संक्रांति की जैन धर्म से जुड़ी कोई अन्य विशेषता ग्रंथों में उल्लेखित नहीं है इसलिए मकर संक्रांति जैन पर्व नहीं है
कुछ जैन भाई मकर संक्रांति को जैन पर्व मानकर और अन्य लोगों के देखा देखी इस दिन पतंग उड़ाते हैं इन पतंगों में लगा हुआ मांजा काँच के पाउडर से तैयार किया जाता है अथवा उससे भी घातक अब चाइनीज़ मांजे बाजार में बिकने लगे हैं। इन मांजों की डोर से प्रति वर्ष अनेक पक्षी घायल हो जाते हैं और मर भी जाते हैं। यहाँ तक की कभी कभी तो इनमें अटक कर इंसानों की भी दुर्घटनाएँ हो जाती है।
इसी वजह से पतंग उड़ा कर पक्षियों आदि की हिंसा करने वाले लोगों को महा पाप लगता है और एक पंचेन्द्रिय जीव की हिंसा का दोष भी लगता है
संकल्प
अहिंसा प्रधान जैन धर्म के सच्चे अनुयायी यह संकल्प करें की मकर संक्रांति के इस लोक पर्व में हम पतंग नहीं उड़ाएंगे और पक्षियों आदि के घात में निमित्त नहीं बनेंगे और इस पर्व में केवल लोक व्यवहार की आवश्यकता के अनुसार ही आचरण करेंगे
भारत (अष्टापद तीर्थ जैन मंदिर गुरुग्राम दिल्ली) में बनने जा रही है विश्व की सबसे ऊँची 151 फुट उत्तंग अष्ट धातु की श्री 1008 भगवान मुनिसुव्रत नाथ स्वामी जी की प्रतिमा,
अष्टापद तीर्थ जैन मंदिर गुरुग्राम राजधानी दिल्ली के समीप बिलासपुर चौक के पास पुराने टोल दिल्ली जयपुर हाइवे के पास है जंहा बनने जा रही है विश्व की सबसे ऊँची 151 फुट उत्तंग अष्ट धातु की श्री 1008 भगवान मुनिसुव्रत नाथ स्वामी जी की प्रतिमा,
देश की पहली 151 फीट ऊंची भगवान मुनिसुव्रत नाथ की अष्ट धातु प्रतिमा का निर्माण हरियाणा के गुरुग्राम में स्थित अष्टापद जैन तीर्थ में होगा। इसके निर्माण के लिए उपयोगी अष्ट धातु को एकत्रित करने के लिए पुण्यार्जाक रथ 11 नवंबर से भोपाल से निकलकर प्रदेश के सभी जैन मंदिरों में भ्रमण कर रहा हैं। जो गुरुवार और शुक्रवार को मनावर में पहुंचा। यह रथ देश के विभिन्न शहरों से लेकर गांव भेजा जाएगा।
इस प्रतिमा का नाम ‘स्टेच्यू ऑफ प्युरिटी’ रखा गया है। प्रतिमा के निर्माण में 35 हजार टन अष्ट धातु का उपयोग होगा, जिसके लिए पुण्यार्जाक रथ हर शहर और गांव में जाकर धातु का कलेक्शन कर रहा है। जिसके माध्यम से अधिकांश जैन समाजजन प्रतिमा के निर्माण में अपने घर में रखे अष्ट धातु को दान कर प्रतिमा निर्माण में सहभागिता प्रदान कर रहे हैं।
इसकी शुरुआत 2018 में श्रवण बेलगोला बाहुबली महा मस्काभिषेक के दौरान दिगंबर जैन समाज के 32 आचार्य, 4 उपाध्याय, 4 सौ मुनि, आर्यिका, ऐलक, छुल्लक, छुल्लिका के पावन सानिध्य में शुरुआत की गई।
रथ के संयोजक अमर जैन ने कहा कि इस प्रतिमा के प्रतिष्ठाचार्य ब्रह्मचारी धर्मचंद शास्त्री दिल्ली के हैं। भारत देश से 10 हजार टन अष्ट धातु इकट्ठा होते ही प्रतिमा की ढलाई का कार्य जाएगी। अभी मप्र में प्रदेश में दो पुण्यार्जाक रथ के माध्यम से करीब 100 गांवों में पहुंच चूका है। अभी तक 15 टन अष्टधातु दान के रूप में प्राप्त हो गई है। रथ के माध्यम से सर्वधर्म समाज के नागरिक भी अपनी इच्छा अनुसार दान कर सकते है।
मंदिर जी में चमत्कारी कलिकुण्ड पार्श्वनाथ का ऐतिहासिक यंत्र बनाया गया है जो मात्र अष्टापद में ही है, भगवन आदिनाथ के समीप में अतिशययुक्त श्री चन्द्रप्रभु भगवन की मूर्ति विराजमान है
वंहा पर विश्व की सबसे ऊँची 151 फुट उत्तंग अष्ट धातु की दिगंबर जैन तीर्थंकर श्री 1008 भगवान मुनिसुव्रत नाथ स्वामी जी की प्रतिमा का निर्माण हो रहा जो विश्व में आदृतिय प्रतिमा होगी
प्रतिमा के चारो और 10000 लोगो के बैठने की समुचित व्यवस्था के लिए एक अतिआधुनिक सज्जाओ से परिपूर्ण दीर्घा का निर्माण प्रस्तावित है
नई सोच, नई उड़ान, एक लक्ष्य, एक काम, एक संकल्प , 151 फिट प्रतिमा निर्माण
मूर्ति की विशेषता
मूर्ति निर्माण में 35 हजार टन धातु लगने की संभावना है। मूर्ति के साथ 181 फुट का परिकर भी बनेगा। मूर्ति की ऊंचाई 151 फुट रहेगी। मूर्ति का निर्माण अति आधुनिक टेक्नोलॉजी से होगा। मूर्ति का निर्माण 10 ताल (10 अलग-अलग भागों) में होगा। इस मूर्ति की नींव 140 फुट की होगी और दस हजार दर्शननार्थ एक जगह बैठ सकेंगे, इसके लिए विशाल स्टेडियम बनेगा।
विश्व में प्रथम शनिग्रहारिष्ट निवारक अद्वितीय विशालकाय भगवान महामुनि मुनिसुव्रत स्वामी की 151 फुट ऊंची भव्य कलाकृति के साथ अष्ट धातु से निर्मित की जाएगी।
प्रतिमा जी की ऊंचाई 151 फिट होगी , जिसमे 25000 टन से अधिक अष्टधातु का प्रयोग होगा प्रतिमा जी का परिकर 180×180 फिट परिकर और पडम का बजन 10000 टन से अधिक होगा प्रतिमा जी में 25000 टन ताम्बा पीतल प्रतिमा जी में 10000 टन एल्युमुनियम , जस्ता , जर्मन सिल्वर , टिन प्रतिमा जी में 250 KG सोना प्रतिमा जी में 3000 KG चाँदी का प्रयोग होगा
आचार्यश्री की एक सलाह से मार्बल किंग बन गए अशोक पाटनी, कभी स्कूटर पर बेचा करते थे माचिस
कहते हैं अगर आप ईमानदारी से मेहनत करो तो ईश्वर भी आपके पास मदद के लिए किसी न किसी को भेज देता है। कुछ ऐसी ही कहानी है मार्बल किंग अशोक पाटनी की। जो अपने करोड़पति बिजनेसमैन होने का श्रेय आचार्यश्री को देते हैं। उनका कहना है कि उन्हीं के आशीर्वाद से आज वह इस मुकाम पर हैं कि लोग उन्हें मार्बल किंग कहते हैं।
सालों पहले स्कूल से माचिस बेचने का कोराबर करने वाले एक बिजनेसमैन आज मार्बल किंग के नाम से पहचाने जाते हैं। आरके मार्बल समूह को राजस्थान में मार्बल किंग के नाम से जाना जाता है। राजस्थान के अजमेर जिले के किशनगढ़ के मार्बल कारोबारी अशोक पाटनी पिछले 12 साल से भव्य मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा कराने का इंतजार कर रहे हैं। अशोक पाटनी की एक ही जिद है, कि उन्हें भव्य मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा आचार्य श्री के ही हाथों से करवाना है। जिसके लिए वह सालों से इंतजार कर रहे हैं।
एक असाधारण व्यक्तित्व है लेकिन बहुत साधारण है, हम बात कर रहे हैं एक ऐसे व्यक्ति की जो अपना जीवन एक साधारण परिवेश में जीते हैं लेकिन वह व्यक्तित्व एक असाधारण व्यक्तित्व का धनी है है जी हां हम बात कर रहे हैं इस देश का गौरव ,जैन समाज का गौरव ,व्यवसाय का गौरव ,धर्म का गौरव ,उदार मना व्यक्तित्व भामाशाह आदरणीय श्री अशोक पाटनी आर के मार्बल। हम देखें तो उनका जीवन सादगी से परिपूर्ण है जिनकी जिनकी अगर वैभव संपदा को देखा जाए तो विशाल नजर आएगा,लेकिन उनका जीवन सादा जीवन उच्च विचार को परिलक्षित करता है।
चित्र सौजन्य : इंडिया टुडे
हाल में भी भारत की प्रतिष्ठित पत्रिका इंडिया टुडे ने नबम्बर 2022 के अपने मुख्य पृष्ठ में भारत के धनी और क़ामयाब लोगो पर लेख “कस्बाई कुबेर” प्रकाशित किया जो भारत के छोटे कस्बो या शहरो से आते है जिसमे श्री अशोक (सुरेश) पाटनी , कमल किशोर शारदा , अलख पांडेय , रजत अग्रवाल और धर्मेंद्र नगर जी का नाम शामिल हो
एक साधारण व्यक्ति की तरह जीवन जीना उनकी महानता को दर्शाता है।
उन्हें किसी प्रकार का कोई मान गुमान नहीं मान सम्मान से परे यह व्यक्तित्व है। आम व्यक्तित्व की तरह भोजन करते हमें दिखाई दे रहे हैं। यह जीवन में एक आम आदमी की तरह की तरह नजर आते हैं।हम देख रहे हैं कितनी सादगी के साथ अपना भोजन ले रहे हैं, लेकिन आज के अगर हम देखें तो लोग अपना वैभव अपनी संपदा का प्रदर्शन करते दिखाई देते हैं। लेकिन यह व्यक्तित्व इन सब से परे होकर कार्य कर रहा है।इनका जीवन दर्शाता है यह सादगी ही जीवन का मार्ग है सादगी के द्वारा ही विशालता की और पहुंचा जाता है। अगर हम कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं है की साधारण मानव ही एक का साधारण मानव बन सकता है।
इसका प्रत्यक्ष उदाहरण श्री अशोक पाटनी के द्वारा परिलक्षित होता है। आपके द्वारा सेवा समर्पण परोपकार जीव दया और किये गए कार्यो का अगर इतिहास लिखा जाए तो एक अध्याय लिखा जा सकता है। यह व्यक्तित्व समाज के लिए राष्ट्र के लिए मानवता के प्रति प्रत्यक्ष उदाहरण प्रस्तुत करता है। सचमुच यह हम सबके गौरब है।
हिंदू संस्कृति में तिलक का बहुत महत्व माना जाता है। कोई धार्मिक कार्य या पूजा-पाठ में सबसे पहले सबको तिलक लगाया जाता है। यही नही जब हम कभी किसी धार्मिक स्थल पर जाते हैं तब भी सर्वप्रथम हमें तिलक लगाया जाता है। दरअसर हिंदू संस्कृति व शास्त्रों में तिलक को मंगल व शुभता का प्रतीक माना जाता है। इसलिए जब भी कोई व्यक्ति शुभ काम के लिए जाता है तो उसके मस्तक पर तिलक लगाकर उसे विदा किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं तिलक आपकी कई मनोरामनाएं भी पूरी करता है। शास्त्रों में तिलक के संबंध में विस्तार से बताया गया है। अलग-अलग पदार्थों के तिलक करने से अलग-अलग कामनाओं की पूर्ति होती है। चंदन, अष्टगंध, कुमकुम, केसर आदि अनेक पदार्थ हैं जिनके तिलक करने से कार्य सिद्ध किए जा सकते हैं। यहां तक कि ग्रहों के दुष्प्रभाव भी विशेष प्रकार के तिलक से दूर किए जा सकते हैं।
तिलक का मुख्य स्थान मस्तक पर दोनों भौ के बीच में होता है, क्योंकि इस स्थान पर सात चक्रों में से एक आज्ञा चक्र होता है। शास्त्रों के अनुसार प्रतिदिन तिलक लगाने से यह चक्र जाग्रत हो जाता है और व्यक्ति को ज्ञान, समय से परे देखने की शक्ति, आकर्षण प्रभाव और उर्जा प्रदान करता है। इस स्थान पर अलग-अलग पदार्थों के तिलक लगाने का अलग-अलग महत्व है। इनमें सबसे अधिक चमत्कारी और तेज प्रभाव दिखाने वाला पदार्थ केसर है। केसर का तिलक करने से कई कामनाओं की पूर्ति की जा सकती है।
दांपत्य में कलह खत्म करने के लिए 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ जिन लोगों का दांपत्य जीवन कलहपूर्ण हो उन्हें केसर मिश्रित दूध से शिव का अभिषेक करना चाहिए। साथ ही अपने मस्तक, गले और नाभि पर केसर कर तिलक करें। यदि लगातार तीन महीने तक यह प्रयोग किया जाए तो दांपत्य जीवन प्रेम से भर जाता है।
मांगलिक दोष दूर करने के लिए 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ जिस किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में मांगलीक दोष होता है ऐसे व्यक्ति को दोष दूर करने के लिए हनुमानजी को लाल चंदन और केसर मिश्रित तिलक लगाना चाहिए। इससे काफी फायदा मिलता है।
सफलता और आरोग्य प्राप्त करने के लिए 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ जो व्यक्ति अपने जीवन में सफलता, आकर्षक व्यक्तित्व, सौंदर्य, धन, संपदा, आयु, आरोग्य प्राप्त करना चाहता है उसे प्रतिदिन अपने माथे पर केसर का तिलक करना चाहिए। केसर का तिलक शिव, विष्णु, गणेश और लक्ष्मी को प्रसन्न करता है। शिव से साहस, शांति, लंबी आयु और आरोग्यता मिलती है। गणेश से ज्ञान, लक्ष्मी से धन, वैभव, आकर्षण और विष्णु से भौतिक पदार्थों की प्राप्ति होती है।
आकर्षक प्रभाव पाने के लिए 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ केसर में जबर्दस्त आकर्षण प्रभाव होता है। प्रतिदिन केसर का तिलक लगाने से व्यक्ति में आकर्षण प्रभाव पैदा होता है और प्रत्येक व्यक्ति को सम्मोहित करने की शक्ति प्राप्त कर लेता है।
केसर के तिलक होने वाले अन्य लाभ 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ 1 जिन स्त्रियों को शुक्र से संबंधित समस्या है, जैसे पति से अनबन, परिवार में लड़ाई झगड़े, मान-सम्मान की कमी हो वे किसी महिला या कन्या को मेकअप किट के साथ केसर दान करें।
2घर में आर्थिक तंगी बनी रहती है। पैसे की बचत नहीं होती है तो नवरात्रि या किसी भी शुभ दिन सात सफेद कौडि़यों को केसर से रंगकर उन्हें लाल कपड़े में बांधें और श्रीसूक्त के सात बार पाठ करें। अब इस पोटली को अपनी तिजोरी में रखें। जल्द ही धनागम होने लगेगा।
3अपने व्यापार या कामकाज से जुड़े दस्तावेज जैसे बही-खातों, तिजोरी आदि जगह केसर की स्याही का छिड़काव करने से व्यापार खूब फलता है।
4 मां लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए एक सफेद कपड़े को केसर की स्याही से रंगें। अब इस कपड़े को अपनी तिजोरी या दुकान आदि के गल्ले में बिछाएं और पैसा इसी कपड़े पर रखें। यह स्थान पवित्र बना रहे इसका खास ध्यान रखें। ऐसा करने से लक्ष्मी प्रसन्न होती है और पैसे की आवक अच्छी होती है।
5 चतुर्दशी और अमावस्या के दिन घर की दक्षिण-पश्चिम दिशा यानी नैऋत्य कोण में केसर की धूप देने के पितृ प्रसन्न होते हैं। इससे पितृदोष शांत होता है और व्यक्ति के जीवन में तरक्की होने लगती है।
कभी आपने किसी घर में जाते ही वहाँ एक अजीब सी नकारात्मकता और घुटन महसूस की है ?
या किसी के घर में जाते ही एकदम से सुकून औऱ सकारात्मकता महसूस की है ?
मैं कुछ ऐसे घरों में जाता हूँ जहां जाते ही तुरंत वापस आने का मन होने लगता है। एक अलग तरह का खोखलापन और नेगेटिविटी उन घरों में महसूस होती है। साफ समझ पाती हूँ कि उन घरों में रोज-रोज की कलह और लड़ाई- झगड़े और चुगली , निंदा आदि की जाती है। परिवार में सामंजस्य और प्रेम की कमी है। वहाँ कुछ पलों में ही मुझे अजीब सी बेचैनी होने लगती है और मैं जल्दी ही वहाँ से वापस आ जाता हूँ।
वहीं कुछ घर इतने खिलखिलाते और प्रफुल्लित महसूस होते हैं कि वहाँ घंटों बैठकर भी मुझे वक़्त का पता नहीं चलता ।
ध्यान रखिये….
” आपके घर की दीवारें सब सुनती हैं और सब सोखती हैं। घर की दीवारें युगों तक समेट कर रखती हैं सारी सकारात्मकता और नकारात्मकता भी “
” कोपभवन” का नाम अक्सर हमारी पुरानी कथा-कहानियों में सुनाई देता है । दरअसल कोपभवन पौराणिक कथाओं में बताया गया घर का वो हिस्सा होता था जहां बैठकर लड़ाई-झगड़े और कलह-विवाद आदि सुलझाए जाते थे। उस वक़्त भी हमारे पुरखे सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह को अलग-अलग रखने का प्रयास करते थे इसलिए ” कोपभवन ” जैसी व्यवस्था की जाती थी ताकि सारे घर को नकारात्मक होने से बचाया जाए । इसलिए आप भी कोशिश कीजिए कि आपका घर “कलह-गृह” या “कोपभवन” बनने से बचा रहे।
घर पर सुंदर तस्वीरें , फूल-पौधे, बागीचे , सुंदर कलात्मक वस्तुएँ आदि आपके घर का श्रृंगार बेशक़ होती हैं पर आपका घर सांस लेता है आपकी हंसी-ठिठोली से , मस्ती-मज़े से, खिलखिलाहट से और बच्चों की शरारतों से , बुजुर्गों की संतुष्टि से ,घर की स्त्रियों के सम्मान से और पुरुषों के सामर्थ्य से , तो इन्हें भी सहेजकर-सजाकर अपने घर की दीवारों को स्वस्थ रखिये।
” आपका घर सब सुनता है और सब कहता भी है “
इसलिए यदि आप अपने घर को सदा दीवाली सा रोशन बनाये रखना चाहते हैं तो ग्रह कलह और , निंदा , विवादों आदि को टालिये।
“यदि आपके घर का वातावरण स्वस्थ्य और प्रफुल्लित होगा तो उसमें रहने वाले लोग भी स्वस्थ और प्रफुल्लित रहेंगे।
इस वर्ष सन् 2022 को वैदिक मतानुसार दीपावली और लक्ष्मी पूजन 24 अक्टूबर 2022 की शाम या रात्रि में मनाई जाएगी क्योंकि वैदिक मतानुसार दीपावली पर्व मनाने के लिए शाम या रात्रि में अमावस्या तिथि का होना आवश्यक है जो कि 24 अक्टूबर 2022 को ही मिलेगी, 25 अक्टूबर 2022 को अमावस्या तिथि उदय काल में ही है अपरान्ह या शाम को अमावस्या नहीं है। किन्तु जैन धर्म के ग्रन्थों के अनुसार भगवान महावीर का निर्वाण कल्याणक महोत्सव मनाने या निर्वाण लाड़ू चढ़ाने के लिए सूर्योदय के समय अमावस्या तिथि का होना आवश्यक है जो कि 25 अक्टूबर 2022 को ही होगी और इसीलिए भगवान महावीर के निर्वाण कल्याणक का लाड़ू 25 अक्टूबर 2022 को चढ़ाया जाएगा और जैनधर्म के अनुसार दीपावली भगवान महावीर के निर्वाण कल्याणक के पश्चात् उसी दिन शाम को गौतम गणधर के केवलज्ञान प्राप्ति के उपलक्ष्य में मनाई जाती है इसलिए जैनधर्म अनुयायियों की दीपावली भी 25 अक्टूबर 2022 की शाम को ही मनाई जानी चाहिए।
खाता पूजन के विभिन्न लग्नों की समय सारिणी
दिनाँक 23/10/2022 (धन्य त्रयोदशी) मेष 16:19 से 17:56 वृष 17:56 से 19:53 मिथुन 19:53 से 22:07 सिंह 00:25 से 02:40 वृश्चिक 07:14 से 09:32 धनु 09:32 से 11:36 मकर 11:36 से 13:20 (इसी में अभिजित मुहूर्त आएगा) कुम्भ 13:21 से 14:51 मीन 14:52 से 16:18
दिनाँक 24/10/2022 (वैदिक मतानुसार दीपावली, लक्ष्मी पूजन) मेष 16:15 से 17:53 वृष 17:53 से 19:50 मिथुन 19:50 से 22:03 सिंह 00:21 से 02:36 वृश्चिक 07:10 से 09:28 धनु 09:28 से 11:32 मकर 11:32 से 13:16 (इसी में अभिजित मुहूर्त आएगा) कुम्भ 13:17 से 14:47 मीन 14:48 से 16:14
दिनाँक 25/10/2022 (जैन मतानुसार दीपावली अर्थात् महावीर भगवान निर्वाण लाडू एवं गौतमस्वामी केवलज्ञान पूजा) मेष 16:12 से 17:50 (मणिपुर, अरुणाचल, सिक्किम और नागालैंड आदि के अतिरिक्त सम्पूर्ण भारत में सूर्यग्रहण दोष) वृष 17:50 से 19:46 मिथुन 19:46 से 22:00 सिंह 00:17 से 02:32 वृश्चिक 07:06 से 09:24 धनु 09:24 से 11:28 मकर 11:28 से 13:12 (इसी में अभिजित मुहूर्त आएगा) कुम्भ 13:12 से 14:44 मीन 14:45 से 16:12 नोट : दिनाँक 25/10/2022 को शाम 16:40 से 17:42 तक सूर्यग्रहण है जो कि मणिपुर और नागालैंड में सूर्यास्त के बाद होगा और सूर्यास्त के बाद होने से दृश्य नहीं है इसलिए दोषयुक्त भी नहीं है जबकि भारत के उन भागों में जहाँ सूर्यास्त 16:29 के बाद होगा वहाँ ही दोष माना जाएगा.
साभार : ज्योतिर्भूषण प्रतिष्ठाचार्य पण्डित महेश कुमार शास्त्री डीमापुर /कारीटोरन